गुरुवार, 29 जून 2017

ईद का यह तरही मुशायरा कुछ विलंब से प्रारंभ हुआ है तो आइये आज सौरभ पाण्डेय जी और निर्मल सिद्धू जी के साथ मनाते हैं ईद का यह त्यौहार।

मित्रों कुछ कारणों से मन बहुत व्य​थित है, लेकिन बस यह लगता है कि आने वाला समय हो सकता है इन सब नफरतों को समाप्त कर दे। जो कांटे हमारी सुंदर बगिया में पैदा हो गए हैं समय की तेज हवा शायद उनको हटा दे। असल में इन्सान की आदत है कि वह कम से कम एक अवस्था में तो रहना चाहता ही है। या तो प्रेम की अवस्था या नफरत की अवस्था। यदि आप उसे प्रेम की अवस्था में रखेंगे तो वह नफरत की अवस्था में नहीं जाएगा लेकिन यदि आपने उसे प्रेम की अवस्था में नहीं रखा तो वह नफरत की अवस्था में जाएगा ही जाएगा यह तय है। इन दिनों हमारे साथ भी यही हो रहा है। हमने अपने आास पास से प्रेम को लगभग समाप्त ही कर दिया है और यही कारण है कि कमोबेश हर कोई अब नफरत की अवस्था में है। यह नफरत आज अपनी चरम सीमा पर है। लेकिन अभी भी मुझे लगता है कि हर बुरे समय में कुछ मुट्ठी भर लोग ऐसे होते हैं जो अपने समय को ठीक करने का माद्दा रखते हैं। और हमें उन ही लोगों में शामिल रहना है। घबराइये मत, डरिए मत, दुनिया में जब भी अँधेरे ने ऐसा माहौल बनाया है कि अब उसका ही साम्राज्य होगा तब तब कोई उजाले का दूत, फरिश्ता सामने आया है। तो हम सब भी उजालों के पक्ष में खड़े हैं और हमें इस पक्ष में खड़े ही रहना है यह तय कीजिए।

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कल की दोनों ग़ज़लें बहुत शानदार थीं और दोनों ही ग़ज़लों ने इब्तिदा का रंग खूब जमाया। ईद का त्यौहार जैसा कि सौरभ जी ने अपने एक कमेंट में कहा कि यह तो महीने भर मनाया जाने वाला त्यौहार है तो हम आने वाले समय में इसे मनाते रहेंगे। आइये आज सौरभ पाण्डेय जी और निर्मल सिद्धू जी के साथ ईद के त्यौहार का यह जश्न आगे बढ़ाते हैं।

कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक

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सौरभ पाण्डेय

पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़
इन्सान पे रहमत का असर ईद मुबारक़

पास आए मेरे और जो ’आदाब’ सुना मैं
मेरे लिए अब आठों पहर ईद मुबारक़

हर वक़्त निग़ाहें टिकी रहती हैं उसी दर
पर्दे में उधर चाँद, इधर ईद मुबारक़ !

जिस दौर में इन्सान को इन्सान डराये
उस दौर में बनती है ख़बर, ’ईद मुबारक़’ !

जब धान उगा कर मिले सल्फ़ास की पुड़िया
समझो अभी रमज़ान है, पर ईद मुबारक़ !

इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?

भइ, आप हैं मालिक तो कहाँ आपसे तुलना
कह उठती है रह-रह के कमर.. ईद मुबारक़ !

तू ढीठ है बहका हुआ, मालूम है, लेकिन
सुन प्यार से.. बकवास न कर.. ’ईद मुबारक़’ !

जो बीत गयी रात थी, ’सौरभ’ उठो फिर से 
कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक

बहुत ही अच्छे मतले के साथ सौरभ जी ने ग़ज़ल की शुरुआत की है। पिस्तौल तमंचे से ज़बर ईद मुबारक और अगले मिसरे में रहमत का असर बहुत खूब बना है। प्रेम तो ईद का स्थायी भाव है किसी के आदाब कहते ही आठों पहर ईद हो जाना यही तो प्रेम है। प्रेम में रहो तो हर दिन ईद का ही दिन है। और अगले ही शेर में कहीं पर निगाहें टिका कर परदे में छिपे चाँद को देखने की इच्छा रखना बहुत ही सुंदर भाव है शेर में।  और अगले ही शेर में उसी चिंता की बात है जिस चिंता का ज़िक्र मैंने आज शुरूआत में किया है। सच में जिस दौर में इंसान को इंसान ही डराता है उस दौर में ईद मुबारक भी एक खबर ही तो होती है। और इंसान की यदि इंसान ही इज़्ज़त न कर रहा हो तो भला कैसे कोई कह सकता है ईद मुबारक। बहुत ही सामयिक चिंताओं से भरे शेर। किसानों के फाके और रोज़े से भरी जिंदगी का शेर भी बहुत अच्छा है। मकते में गिरह को बहुत ही सुंदर तरीके से बाँधा है सौरभ जी ने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।

