शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

होली आ गई है, फाग गायन होने लगा है, तरही मुशायरे की तैयारी हो रही है और योगेंद्र मौदगिल की पहली धमाकेदार ग़ज़ल आ चुकी है

होली को लेकर इस बार ये तो है कि हमारे यहां पर पानी का संकट होने के चलते होली पर काफी असर होगा । उस पर ये भी कि इस बार लोकसभा चुनावों को लेकर सारी परीक्षाएं पूर्व में हो रही हैं सो बच्‍चों की टोली इस बार होली पर दूर ही रहेगी । मगर होली तो होली है उसे कौन रोक सकता है । वसंत का सबसे अद्भुत पर्व है होली । मैं तो कल्‍पना करके ही अभिभूत रह जाता हूं कि होली जब कृष्‍ण और राधा के बीच होती होगी तो उसका कैसा रंग जमता होगा । होली प्रकृति का त्‍यौहार है । उसका किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं होता । मुझे आज भी याद है कि बचपन में हमारे साथ मुस्‍लिम लड़कों की भी टोली शामिल रहती थी होली के धमाल में, मगर आज न जाने कैसी हवा चली की सब बिखर गया । आज ये कवल हिन्‍दुओं का ही त्‍यौहार रह गया है । खैर वो सुब्‍ह कभी तो आयेगी । फिलहाल तो हमारे शहर में होली का रंग जमने लगा है फाग गायन तो शुरू हो गया है ।

कई दिनों से हमने ग़ज़लों की बात नहीं की है । गौतम ने कुछ प्रश्‍न उठाये थे तथा कुछ प्रश्‍न कुछ और विद्यार्थियों के भी हैं । दरअस्‍ल में कुछ एबों के बारे में आज हम बातें करते हैं । गौतम ने कुछ दिनों पहले एक ग़जल लिखी थी जिसमें काफिया की ध्‍वनि थी 'अर' अर्थात कर, डर, झर आदि । इस ग़ज़ल में ये हो रहा था कि चौथे और पांचवे शेर में मिसरा उला का समापन भी ऐसी ही ध्‍वनि से हो रहा था । इसे दोष माना जाता है । आपकी ग़ज़ल में कवल मतला ही ऐसा शेर होना चाहिये जिसमें कि दोनों ही मिसरों में रदीफ काफिया की ध्‍वनि आ रही हो । यदि आप इसमें का एकाध और शेर कहते हैं तो उसे भी मतला के समकक्ष माना जाता है तथा उसे हुस्‍ने मतला कहा जाता है । किन्‍तु बात एकाध तक ही रहनी चाहिये उससे जियादह नहीं । बहुत सीधी सी बात है कि मतले में दोनों मिसरों में काफिया होता है रदीफ होता है ये तो हम सब जानते हैं । किन्‍तु हमको ये भी जान लेना चाहिये कि मतले के अलाव बाकी के शेरों में दोनों मिसरों में काफिया रदीफ की ध्‍वनि नहीं आनी चाहिये ।एक की गुंजाइश है जिसे हम हुस्‍ने मतला कह के पढ़ सकते हैं । ध्‍यान दें के मैं ध्‍वनि की बात कर रहा हूं । अर्थात बाकी के शेरों के मिसरा उला में समापन काफिया या रदीफ की ध्‍वनि से भी न हो ।

एक और एब होता है जो कि हमे लिखते समय तो नहीं दिखता लेकिन जब हम पढ़ते हैं तो साफ हो जाता है । हम अपने शेरों में अक्षरों के सटे हुए दोहराव से बचें जैसे आपने लिखा तुम मकानों  अब इसमें क्‍या हुआ कि दो अक्षर एक के पास एक आ रहे हैं । ये जो पास पास का दोहराव है ये आपको लिखते समय तो कुछ नही अड़ेगा लेकिन पढ़ते समय समस्‍या पैदा कर देगा । आप इसको ठीक से उच्‍चारण नहीं कर पायेंगें । दूसरा यदि आपने तुम मकानों जो बाद का   है वो पहले वाले में मिल रहा है और पूरे वजन को बिगाड़ रहा है । प्रयास ये करें कि दो समान अक्षर पास पास न आयें ।  तुम मेरे हो  भले ही गीत में चल जायेगा क्‍योंकि आप  पढ़ते समय तुम  पर स्‍वर भंग कर के विश्राम के बाद मेरे  पढ़ेंगें । किन्‍तु ग़ज़ल में तो ये होगा नहीं वहां पर तो रुकने का विश्राम का समय ही नहीं होता । ये भी एक प्रकार का एब है इससे भी बचना चाहिये । अगली कक्षा में बातें करेंगें कुछ और एबों की ।

