होली के मुशायरे को लेकर जितनी बहस इस बार हुई है उतनी तो सिर्फ कला फिल्मों के समीक्षक ही करते हैं, और जिस प्रकार से कला फिल्मों के साथ होता है कि लोग उसको देखते हुए डर जाते हैं कि पता नहीं समझ में नहीं पड़े तो क्या होगा ठीक उसी प्रकार से इस बार तरही में लोग ग़ज़ल लिखते हुए डर गये कि ये जो लोग बहस कर रहे हैं न जाने क्या बात है । तो खैर होली का त्यौंहार सर पर आ ही गया । इस बार की तरही को लेकर होली पर एक पत्रिका निकालने का मन था जो पीडीएफ के रूप में बांटी जाती लेकिन तरही को लेकर ग़ज़लें इतनी कम आईं कि पीडीएफ का विचार ड्राप हो गया । खैर ये तजुरबे खाते में लिख लिया गया है कि होली के समय ना तो कठिन बहर ही देना है ना ही कठिन मिसरा । क्योंकि होली के समय आदमी का दिमाग कुछ भन्नाया रहता है । चलिये अब होली के मुशायरे की ओर चलते हैं ।
इस बार कुल 9 ग़ज़लें मिली थीं जो सारी ही आज के अंक में लगी हैं ।
वे सभी जो इस बार तरही में नहीं आये तथा बाहर खड़े होकर तरही देख रहे हैं सुन रहे हैं ( ये आपको हर शायर के आस पास नज़र आएंगें, कृपया फोटो पहचान कर बताएं कि किस किस शायर के साथ कौन कौन सा श्रोता है । )
होली का तरही मुशायरा
भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र
गौतम राजरिशी
बचचे का नाम गौतम राजरिशी है फौज में है और ग़लतफहमी ये है कि विश्व की हर कोमलांगी इस समय जिस एक मात्र शख्सियत पे मर रही है वो शख्सियत इनकी ही है । ग़लतफहमी पालने पर यदि सरकार टैक्स लगाने लगे तो अगले को भर भर के परेशानी होने लगे । पिछले दिनों एक पत्रिका में अत्यंत फूहड़ सी कहानी छपने के बाद अपने को कहानीकार समझ लेने कि अतिरिक्त ग़लतफहमी और पाल चुके हैं । भली करे करतार ।
है जादू अजब, या टोना ग़ज़ब, गुमाए है सुध तिलस्मी नज़र
मिला हो धतूरा, भंग में जैसे, ऐसी है वो नशीली नज़र
भुलाए इसे, हटाए उसे, फंसाए किसे, सटाए जिसे
भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र
उफनती हुई लहर है कोई, धधकती हुई या है कोई आग
भिगोये कभी, जलाए कभी, मुझे ये तेरी शराबी नज़र
कभी ये लगे है सुब्ह की चाय और कभी ये जूस लगे
थके हुये रतजगों में कभी, ये आती है बन के कॉफी नज़र
गुलाल उड़े, अबीर उड़े, उड़े है जो रंग चार दिशा
तो डोरे ये लाल-लाल लिए लुभाती है हमको तेरी नज़र
वाह वाह वाह क्या नये प्रयोग किये है अपनी ग़ज़ल को बदतर से बदतरीन बनाने में । उफ कितनी घटिया है ये समग्र गजल जैसे कि हम रितिक रोशन की फिलम काईट्स का सिक्वल देख रहे हों । सच में हमारी भारतीय फौज इस समय सही हाथों में है ।
नवीन सी चतुर्वेदी
मुम्बई में निवास करते हुए मुम्बई को बदलने की कोशिश कर रहे हैं । हिंदी को लेकर बहुत काम कर रहे हैं । राज ठाकरे को इनका पता बताना ही पड़ेगा कि आपकी मुम्बई में एक और आदमी ऐसा है जो हिंदी हिंदी चिल्ला रहा है कपड़े फाड़ के । पिछले दिनों इन्होंने लगभग ब्लैकमेल करके मुझे जैसे लगभग शरीफ आदमी ( ? ) से गंदे गंदे दोहे लिखवा लिये जिस पर ब्लाग जगत की सारी महिलाएं मुझसे नाराज हैं ( साजिश किसकी थी । )
खली सा बदन, अली सा वदन, नली सी है नाक, टेढ़ी नज़र|
तमाम जहान ढूँढा मगर, न तुझ सी हसीन आई नज़र|१|
थी दूर खड़ी, तो ऐसा लगा, वो हुस्न परी, जमालेजहाँ|
करीब से जो, निहारा उसे, तो पाया, वहाँ - जमीँ थी न जर|२|
करूँ क्या तरीफ, तेरी भला, गजब की तेरी मटकती नज़र|
भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र|३|
वसन्ती पवन, महकता चमन, दिलों का मिलन, मिटाए अगन|
ये होली सा पर्व जिसने दिया, करूँ मैं उसे खुदाई नज़र|४|