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निर्मल सिद्धू

सब उसका करम उसकी मेहर ईद मुबारक
हर शय का है पैग़ामे-नज़र ईद मुबारक

फूलों ने दिया कलियों को जो ईद का तुहफ़ा
मख़मूर हुये गाँव-नगर ईद मुबारक

जन्नत का संदेशा, है दिया चाँद ने शब को
कहती है ये ख़ुशियों की सहर ईद मुबारक

नफ़रत को मिटा कर ये मुहब्बत को बसा दे
ऐसा जो कहीं कर दे असर, ईद मुबारक

तस्वीर संवर जायेगी उस पल ही जहां की
निकले जो दुआ बनके अगर ईद मुबारक

‘ निर्मल ’ भी हुआ आज तो मस्ती में दिवाना
जब उसने कहा जाने-जिगर ईद मुबारक

वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है निर्मल जी ने। मतले में ही ऊपर वाले के प्रति शुक्रिया जताने का जो अंदाज़ है वो बहुत ही सुंदर है। सच में हम सब यदि प्रेम सीख जाएँ तो हर दिन,हर शय का पैगाम ईद मुबारक ही होगा। जन्नत का संदेशा जो चांद ने दिया रात को और उसके बाद की सुबह मे ईद मुबारक का संदेश चारों तरफ फैलना बहुत ही सुंदर चित्र बनाया है शब्दों से। और अगले ही शेर में हम सबकी दुआ को स्वर मिलते हैं कि नफरत को मिटा कर हर तरफ यदि मुहब्बत को बसा दिया जाए तो उससे अच्छी ईद और कोई हो ही नहीं सकती। सचमुच इस दुनिया की तस्वीर उसी पल सँवर जाए यदि हम सबके होंठों पर दुआओं के रूप में प्रार्थना आ जाए। यह दुनिया अब यही चाहती है। और मकते के शेर में प्रेम को बहुत सुंदर ढंग से पिरो दिया है। बहुत ही अच्छे से काफिया निभाया गया है। मुझे लगता है कि यह  काफिया बाँधने का बहुत खूब उदाहरण है। का​फिया वाक्य का हिस्सा ही बन गया है। खूब। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।

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तो यह हैं आज के दोनों शायर जिन्होंने बहुत ही सुंदर ग़ज़लें कही हैं। कमाल के शेर दोनों ने निकाले हैं। आपका काम है कि आप इन कमाल के शेरों पर दाद दीजिए और खुल कर दाद दीजिए। मिलते हैँ अगले अंक में। ईद मुबारक।

23 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सौरभ जी और निगम सिद्धू जी...

    कमाल कर दिया है दोनों शाइरों ने :-

    सौरभ जी : पर्दे में इधर चांद उधर ईद मुबारक.... वाह, व्ववाह

    निर्मल जी : जब उसने कहा जाने जिगर ईद मुबारक...वाह, व्व्वाह

    क्या खूबसूरत अंदाज़ में कहा है ईद मुबारक की चांद और रोशन हो गया..

    सादर,

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    1. आदरणीय मुकेश जी, आपसे मिला उत्साहवर्द्धन हमारा संबल है.
      हार्दिक धन्यवाद

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  3. सौरभ जी की लाजवाब और बेहतरीन ग़ज़ल के शेर भूत हैरान कर देने वाले हैं ... कवि की सोच कहाँ से कहाँ तक जाती है इसकी जीती जागती ग़ज़ल है ... परदे और चाँद का क्या ग़ज़ब तालमेल है ... ईद मुबारक का ख़बर बनना और फिर उम्मीद से सरोवर विरह का शेर ... ज़िंदाबाद सौरभ जी ... ग़ज़ल का समा बाँध दिया आपने ...

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    1. आदरणीय दिगम्बर भाई, आपकी सदाशयता के हम आभारी हैं, आपने मेरे प्रयास को अनुमोदित किया और प्रस्तुति को मान दिया.
      शुभ-शुभ

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  4. जन्नत का संदेश देती ख़ुशियों की sahar ... लाजवाब girah का शेर बाँध है निर्मल जी ने ... बाक़ी सभी शेर भी बहुत लाजवाब हैं ... बहुत बधाई इस कमाल की ग़ज़ल की

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  5. पिस्तौल-तमंचे लगते कहाँ हैं मोहब्बत के इन दो शब्दों के आगे।
    और बस एक बार के आदाब जा असर आठों पहर रहना, वाह।

    पर्दे में उधर चाँद, इधर ईद मुबारक़, क्या बात है। वाह।

    जिस दौर में इन्सान को इन्सान डराये
    उस दौर में बनती है ख़बर, ’ईद मुबारक़
    क्या बात उठाई है वाह।

    जब धान उगा कर मिले सल्फ़ास की पुड़िया
    समझो अभी रमज़ान है, पर ईद मुबारक़ !
    मेरी सोच से हासिले ग़ज़ल रहा।

    भइ, आप हैं मालिक तो कहाँ आपसे तुलना
    कह उठती है रह-रह के कमर.. ईद मुबारक़
    दुष्यंत कुमार का "ये सारा जिस्म थक कर " याद आ गया।
    भी वाह।

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    1. आदरणीय तिलकराज भाईजी, शेरों पर तब्सिरा और फिर आपकी हौसला अफ़ज़ाई ! अभिभूत हूँ।
      शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया !

