बुधवार, 6 मार्च 2013

नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे, बेरब्त ये हुकूमत, बेरब्त फ़ैसला है. आइये आज सुनते हैं आदरणीय नीरज गोस्‍वामी जी और अनन्‍या 'हिमांशी' की ग़ज़लें ।

इन दिनों कुछ व्‍यस्‍तता वाले हाल में हूं । लेकिन इस व्‍यस्‍तता वाले हाल में से ही एक किरण उजाले की फूटने की प्रतीक्षा कर रही है । उन अंधेरों को चीर कर जो पिछले कई सालों से भयाक्रांत किये हुए हैं । चूंकि कहावत भी है कि जब सुब्‍ह होने को हो तो अंधेरा और घना हो जाता है । तो बस उसी समय से गुज़र रहा हूं । इसलिये कहीं तरही में कुछ ग़लत लिखा जाए, जो कुछ लापरवाही हो जाए तो क्षमा कीजियेगा क्‍योंकि दिमाग़ कहीं और है । आज उसी के कारण भूमिका भी अनुपस्थित हो रही है ।

''ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है''

आइये आज सुनते हैं आज दो रचनाकारों को । उम्र के दो अलग अलग पड़ावों पर खड़े रचनाकार । आदरणीय नीरज गोस्‍वामी जी और अनन्‍या 'हिमांशी' । अनन्‍या ने ये ग़ज़ल किसी भीषण संत्रास से गुज़रते हुए समय में लिखी है । किसी गहन दुख के क्षणों में ।

Copy of neeraj ji

आदरणीय नीरज गोस्‍वामी जी

ये कैदे बा-मशक्क्त जो तूने की अता है
मंज़ूर है मुझे पर, किस जुर्म की सजा है ?

ये रहनुमा किसी के दम पर खड़ा हुआ है
जिसको समझ रहे थे हर मर्ज़ की दवा है

नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे
असली अदीब बैठा ताली बजा रहा है 

इस दौर में उसी को सब सरफिरा कहेंगे
जो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है

रोटी नहीं हवस है, जिसकी वजह से इंसां
इंसानियत भुला कर वहशी बना हुआ है

मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
गाते सभी है इनको, किसने मगर गुना है

आभास हो रहा है हलकी सी रौशनी का
उम्मीद का सितारा धुंधला कहीं उगा है

हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?

सबसे पहले बात हुस्‍ने मतला की । ये रहनुमा किस के दम पर खड़ा हुआ है, क्‍या बारीक और तेज़ व्‍यंग्‍य है ऐसा पैनापन कि लगे तो उतरता चला जाए । बहुत खूब । नक्‍काल पा रहा है तमगे इनाम सारे, खूब खूब ये शेर हो सकता है इन दिनों हिंदी साहित्‍य में जो कुछ चल रहा है उसके चलते वहां लोकप्रिय हो जाए । असली अदीब बैठा ताली बजा  रहा है । अरे वाह जो कुछ मैंने ऊपर भूमिका में  कहा उसको ही शब्‍द प्रदान करता हुआ शेर आ गया है आभास हो रहा है हल्‍की सी रौशनी का, इसे कहते हैं मन की भावना को शब्‍द मिल जाना । मीरा कबीर और तुलसी को गुनने का शेर भी सुंदर बन पड़ा है । और पिछले अंक की भूमिका को सार्थक करता हुआ मकता तुमने सुधारने को बोलो तो क्‍या किया है । अहा अहा । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

himanshi1

अनन्‍या 'हिमांशी'

अनन्‍या ने ये ग़ज़ल अपनी बुआ की पुण्‍य  स्‍मृति को समर्पित की है, जिनको हमने भी ये मुशायरा समर्पित किया हुआ है । 

बर्बादी का ये मंज़र जिसने मुझे दिया है,
वो नाम है दगा का, किस बात का खुदा है.

कोई न जुर्म मेरा फिर भी निभा रही हूं,
ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की आता है.

यूँ प्यार से सजा के रिश्तों को छीन लेना,
बेरब्त ये हुकूमत, बेरब्त  फ़ैसला है.

ख्वाबो मे उसके आ के आवाज़ दी जो तूने,
फिर सुब्‍ह से वो हर सू तुझको ही ढूंढता है.