निहायत ही टुच्ची और छिछोरी ग़ज़ल । ऐसी ग़ज़ल जिसमें न सर है और न स्वाद । ऐसा लगता है कि जैसे ग़ज़ल न होकर किसी नामाकूल से कव्वाल द्वारा रात दो बजे के बाद की जा रही शायरी हो । क्यों लिखते हो भैया ग़ज़ल किसी डाक्टर ने कहा है क्या ।
रविकांत पांडेय
गौतम की केटेगिरी में शामिल इस खरगोश को भी एक बड़ी ग़लतफहमी इन दिनों पली हुई है और वो गलतफहमी ये है कि ईश्वर ने विश्व का सबसे सुरीला गला इनको ही दिया है । हालांकि इस गलतफहमी को सबसे पहले घर में ही बाकायदा घोषणा कर कर के इनकी धर्मपत्नी खंडित करती रहती हैं और मंच पर इनके श्रोता भी टमाटरों तथ अंडों से खंडित करने में देर नहीं लगाते हैं । मगर फिर भी गलतफहमी के दूर होने के अभी कोई आसार नहीं हैं ।
निकालने पर तुली है ये जान तेरी चुड़ैल जैसी नज़र
भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र
कमाल है जी कमाल है ये, धमाल है जी धमाल है ये
कड़ाह में प्यार वाली मुझे पकौड़ा समझ के तलती नज़र
है मिलती वो "भैंस" जब "किसी राह में किसी मोड़ पर" तो वहां
उपाय कई करूं तो क्या मेरी अक्ल की घास चरती नज़र
उफ मेरे छंद शास्त्र के प्रकांड पंडित, उफ मेरे छंद विधान के विश्व के एकमात्र बचे जानकार क्या ग़ज़ल लिखी है । जहां तक चुड़ैल का प्रश्न है वो तो ये सीहोर में मुझे बता चुके हैं कि चुड़ैल कौन है । जाहिर सी बात है जो खून चूसने का जो काम करे वही चुड़ैल है ।
राणा प्रताप सिंह
भारतीय वायु सेना को लेकर इन दिनों मुझे जो चिंता रहने लगी थी वो इनके ही कारण अब दूर हो गई है । आकाश में उड़ते हुए जब दुश्मन के हवाई जहाज को बम से उड़ाना होगा तो उसकी जगह ये अपना कोई बहुत ही घटिया सा शेर ( जो इनके पास बहुत से हैं ) सुना देंगें, वो बिचारा सुनते ही अपना हवाई जहाज खुद अपने हाथ से ज़मीन पर गिरा देगा । देश का कितना भला होगा बम की भी बचत होगी और दम की भी ।
गधों से बचा के नज़रें चलो वगरना तुम्हारी होगी नज़र
भटकती नज़र अटकती नज़र, खटकती नज़र,सटकती नज़र
नज़र ही नज़र से पीछा किया उठाई नज़र गिराई नज़र
नसीब हमारे फूट गए जो उसने मिलाई भेंगी नज़र
जो झाडू लगा के पोछा लगा के चाय बना के पेश किया
प्रसन्न हो श्रीमती जी अगर मिलेगी बहुत ही प्यारी नज़र
लगा के खिजाब मूछों पे भी जवान दिखें हैं बूढ़े सभी
मोहल्ले में एक हुस्न परी ने जब से उठाई अपनी नजर
मियाँ ये जो हैं ये कीड़े तलें औ पेश करें ये गुझिया हमें
इन्हें न पता हमें है खबर इन्होने जहां बचाई नज़र
जुगाड किया, उधार लिया, पसारे है कर, न काम बना
ये लफ्ज़ कहाँ छुपे है भला तलाश रही हमारी नज़र
मियां एकाधा श्ोर तो ऐसा कह देते कि जिसको कोट किया जा सके । मगर नहीं आपने तो क़सम खा रखी है कि जब भी तरही में आऊंगा तो ऐसी ग़ज़ल कहूंगा कि संचालक एक भी शेर को कोट न कर सके । क्यों भैया क्या संचालक से पिछले जनम का कोई पंगा है क्या ।
वीनस केशरी
उफ .... ये कौन आ गया । गालिब और मीर के बाद यदि कोई शायर हुआ है तो यही है । अमिताभ बच्चन के बाद यदि इलाहाबाद में कोई पीस ठीक ठाक पैदा हुआ है तो यही है । आपके गले की क़सम कैसे कैसे दर्दनाक शेर निकाल रहा है इन दिनों की क्या बताएं । हालांकि अभी भी कन्फ्यूज है । मगर फिर भी बात यही है कि जब इतना कनफुजियाआ हुआ है तब गालिब जैसा है, ठीक हो गया तो क्या होगा ।
मेरा तो नसीब फूट गया जो पड़ गई मुझ पे उसकी नज़र
भटकती नज़र अटकती नज़र खटकती नज़र सटकती नज़र
कभी तो मुझे गले से लगा कभी तो मुझे भी रंग लगा
ये क्या की मुझे बुला के करीब डांटे तेरी मटकती नज़र
झिंझोड मुझे, उछाल मुझे, उठा के मुझे पटक दे मगर
बिखर जो गया, समेत सकेंगी क्या तेरी सिसकती नज़र ?