तरही मुशायरे को लेकर पहली ग़ज़ल योगेंद्र जी की आ चुकी है और ऐसी है कि हठीला जी तथा मैं पढ़ पढ़ कर लोट पोट होते रहे हंस हंस के । सभी लोग जल्‍द भेजें अपनी ग़ज़लें । मिसरा तो याद है न  तुम्‍हारे शह र के गंदे वो नाले याद आते हैं  काफिया है आले  और रदीफ है  याद आते हैं । याद रखें कि अपनी ग़ज़ल यहां पर टिप्‍पणी में नहीं लगायें बल्कि मुझे subeerin@gmail.com पर मेल करें । और हां होली के अवसर पर हठीला जी के सौजन्‍य से सभी कवियों को चार चार पंक्तियों की उपाधियां भी दी जायेंगीं । उसके लिये अपना एक सामान्‍य सा परिचय और एक मनमोहक फोटो भी भेजें । जल्‍दी करें क्‍योंकि फिर बस निकल जायेगी । एक दो लोगों ने मेल किया है कि वे हास्‍य नहीं लिख पा रहे । मित्रों यदि आप नहीं लिख पा रहे तो गंभीरता से सोचें कि कहां चला गया आपके जीवन से हास्‍य ।

होली के अवसर पर प्रस्‍तुत हैं कुछ पुराने चित्र जिसमें मेरे सर पर बाकायदा बाल नज़र आ रहे हैं जो अब हड़प्‍पा मोहन जोदड़ो की तरह अवशेष के रूप में खुदाई में कहीं कहीं मिलते हैं ।

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बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

सड़ांधों में जो दिन हमने निकाले याद आते हैं, तुम्‍हारे शहर के गंदे वो नाले याद आते हैं,

अब तो गुलजार साहब ने आस्‍कर भी जीत लिया । वैसे मेरा मानना है कि गुलजार साहब लता मंगेशकर जी ये वो शख्‍सियतें हैं जो कि दुनिया के किसी भी पुरुस्‍कार से ऊपर हैं । और फिर जिस गीत जय हो पर गुलजार साहब को आस्‍कर मिला है वो उनकी प्रतिभा का एक अंश मात्र है अगर आस्‍कर वाले 'तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं '' को अंग्रेजी में अनुवाद करके सुन लें तो उनको पता लगेगा कि गुलजार जिस शख्‍सियत का नाम है वो क्‍या है । मैं अगर अपनी कहूं तो मैं लता मंगेशकर जी और गुलजार साहब का पता नहीं कौनसा फैन हूं । गुलजार साहब जो लिख देते हैं वो ही कविता हो जाता है । फिर भी मुझे सबसे ज्‍यादा पसंद हैं माचिस के गीत । उस फिलम के सारे गीत अद्भुत प्रेम गीत हैं । उनको सुनकर ऐसा लगता है कि प्रेम क्‍या होता है ।