जख़्मो को कुछ दबा के, हौले से मुस्कुराना,
फिर तेरा फुसफुसाना, कुछ दिन से लापता है.

सारे जहां को रोशन करती 'किरण' अमर है,
उद्घोष आज तेरा संसार कर रहा है.

सबसे पहले गिरह के शेर की बात । बहुत सुंदर गिरह बांधी है अनन्‍या ने । इस उम्र में इतनी परिपक्‍व गिरह बांधना भविष्‍य की कई संभावनाओं का प्रतीक है । ख्‍वाबों में उसके आके, ये दर्द का शेर है । दर्द किसी अपने को खो देने का । और उसको स्‍वप्‍न में देख कर सुबह तलाश करने का । यूं कि बस रात को तो वो था साथ ही । किसी अपने को खो देने की मानसिकता में ये ग़ज़ल कही गई है । दर्द अपनी पूरी शिद्दत से इसमें गूंज रहा है । मगर इस दर्द में एक प्रतिरोध भी है एक मुख़ालफत भी है, उस फैसले के प्रति जो एक तरफा सुनाया गया है । मतला भी उसी विरोध के स्‍वर में है और यूं प्‍यार से सजा के शेर भी । आखिरी शेर में अपनी बुआ के नाम को गूंथ कर उनके नाम से मकते का शेर बनाने का बहुत मर्म स्‍पर्शी प्रयास किया है । खूब बहुत खूब ग़ज़ल ।

तो दोनों ग़ज़लों को सुनिये और मन से दाद दीजिये ।

29 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन ग़ज़लियात , बधाई दोनों अदीबों को।

    नीरज जी -- मीरा कबीर तुलसी -- गाते सभी हैं --किसने मगर गुना है।( बेमिसाल शे"र)

    अनन्या जी।--ज़ख़्मों को कुछ दबा के-- कुछ दिनों से लापता है। ( बेहद नाज़ुक शे"र)

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  2. नीरज जी की ग़ज़लें हमेशा ही सरल शब्दों में कही लेकिन प्रभावशाली होती हैं. यह गज़ल भी वैसी ही है. बहुत ही सलीके से बाँधी हुई गिरह. बहुत प्रभावी शेर "रहनुमा..","नक्काल पा रहा है..", "इस दौर में..", "रोटी नहीं..", "मीरा कबीर तुलसी..","आभास हो रहा है.." गजब के शेर. मकता भी खूबसूरत. बहुत बहुत बधाई.
    अनन्या तो हर तरही में कमाल करती है. छोटी सी है लेकिन इतने गंभीर और चौंकाने वाले शेर कहती है. 'अनन्या की गज़ल से इसकी उम्र का पता ही नहीं चलता.'. :)

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  3. मंजूर है मुझे पर,किस जुर्म की सजा है ....हालात को स्वीकार कर कितनी शालीनता से विरोध करता हुआ शेर वाह

    ये रहनुमा किसी के दम पर .....किसी भी पहलू सामाजिक ,राजनीतिक या भावनात्मक, से देखे आजकल ऐसे ही रहनुमा है।

    फिर मंजिल कैसे करीब आये ..खूबसूरत शेर

    आभास हो रहा है ....उम्मीद भरा शेर वाह, कमाल गजल, नीरज जी को बधाई ...

    दर्द जब हद से गुजरता है विरोधी भावना का आना स्वाभाविक है और ये प्रतिरोध सबसे पहले उसी के लिए होता है

    जिस पर हम अटूट विश्वास रखते है और वो है वो परम शक्ति परन्तु तब भी ये लगन उससे नहीं हटती हम अपना गुस्सा और

    दुःख दोनों उसी से कहते है ये ही कह रही है अनन्या जी की पूरी गजल

    वो नाम है दगा का ,किस बात का खुदा है .....आह !

    जख्मो को कुछ दबा कर ......याद मे डूबा शेर ..दर्द मैं बहादुरी से मुस्कुराने का हौसला देता शेर

    किसी एक शेर का जिक्र क्या, गजल का हर शेर लाजवाब है अनन्या जी को बहुत बहुत शुभकामनाये

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  4. उस उजाले की खबर का इन्तेज़ार है गुरुदेव ...