आय हाय मेरे गालिबो मीर दो शेर में ही फूंक निकल गई । क्यों इलाहाबाद में इस बार अमरूद कम आये थे क्या । मियां अभी तो कुंवारे हो अभी ही अगर दो लिख पा रहे हो तो शादी के बाद तो केवल मिसरे से ही काम चलाओगे ।
निर्मला कपिला दी
लो ये भी आ गईं । ये तीन महासागरों से घिरे भारतीय भूमंडल की अकेली तथा पहली महिला हैं जो रिटायरमेंट के बाद भजन लिखने के बजाय ग़ज़ल लिख रहीं हैं । ग़ज़ल के साथ काफी प्रयोग करने की ये शौकीन हैं । सबसे अच्छा प्रयोग इन्होने जो किया है वो ये है कि बजाय एक ही बहर पर पूरी ग़ज़ल लिखने के ग़ज़ल के हर मिसरे में अलग बहर लाने का काम किया है । इनसे ग़ज़ल को काफी उम्मीद है ।
शिवेशवरी महेशवरी करे तु अगर कृपा की नज़र
न हीन रहूँ न दीन रहूँ मिले तुझ से रहमती नज़र
रही मचली,मगर उलझी न प्यार किया जला ये जिगर
न रंग गिरा न भंग मिली मिली मुझको दहकती नज़र
उसे दिल ने सवाल किया उठा पलकें न तीर चला
कभी उठती कभी झुकती रही छलती सुलगती नज़र
सवाल करूँ जवाब नही अकड करती खडी पनघट
जनाब कहे मुझे मत तू बुला चल जा खटकती नज़र
कफूर हुया मुहब्बत का नशा मिल कर रहा पछता
कभी कुढती कभी सहती कभी बहती छलकती नज़र
मतले में धर्म कर्म की बात करके आपने अपनी उमर बता ही दी । बताओ ग़ज़ल में भी भगवान । ये बुढ़ापा शै: ही ऐसी है कि आदमी को उठते बैठते हर जगह भगवान ही दिखाई देता है । हर बात पर भगवान के पास प्रार्थना पत्र देना ही बुढा़पे की असली पहचान है ।
दिगंबर नासवा
नाम से ही जो दिगंबर हो उससे कोई क्या कहे । दुबई में रहते रहते इनको भी ग़ज़ले लिखने का शौक तब लगा जब पता चला कि दुबई के शेखों को ऐसी ग़ज़लें सुनने का बहुत शौक है जो उनको समझ में बिल्कुल ही नहीं आये । और ऊपर वाले के फजल से इनके पास तो इस प्रकार की ग़ज़लों की इफरात है जो शेखों की तो छोडि़ये इनको खुद ही समझ में नहीं आतीं हैं । इन दिनों किसी सही शेख की तलाश में हैं ।
भटकती नज़र अटकती नज़र ख़टकती नज़र सटकती नज़र
तुझे न लगे ए जान जिगर फिसलती हुई ये मेरी नज़र
तू शोर मचा, धमाल मचा, अबीर उड़ा, गुलाल लगा
न अपने बदन पे रंग लगा न अटके कहीं छिछोरी नज़र
है चारों तरफ अजीब सी जंग न होली का रंग न मस्त उमंग
तू तीर चला, कटार चला, दिलों पे चला दे तिरछी नज़र
ये गाल रंगूँ, ये हाथ रंगूँ, है चाह मेरी ये माँग रंगूँ
जो बाप तेरा न थाने गया तुझी से चुरा लूँ तेरी नज़र
सुनो पप्पू, पहले तो बताओ कि कौन कौन सा शेर किस किस बहर पर लिखा गया है । मेरे विचार में तो तुम यदि मुशायरा पढ़ोगे तो कुछ इस प्रकार पढ़ोगे '' इस शेर पर ध्यान चाहूंगा इसका एक मिसरा रजज पर है और दूसरा हजज पर है ''।
प्रकाश पाखी
क्या आपने कोई ऐसा बैंक मैनेजर देखा है जो कि ग़ज़लें भी लिखता हो, नहीं देखा हो ता ऊपर की तस्वीर को देख लीजिये । ये विश्व का एक मात्र बैंक मेनेजर है जो ग़ज़लें भी लिखता है । इसके कई फायदे हैं जैसे लोन लेने के लिये यदि कोई आया है तो उसे लोन का फार्म भरवाते भरवाते चार आठ ग़ज़लें पेल दो । उस समय तो उसकी हालत कीचड़ में फंसे शेर की ही तरह होती है ।
