सोमवार, 8 मार्च 2010

महिला दिवस पर एक कविता, जो समर्पित है मेधा पाटकर, किरण बेदी और कल्‍पना चावला जैसे नामों को, नाम जो विद्रोह हैं, महिला बने रहने से विद्रोह के नाम । पंकज सुबीर

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महिला दिवस

जुट पड़ी हैं ढेर सारी महिलाऐं
सभागार में,
आठ मार्च जो है..!
लिपिस्टिक से पुते होठों,
कांजीवरम की साड़ियों,
और इत्र फुलैल का महिला दिवस!
मेधा पाटकर तो नहीं लगाती कभी भी
लिपिस्टिक..!
मेरे ख्याल से लक्ष्मी बाई ने भी
नहीं लगाई होगी कभी..!
किरण बेदी को देखा है कभी आपने?
कांजीवरम की साड़ी पहने..!
हाँ हेमा मालिनी को अवश्य
देखा होगा!
सही भी है,
बहुत बड़ा फर्क है,
कल्‍पना चावला होने में
और राखी सावंत होने में,
फिर ये महिला दिवस है किसका
मेधा पाटकर का?
या फिर
एश्वर्या राय का?
और यदि यही है
सभ्य समाज का महिला दिवस
तो फिर इसमें नया क्या है
आखिर...?
है ना नया..!
लिपिस्टिक से रंगे होंठ
आज किरण बेदी, कल्पना चावला
और अरुंधती राय जैसे नामों को
दोहरा रहे हैं,
उन नामों को जो वास्तव में
हैं ही नहीं नाम महिलाओं के,
ये तो विद्रोह के नाम हैं
विद्रोह महिला बने रहने से,
विद्रोह इत्र फुलैल और कांजीवरम से,
आप ही बताइये
क्या आप सचमुच मेधा पाटकर
को महिला की श्रेणी में रखेंगे?
यदि रखते हैं
तो फिर ठीक है..!
सड़क किनारे पत्थर तोड़ती
धनिया बाई के पसीने
की बदबू से बहुत दूर
इत्र फुलैल से महकता
गमकता ये सभागार
बधाई हो आपको!

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14 टिप्‍पणियां:

  1. सडक के किनारे पत्तथर तोडती
    धनिया बाई के पसीने
    की बदबू से बहुत दूर
    इत्र फुलैल से महकता
    ममकता ये सभागार
    बधाई हो आपको
    दिल को छू गयी ये पाँक्तियाँ । सही बात है धनिया बाई जैसी औरतों के लिये शायद महिला दिवस कोई मायने नही रखता। जब तक इस दिवस की दशा और दिशा मे सार्थक प्रयास नही होगा तब तक ऐसे दिवस मनाने का कोई औचित्य नही है। दिल को छू गयी आपकी ये रचना। हमेशा ही आपकी सामाजिक मुद्दों पर गहरी नजर रहती है,कहानी हो ,कविता या कोई भी विधा हो। धन्यवाद इस रचना के लिये और आशीर्वाद। ऐसे ही मुद्दे आप उठाते रहें।

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  2. सिर्फ मनाने के लिए है...
    मानने के लिए नहीं, आखिर कौन किसको माने.
    सही मुद्दे खड़ी बात.

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  3. पंकज जी, आदाब
    ये नारियों को ही तय करना होगा कि किस दिशा में जाना है.
    वैसे समाज में महात्मा गांधी, सुभाषचंद बोस. स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलने वाले भी कितने हैं?
    बहुत सटीक रचना है. बधाई
    महिला दिवस पर सभी को शुभकामनाएं.

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  4. बेहद खूबसूरत ! असली बात कह गये आप ! आभार !

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  5. बहुत ही खूबसूरती से आईना दिखा दिया।

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  6. अधबुध लिखा है गुरुदेव .. बहुत आसानी से कह दिया आपने ... स्पष्ट चिंतन .... आज महिला दिवस भी कुछ ऐसी ही महिलाओं का शोषण बन के रह गया है ....
    वैसे आपने इतनी खरी बात कह तो दी है ... कहीं आपको भी पुरातन न कहने लगें कुछ आधुनिकता वादी ....

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  7. ये दिवस तो हर बार कुछ समारोह तक ही सिमट जाते हैं जिसमे साल भर के लिए कुछ झूठे मूठे संकल्प भी लिए जाते हैं चाहे वो कोई भी दिवस हो. आपकी कविता इस सच्चाई को बखूबी बयाँ कर रही है क्योंकि जो सही में कुछ करते है उन्हें किसी खास दिन की ज़रुरत नहीं होती.
    लफ़्ज़ों के माध्यम, से जो चित्रण है वो बहुत स्पष्ट और सजग बना है.

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  8. ऐसे मनाये महिला दिवस
    सर्वसाधारण के हित में http://sukritisoft.in/sulabh/mahila-diwas-message-for-all-from-lata-haya.html

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  9. बहुत सही लिखा है आपने गुरु देव , कविता में दोनों ही तरह की महिलावों ko जिस तरह से आपने एक किया है wo अद्भूत है ... मन प्रसन्न हो गया ,....


    अर्श

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  10. गुरु जी प्रनाम आज तो दिल खुश हो गया क्योकी आपने वो बात कह दी जिसे मैंने आज पूरे दिन सोचा है
    आज न्यूज चैनल में दिखाया गया कि स्पा सेंटर ने बिना पैसे लिए महिलाओं का फुल ट्रीटमेंट किया
    और महिलाओं ने महिला दिवस मनाया
    अब बताईये और क्या कहूँ

    अगर महिला आरछन विधेयक (???) पास हो जाता तो सही मायनों में महिला दिवस का सुख मिलता

    आज मेरी माता जी का जन्मदिन था ८ मार्च को :)

    भभ्भड़ जी की हजल पढ़वाए बिना बिना नई पोस्ट का बहिस्कार उसी तरह किया जा सकता है जिस तरह आज मुलायम और लालू जी ने विधेयल का बहिष्कार किया था :)

    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
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    भभ्भड़ जी की हजल पढवाईये
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  11. बहुत सटीक पोस्ट लिखें हैं आप...वैसे औचित्य क्या है ऐसे दिवसों का? मुझे आज तक कुछ समझ नहीं आया सिवाय इसके के इसकी आड़ में कुछ चापलूस किस्म के लिजलिजे लोग महिला या पुरुष एक दूसरे का गुणगान कर एक दूसरे को माल्यार्पण कर खुश हो लेते हैं...बस...कहीं कुछ ऐसा सार्थक नहीं होता जिसका जिक्र किया जाए...
    नीरज

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  12. भावपूर्ण कविता...देश में महिलाएँ बहुत है जो संसद तक तो पहुँच ही नही सकती उनके लिए तो दाल रोटी का इंतज़ाम ही बहुत है...बढ़िया कविता..धन्यवाद

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  13. जो चिंतन में विश्‍वास रखते हैं वो सोचें, जो नहीं उनके लिये वनडे मातरत। जी हॉं, कहना सुनना अच्‍छा नहीं लगता लेकिन जिस देश में वन्‍दे मातरम् का निराकरण एक दिन के गायन से हो जाता हो वहॉं महिला दिवस मनायें, वृद्ध दिवस मनायें या बाल दिवस मनायें, एक दिन ही तो लाउडस्‍पीकर लगाने हैं। हो गयी भाषणबाजी, हो गया दिवस। मर्यादाओं के बंधन हैं, बहुत कुछ कहने में असमर्थ हूँ।

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  14. जिन महिलाओं के नाम इस पोस्ट में लिए गए हैं क्या कोई समानता है उनमें

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