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  5. नीरज जी की ग़ज़लें हमेशा ही धमाकेदार होती हैं ... पहले शेर से ही तेवर नज़र आ जाते हैं जब ये कैद मंज़ूर तो होती है पर जुर्म की सजा जाने बिना नहीं .... फिर मतले का शेर ...
    इस दौर में उसी को सब सिरफिरा कहेंगे ... सच तो है पर आज भी ऐसे लोग हैं जो कहीं भी निकल पड़ते हैं कफ़न बांधे ...
    अंतिम शेर तो जैसे मजबूर कर देता है अपने अंदर झाँकने के लिए ...
    वाह वाह ... नीरज जी ... बहुत बधाई इस लाजवाब गज़ल पर ..

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  6. अनन्य जी के शेर भी चौंकाने वाले हैं ... गिरह बहुत हो कमाल की बाधी है ... ख़्वाबों में उसके आ के ... प्रेम के बंधन में बंधा शेर है ... जख्मों को कुछ दबा के ... मन के अंदर उतर जाता है ये शेर .... प्रेम की खुशबू मिएँ डूबे सभी शेर ... लाजवाब गज़ल है ...

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  7. नीरज जी के शेर क्या धार से उतरे चले जा रहे बिलकुल नस्तर की तरह ...
    और अनन्या जी के मनोभाव उम्र से दोगुने छलांग पर है ,वाकई आगे बहुत कुछ लाज़वाब रच सकती है इनकी क़लम |

    दोनों ही ग़ज़ल दाद के काबिल हैं , बहुत- बहुत बधाई दोनों रचनाकारों को ...

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  8. सुबीर जी जिस सोच के अलमबरदार है, वही झंडा श्री नीरज जी भी उठाये हुए है. नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रहरी के रूप में, इनकी शायरी का हमेशा से मद्दाह रहा हूँ .

    मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
    गाते सभी है इनको, किसने मगर गुना है

    हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "

    तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?

    ख़ूब अच्छा याद दिलाया है, बहुत चुभता हुआ सवाल किया है इन अश'आर मे.

    प्रेरणात्मक शायरी, हर शे'र दसों नए शेर के, नए विचार के प्रेरणा स्त्रोत बन सके एसे है. उसी प्रेरणा स्वरूप यह कह सका हूँ:-

    # जबसे मुशाईरों में कव्वाल हित रहे है,
    असली अदीब अपनी गज़ले गवा रहा है.

    # हर रहनुमा किसी के दम पर खड़ा हुआ है,
    लाशो का सौदागर भी अब पासबाँ बना है.
    ----------------------------------------------------

    अनन्या 'हिमांशी' :
    ---------------
    ख्वाबो मे उसके आ के आवाज़ दी जो तूने,
    फिर सुब्‍ह से वो हर सू तुझको ही ढूंढता है.

    विरह वेदना की केफियत यूं भी बयान की जा सकती है ! उम्दा शे'र.

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    1. मंसूर साहब, आपके शब्दों से हम भी प्रेरित होते हैं।।।

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  9. समस्त सत्ता संतुलन में होती है. इस संतुलन में थोड़ा अंतर हुआ नहीं कि इकाई विशेष पर प्रभावी बलों में विस्थापन का कारण अपरिहार्य दिखता है. और बस, उक्त इकाई किसी अन्यार्थ परिंणामी को प्राप्त ! उक्त इकाई पुनः अपने चैतन्य को केन्द्रवत कर, अपनी वैचारिकता को सचेत-सजग बना, नियंता के नेपथ्य सहयोग से प्रभावी और अपेक्षित संतुलन का कारण प्रतीत होते समस्त बलों को नियंत्रित करने में भिड़ जाती हैं --कहाँ बदलती दुनिया कोई.. उठना, गिरना, फिर जुट जाना.. करते हुए !
    ऐसा भी होता है, एक अनमनी तितली के कहीं और फड़फड़ाने से कहीं और के विशिष्ट स्थावर अडिग उर्ध्व शिखर की सुदृढ़ काया पर उद्विग्न घन के बगूले अदबदाये बरस पड़ते हैं ! आश्चर्य है, किन्तु होता है !