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  6. सब उसका करम उसकी मेहर ईद मुबारक
    वाह। वाह।

    फूलों ने दिया कलियों को जो ईद का तुहफ़ा
    मख़मूर हुये गाँव-नगर ईद मुबारक
    क्या बात है, वाह।

    नफ़रत को मिटा कर ये मुहब्बत को बसा दे
    ऐसा जो कहीं कर दे असर, ईद मुबारक
    वाह, क्या बात है।

    ‘ निर्मल ’ भी हुआ आज तो मस्ती में दिवाना
    जब उसने कहा जाने-जिगर ईद मुबारक
    क्यों न हो, क्यों न हो? कब से इंतज़ार था?
    वाह, वाह।

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  7. ग़ज़लें पढी,लगा खूबसूरती से ग़ज़ल यूं लिखी जाती है।सौरभ जी,सिद्धू जी बधाई स्वीकार करें

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    1. आदरणीय सुधीर त्यागी जी, अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ..

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  8. आदरणीय सौरभजी और निर्मलजी,
    कहती है गज़ल आप हैं पहुँचे हुये शायर
    हमको शुरू करना है सफ़र, ईद मुबारक
    दाद कुबूल फ़रमायें

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    1. सुनकर मैं झुका जा रहा, राकेश जी भइया
      दिल खोल के दी दाद प्रवर, ईद मुबारक़ !

      आदरणीय राकेश जी, हृदयतल से आभार ..

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  10. सौरभ जी ने तरही में ऐसी ग़ज़ल कही है कि जिसकी तारीफ़ लफ़्ज़ों में की ही नहीं जा सकती ....ज़िंदाबाद सौरभ भाई ...एक एक शेर कमाल का कहा है आपने ...शब्द भाव कहन ..तीनो बेजोड़। हद ही करदी है आपने कहाँ से लाये इतने सटीक प्रतीक और विषय ? ईद को बिलकुल अलग अंदाज़ में पेश किया है आपने। रदीफ़ का ऐसा लाजवाब प्रयोग बहुत कम देखने में मिलता है। ढेरों, अरबों खरबों दाद --- भाई - जियो

    ईद की खूबियों को जिस तरह निर्मल जी ने बयां किया है वो अद्भुत है। सारे शेर बेहद खूबसूरत। बहुत सारी दाद.

    नीरज

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    1. ग़ज़ल विधा की प्रस्तुतियों के आप जैसे मूर्धन्य पाठक द्वारा अपनी प्रस्तुति पर विशेषणों का उलीचा जाना भाव विभोर कर गया, आदरणीय नीरज भाई.
      धन्योस्मि
      शुभातिशुभ

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  11. वाह आ0 सौरभ पांडे जी क्या खूब ग़ज़ल कही है। ह शेर असरदार। गिरह का तो क्या कहना।

    जो बीत गयी रात थी, ’सौरभ’ उठो फिर से
    कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक

    नव स्फूर्ति का सन्देश देती गिरह।

    एक बार फिर बधाई।

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    1. आदरणीय बासुदेव अग्रवाल नमन जी, आप द्वारा मिला अनुमोदन मुझे उत्साहित कर रहा है. ग़ज़ल को मान देने के लिए सादर धन्यवाद
      शुभ-शुभ

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  12. वाह आ0 सौरभ पांडे जी क्या खूब ग़ज़ल कही है। ह शेर असरदार। गिरह का तो क्या कहना।

    जो बीत गयी रात थी, ’सौरभ’ उठो फिर से
    कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक

    नव स्फूर्ति का सन्देश देती गिरह।

    एक बार फिर बधाई।

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. वाह वाह ,,, आदरणीय सौरभ पांडेय जी और निर्मल सिद्धू जी,,, दोनों ने ही क्या खूबसूरत ग़ज़लें कही है,,बहुत ही बढ़िया
    सौरभ जी ने हमेशा की तरह अपने अलग अंदाज़ में ,,,अपनी सोच की विशालता और उच्चता को दिखाते हुए बहुत ही उच्चकोटि के अशआर कहे है,, जितनी तारीफ की जाए काम होगी
    और निर्मल जी ने भी कमाल की ग़ज़ल कही है,,, ईद के त्यौहार की खूबसूरती ब्यान करती हुई पूरी ग़ज़ल शानदार हुई है

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