भटकती नजर अटकती नजर खटकती नजर सटकती नजर
ये हुस्न औ शबाब रंग औ जिस्म मिल गए तो फिसलती नजर
ये बढती उमर, लटकते है पाँव कब्र में, है जवानी बड़ी
खराब मन की जो ढूंढती है फिर लख्ते जिगर,शराबी नजर
महंगा है प्याज लहसुन मिलती ज्वेलरी की दुकान पे अब
फटे है नयन हमारे आई तिजोरी में फूल गोभी नजर
हुए गिर कर कमीने औ चोर हम तो शबाब पर न गयी
न ही धन पर गयी बस प्याज पर थी हमारी लोभी नजर
सी डब्लू जी टू जी कुछ तो मैं ले लू जी बड़ी भरी सेल लगी
मिले सब सस्ता लूट का माल अपना ये दिखता बोली नजर
आपको भी लगता है कि मुझे मेरे बचपन के कस्बे इछावर का एक मुशायरा पढवाना ही पड़ेगा जहां पर श्रोता जब बहुत गुस्से में आ जाते हैं तो शायर को एक बड़े बोरे में भर कर मंच के पीछे ले जाकर पूरे भक्ति भाव से उसकी धुलाई करते हैं ।
संजय दानी
इनके बारे में क्या कहा जाये । इन्होंने अपनी ग़ज़ल के साथ जो अपनी मुखछवि ( फोटो) भेजी वो इतनी छोटी सी थी मानो फोटो के भी पैसे लग रहे हों । किसी ग्राफिक डिजायनर की यदि हत्या करनी हो तो इनका ये वाला फोटो उसको भेज दो कि यार इस फोटो पर कुछ काम कर दों । फोटो का साइज ही देख कर अगला आत्महत्या कर लेगा । जहां तक ग़ज़ल का प्रश्न है तो वो तो आप देख ही लेंगें की वो क्या है ।
भटकती नज़र अटकती नज़र खटकती नज़र सटकती नज़र,
ख़ज़ाने में होली के हैं तरह तरह के कई हटेली नज़र।
रगों का पहाड़ डोल रहा है भांग की मस्ती की दुआ से
खटाक से अर्श नापे, धड़ाम से ज़मीं फिर पकड़ती नज़र।
निकाह अमीर लड़की से करके पैसा तो आया , लड़की की पर
कमर बड़ी है ,दिमाग़ है खाली ,कांपते बोल, भैंगी नज़र।
तमीज़ो-हवस की गाड़ी का ब्रेक फ़ेल हुआ मरेंगे सभी,
ये देख मुहल्ले वालों की ख़ौफ़ से डरी अटकी सटकी नज़र।
मुहब्बतों के फ़लक पे अमीरी देता नहीं किसी को ख़ुदा
हसीनों के मुल्क में रहे हर अमीर की भी भिखारी नज़र।
लहू है तेरी जबीं को अजीज़ और क़बाब है ज़ुबां को,
ख़ुदा के करम से सिर्फ़ हसीनों को मिली है शिकारी नज़र।
अकेले चला है दानी तुझे गुलाल लगाने होली में पर,
अजीज़ है तुमको सैकड़ों मर्दों की ख़ता -ओ- हरामी नज़र।
आपसे तो कुछ इसलिये नहीं कहा जा सकता कि आपके तो नाम में ही दानी लगा हुआ है । वर्तमान में हर दानी आदमी वो है जो अपना कूड़ा कबाड़ दूसरों को दान देकर पुण्य कमाता है । आप तो दानी नहीं महादानी हो जो अपने दिमाग़ का कूड़ा कबाड़ श्रोताओं को दान कर रहे हो । जय हो ।
और अंत में सबको होली की शुभकामनाएं, रंग डालें अपने हर दोस्त को अपनेपन के रंग में, हर दुश्मन को दोस्ती के रंग में और जिंदगी को इस प्रकार जियें कि कहीं कोई दुश्मन ही नहीं हो ।
जय हो होली की ।