    भाई पंकजजी की आज की भूमिका ऐसी ही वैचारिकता का उत्स लगी.
    आपकी अति व्यस्तता का सटीक भान हो चुका है, आदरणीय. किन्तु, इसी पन्ने पर झींसी-झींसी प्रफुल्लता बिखेरती आपकी पारदर्शियाँ आश्वस्त करती हैं.. .
    हार्दिक

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    1. आदरणीय सौरभ जी, आपका सन्देश विज्ञान और मानवता की जुडी कड़ियों को सूक्ष्मता से अध्ययन कराता है।

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  10. यहीं, इसी मंच पर आदरणीय नीरज जी को सुनने का पहली बार अवसर मिला था. फिर तो आपकी ग़ज़लें मेरी पाठकीय सोच का अभिन्न हिस्सा होती गयीं. सहज तो इतनी कि पाठकों के मन में ’हाँ, मालूम है’ का भ्रम-भाव व्याप जाय, किन्तु, उन्हीं मिसरों की अंतर्धारा में भाव-घूर्णन ऐसा कि कहन की समझ साझा करने में अच्छे-अच्छे गुड़मुड़िये डूब जायँ !

    मतले को बार-बार पढ़ रहा हूँ. लगता है मेरी व्यक्तिगत भाव-दशा को आपने इसके मिसरों में फिट कर दिया है.
    नक्काल पा रहा है तमगे ईनाम सारे.. . इस कहन रूपी माला में अनुभूत भाव-मनकों को हम सभी ने एक बार फेरने की कोशिश अवश्य की है. लेकिन मजाल जो मिसरे यों हो जायँ ! नीरज भाई के मिसरे जैसे कि हो गये हैं.
    इस दौर में उसीको सब सिरफिरा कहेंगे.. . परिपाटियों की शुद्धता के प्रति किसी आग्रही के दर्द को कितनी शिद्दत से उभारा है आपने !.. वाह-वाह !
    रोटी नहीं हवस है.. . .. सलाम साहब ! ये सोच मेरी कूव्वत के बाहर की सोच है. अब यह जानना रोचक होगा कि रोटी के लिए पल रही इच्छा को ऐसी करारी दुत्कार ग़ज़ल के इतिहास में कभी और मिली है क्या ?!!
    मीरा कबीर तुलसी नानक फ़रीद बुल्ला.. . क्या बात है ! सही है, आज ये महज़ नाम हैं. बस.
    आभास हो रहा है हल्की सी रौशनी का.. . इस सकारात्मक वैचारिकता के प्रति स्वतः आदर भाव उठते हैं.
    और अब मक्ता.. . ! इस मक्ते पर कुछ नहीं कहूँगा. आत्ममंथन हेतु विन्दु वाचालता से कहीं तिरोहित न दीखें.

    आदरणीय अग्रज, आपको पढ़ना अपने से बतियाना है.
    ग़ज़ल के लिए सादर धन्यवाद.

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  11. अनन्या 'हिमांशी', अब आप एक स्थायी स्तम्भ है इस श्रींख्ला में। आप की इस ग़ज़ल को सुन मैं तो खामोश हो गया कुछ देर के लिए। दो चार बार पढ़ा, अपनी मनःस्थिति को कितने तरतीब से आपने प्रस्तुत किया है। ख़्वाबों में उसके आ के, यूँ प्यार से सजा के, कुछ ज़ख्मों को दबा के, इन शेरों की कोई कैसे तारीफ़ करे. दर्द और अपनापन छाया हुआ है चारो तरफ। लाजवाब गिरह, बहुत बहुत बहुत सुन्दर !

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  12. नीरज सर, आप आये और क्या खूब ले कर आये हैं। ये रहनुमा किसी के दम पर है खड़ा,,, नक्काल पा रहा है तमगे,,, सरफिरा वाले शेर शे'र हों या मीरा, कबीर, तुलसी .... और ये तो बहुत सूक्ष्म है "उम्मीद का सितारा पहले धुंधला ही होता है"
    और मक्ता तो बस वही जो मक्ता हो जाये ये वही है। वाह सर वाह !!

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  13. अनन्या के कहे से अब चौंकता नहीं. कारण, विस्मयादिबोधक भाव पिछले मुशायरों से ही संयत हो चुके हैं. अब इनकी बिटिया की कहन को विमुग्ध सुनना और मन-व्योम में इन्हें कलके वैचारिक, भावनात्मक और भौतिक विस्तारों को मापते हुए देखना अधिक होता है.
    इस बार का मुशायरा अपने होने में जिस दर्द को जीया है, उसी दर्द को कंचनजी के बाद एक बार फिर स्वर देती दिख रही हैं अनन्या.

    कोई न ज़ुर्म मेरा फिर भी निभा रही हूँ.. . यों, इस सार्वभौमिक सोच को आपने विन्दुवत किया है. किन्तु, आपके इस भाव से हम भी विलग नहीं रह पाये हैं. कभी अवसर मिला तो, बेटा, साझा करेंगे. लेकिन यह अवश्य है, आप जी रहे हैं, हम जीते हुए लग रहे हैं. खैर.. .
    ख्वाबों में उसके आके आवाज़ दी जो तूने.. . ग़ज़ब ! ग़ज़ब !!
    इस कहन को निभा ले जाने के क्रम में हमने अच्छों-अच्छों को मुकुरिये भहराते देखा है. आपने जिस सहजता से ऐसे भावों को शब्दों का जामा दिया है कि.. . वाह !
    ज़ख़्मों को कुछ दबा के हौले से.. . .. इस शेर में भी बहुत वज़्न है. वाह !
    आपकी भाव-दशा का हम सम्मान करते हुए अधिक कुछ न कहेंगे. बस.. .

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  14. पंकज इस बार के मुशायरे की बेह्तरीन ग़ज़लों को पढ़ने के बाद मेरी तो हिम्मत जवाब दे रही है ,,आज की दोनों ग़ज़लें भी कमाल की हैं
    क़ास तौर पर नीरज भैया के अश’आर
    इस दौर में उसी को .....
    रोटी नहीं ................
    क्या बात है भैया ,,बहुत ख़ूब
    ****
    यूं प्यार से सजा के .......
    ख़्वाबों में आ के उस ने .....
    इस बच्ची के लिये बस दिल से दुआ करती हूँ कि ये साहित्य के आसमान का सब से चमकदार सितारा बने
    और इस आयोजन के लिये सब से अधिक आशीर्वाद पर तुम्हारा अधिकार है :)

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  16. आदरणीय नीरज की ग़ज़लें सदैव विशिष्ट होती हैं।प्रस्तुत ग़ज़ल में भी उन्होंने दौरे-हाज़िर की सच्ची तस्वीर खींची है।प्रत्येक शेर अपने समय की विद्रूपताओं को आइना दिखा रहा है और वो भी पूरी शगुफ्तगी के साथ।मतले में ही उन्होंने जीवन के प्रति अत्यावश्यक स्वीकार्य भाव को रेखांकित तो किया ही है,साथ में एक हस्सास इंसान के मन में उठने वाली दुविधाओं को भी स्वर दे दिया है।बाक़ी के अश'आर भी उतने ही उम्दा हैं।हिमांशी की ग़ज़ल भी खूब अच्छी है। ऐसे ही लिखते रहो हिमांशी।

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  17. दोनों ही ग़ज़लें बहुत खूबसूरत हैं। नीरज जी ने कमाल के अश’आर कहे हैं। एक एक मिसरा चुन चुन के रखा है। जितनी भी तारीफ़ की जाय कम होगी। कोई शे’र कोट करना ठीक नहीं होगा क्योंकि सभी बेहद खूबसूरत हैं। बहुत बहुत बधाई नीरज जी को।

    अनन्या जी जिस तरह से शायरी कर रही हैं लगता नहीं कि वो किसी भी तरह से अपरिपक्व हैं। बहुत ही खूबसूरत कहन है उनकी। भावों के पानी से शब्दों के आँटे को जिस तरह गूँथा है उन्होंने वो कमाल है। यकीन बहुत खूबसूरत रोटियाँ बनी हैं। ताजी रोटी की खुशबू दूर दूर तक फैल रही है। बहुत बहुत बधाई अनन्या जी को इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए।

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  18. आदरणीय नीरज जी आपकी गजल को पड कर जो आनंद आया है उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल होगा बस पुरी गजल के लिए अगर कुछ कहु तो कहूँगा की वाह वाह क्या बात है

    ये कैदे बा-मशक्क्त जो तूने की अता है
    मंज़ूर है मुझे पर, किस जुर्म की सजा है ?

    क्या बात है लाजवाब मिसरा

    नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे
    असली अदीब बैठा ताली बजा रहा है

    वाह वाह

    मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
    गाते सभी है इनको, किसने मगर गुना है

    बिलकुल सही कहाँ



    हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
    तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?


    ये भी हकीकत है इस देश की


    बहुत सुंदर गजल के लिए बधाई आदरणीय नीरज जी


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  19. ख्वाबो मे उसके आ के आवाज़ दी जो तूने,
    फिर सुब्‍ह से वो हर सू तुझको ही ढूंढता है.

    क्या बात आदरणीय अनन्‍या जी बहुत अच्छी गजल बधाई

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  20. नीरज जी का यह शे'र मुझे बहुत पसन्द आ रहा है ... रोटी नही हवस है...वाह वाह क्या शे'र है नीरज जी ! वाह ! आभास हो रहा है ... इस शे'र ने ख़ूब रिझाया ! और मक्ता ख़ुद के सवाल को .. यह शराफ़त ! बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है नीरज जी ! बहुत बधाई इस ख़ूब्सूरत ग़ज़ल के लिये !

    अनन्या का मतला ख़ूब है! वाह बेटा वाह जीते रहिये !और मतला तो उफ्फ्फ्फ है ! क्या सादगी है क्या लहजा है क्या अदब है क्या लफ्ज़ हैं वाह इस मतले पर करोडो दाद ! वाह वाह! बेरब्त वाला शे'र भी ख़ूब है ! ज़ख्मों को छीपाना वाला शे'र वाक़ई एक क्षति का शे'र है , दर्द का शे'र एक अलग ही पीडा है इसमे जिसे सिर्फ मह्सूस किया जा सकत है ! बहुत ही अच्छी ग़ज़ल के लिये बहुत स्नेह और आशिर्वाद !

    अर्श

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  21. नीरज जी ने मत्ले से स्पष्ट कर दिया कि वो तीखे सवालों में उतरने वाले हैं। मतले में गिरह जिस तरह से बॉंधी गयी है वह कैदे-बामशक्कत का दायरा बढ़ाती है और हर रिज़्क में ले जाती है। दूसरे मत्ले में रहनुमा की बैसाखियों पर प्रहार करते हुए तीसरे शेर तक आते-आते ग़ज़ल का तंजि़या मिज़ाज़ खुलकर सामने आता हुआ चौथे शेर में क्रॉंति के दीवानों तक आ जाता है।
    मीरा कबीर के शेर में आत्मरनिरीक्षण तक पहुँच जाती है ग़ज़ल और ‘आभास हो रहा है ....’ में उम्मी़द की बात करते हुए ग़ज़ल मक्ते के शेर में कह उठती है कि जो हालात हैं उसके लिये वो सभी दोषी हैं जो खि़लाफ़त में उठे नहीं।
    वाह नहीं कहूँगा, बड़ी बेमानी सी लगेगी इस बोलती ग़ज़ल के सामने।
    अनन्या ने ग़ज़ल जिस मानसिक स्थिति में कही है उसमें शब्द ही नहीं मिलते, भाव बिखरी हुई स्थिति में होते हैं और आस-पास की स्थिति ऐसी कि ग़ज़ल कहने बैठों तो नज़रें घूरती दिखती हैं। इस सबके बाद भी हृदय के भावों को जिस तरह से ग़ज़ल में ढाला गया है वह चुनौतीपूर्ण है।

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  22. तरही के मूड को प्रतिबिम्बित करती ग़ज़ल के लिए आदरणीय नीरज भाई साहब बधाई के पात्र हैं.
    लोकतन्त्र में रहनुमा लोक के दम पर ही खड़ा होता है ,लेकिन मीरा , तुलसी, और सन्तों, पैगम्बरों को गाने वाला यही लोक उन्हें गुनता कम है. सवाल फिर वही कि ”तुमने क्या किया है ”, बावजूद इसके, नीरज भाई साहब उम्मीद की किरण का दामन थामे हुए है. प्रेरक, सुन्दर , सरस और सार्थक अभिव्यक्ति, लोक से संवाद करती हुई. हार्दिक बधाई.

    अनन्या ‘हिमांशी’ ने ग़ज़ल के माध्यम से अपनी संवेदनाएँ बाख़ूबी रखी हैं.

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  23. तरही के मूड को प्रतिबिम्बित करती ग़ज़ल के लिए आदरणीय नीरज भाई साहब बधाई के पात्र हैं.
    लोकतन्त्र में रहनुमा लोक के दम पर ही खड़ा होता है ,लेकिन मीरा , तुलसी, और सन्तों, पैगम्बरों को गाने वाला यही लोक उन्हें गुनता कम है. सवाल फिर वही कि ”तुमने क्या किया है ”, बावजूद इसके, नीरज भाई साहब उम्मीद की किरण का दामन थामे हुए है. प्रेरक, सुन्दर , सरस और सार्थक अभिव्यक्ति, लोक से संवाद करती हुई. हार्दिक बधाई.

    अनन्या ‘हिमांशी’ ने ग़ज़ल के माध्यम से अपनी संवेदनाएँ बाख़ूबी रखी हैं.

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  24. आदरणीय नीरज गोस्‍वामी भाई साहब की ग़ज़ल सवालों के तीखे नश्‍तरों समेत दिल तक उतर गई। उनके ब्‍लॉग पर गद्य में उनकी टिप्‍पणियां हों या ग़ज़ल के रूप में उनके शब्‍द..........उन्‍हें पढ़ना हमेशा एक अनुभव से दो चार होना होता है। नीरज जी, कोई एक शे'र कोट करना अन्‍य इसी ग़ज़ल के दूसरे अश्‍'आर के साथ नाइंसाफी जैसा कुछ होगा इसलिए मुझे क्षमा करेंगे।

    उधर, हिमांशी की ग़ज़ल के कुछ अश्‍'आर मुझे इसलिए चौकाते हैं क्‍योंकि मैं उन्‍हें पहली बार पढ़ सुन रहा हूं। बिटिया ने गिरह बहुत साफ और अच्‍छी लगाई जिसके लिए बधाई।

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  25. इन दोनों गज़लों के लिये नीरज भाई और अनन्या को बधाई देने के स्थान पर पंकजजी का शुक्रिया अदा करूँगा जो इन बेहतरीन गज़लों का माध्यम बने हैं. तरही में आने वाली प्रत्येक गज़ल अनूठी है.

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  26. पिछले हफ्ते से चीन में होने के कारण ब्लॉग जगत से दूर रहा इसलिए टिपण्णी देने में विलम्ब हुआ .आज ही लौटा हूँ और आते ही ये शुभ काम कर रहा हूँ।

    सबसे पहले मैं शुक्र गुज़ार हूँ आप सब का जिन्होंने से मेरी एक साधारण सी ग़ज़ल को असाधारण रूप से सराहा। ये आप सबकी उदार प्रवृति का परिचायक है। मैं इस गुरुकुल की ग़ज़ल कक्षा का सबसे पिछली बैंच पर बैठा छात्र हूँ। कल तक जो मेरे साथ बैठे थे वो सभी अब अगली कक्षा में प्रवेश पा चुके हैं .
    आप सबने अपनी टिप्पणियों से मुझे गदगद कर डाला। आप सब का स्नेह मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है .

    अनन्या बिटिया की ग़ज़ल पढ़ कर यकीन हो गया की प्रतिभा उम्र की मोहताज़ नहीं होती. अगर ऐसा होता तो मेरी जैसी ग़ज़ल अनन्या कहती और अनन्या जैसी ग़ज़ल मैं।अपने दुःख को इस तरह शब्दों में ढालना अविश्वसनीय है। एक एक शेर कमाल का है। इस दुःख की घडी में हम तुम्हारे साथ हैं बच्चे।


    नीरज

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