चलिये अब बात करते हैं हमारे इस बार के होली के तरही मिसरे की । इस बार होली को लेकर हास्‍य का मिसरा दिया गया है । होली है ही ऐसा त्‍यौहार जिसमें उल्‍लास होता है उमंग होती है मस्‍ती होती है । मुझे होली के फाग गीतों पर नाचने का बहुत शौक है हमारे यहां पर कई सारी फाग मंडलियां हैं जो कि होली पर फाग गायन करती हैं । कई सारे आयोजन भी होते हैं जिनमे शहर के सभी लोग एकत्र होकर खूब नाचते हैं झूमते हैं । गीत '' आज बिरज में होरी रे रसिया'' , ' मैंने रंग ली आज चुनरिया'', कान्‍हा धरो रे मुकुट खेरो होरी'' , 'डार गयो डार गयो डार गयो रे रंग डार गयो मोपे अवध बिहारी'' जैसे कई सारे गीतों को ये मंडलियां प्रस्‍तुत करती हैं । हमारे यहां पर कई सारे नृत्‍य विशेषज्ञ हैं जो कि इन पर न केवल खुद नाचते हैं बल्कि औरों को भी शामिल करते हैं । मुझे जो फाग गीत सबसे ज्‍यादा पसंद है वो है कान्‍हा धरो रे मुकुट खेरो होरी, कान्‍हा धरो रे '' ।

तो बात चल रही थी तरही मुशायरे की जिसमें इस बार मिसरा दिया है तुम्‍हारे शहर के गंदे वो नाले याद आते हैं । एक अनुरोध है कि ग़ज़ल को पूरी मस्‍ती से लिखें । कहीं कोई दुख दर्द को शेर न रखें । होली है इसलिये हास्‍य का प्रधान रखें । किसी को रुला देना आसान है किन्‍तु किसी को हंसा देना बहुत मुश्किल है । इसलिये आनंद की ग़ज़ल लिखें । निर्मल आनंद की गज़ल जिसका हर शेर मन को गुदगुदा जाये । होली को सार्थक कर जाये । मूलत: ये ग़ज़ल मैंने कुछ ऐसे लिखी थी ।

तिरी आंखों के वो सौंधे उजाले याद आते हैं

ज्‍यों गंगा तीर के पावन शिवाले याद आते हैं

इसमें कुछ लोगों ने आपत्‍ती उठाई थी कि सौंधी तो खुश्‍बू होती है उजाले नहीं, इस पर मैंने उत्‍तर दिया था कि मुझे तो गुलजार नाम के शख्‍स ने बिगाड़ा है इसलिये पहले उनसे पूछो कि आंखों की महकती खुश्‍बू का अर्थ क्‍या है ।

इसी ग़ज़ल का एक और शेर है

तिरे वो हाथ जो छूकर मुझे मदहोश करते थे

महकते और हिना के रंग वाले याद आते हैं

इसी पर ये मजाहिया मतला लिख कर पूरी ग़ज़ल भी कहीं थी कभी

तिरे भाई वो मुस्‍टंडे जिन्‍होंने हड्डियां तोड़ीं

जो होते होते रह गये मेरे साले याद आद आते हैं

तो जल्‍दी भेज दीजिये एक निर्मल आनंद की ग़ज़ल । अनुपस्थिति के लिये बीच बीच में गैप के लिये क्षमा चाहूंगा क्‍योंकि इन दिनों परीक्षाओं का सीजन है ।

कई लोगों ने जानना चाहा है ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी के बारे में उसे बारे में विस्‍तृत जानकारी नीरज जी देंगें । बस इतना जान लें कि संभवत: 14 मार्च को दिल्‍ली में उसका विमोचन है, तथा संभवत: मैं भी उस कार्यक्रम में शामिल होने दिल्‍ली आऊंगा । पुस्‍तक भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित की है पुस्‍तक की कीमत 130 रुपये है जिसे भारतीय ज्ञानपीठ, 18 इन्‍स्‍टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नयी दिल्‍ली 110003, Email : sales@jnanpith.net  से प्राप्‍त किया जा सकता है । पुस्‍तक का ISBN नंबर 978-81-263-1691-5 है ।

चलिये आज का चित्र

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बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

और ये रहा हासिले मुशायरा शेर जिसको चयनित किया है मेरे मित्र कवि श्री रमेश हठीला जी ने

तरही मुशायरा पिछली बार की तुलना में बेहतर रहा भले ही पिछली बार की तुलना में कम लोग थे मगर जो थे वे अपने बेहतरीन प्रदर्शन के साथ थे । कुछ अच्‍छे शेर सुनने को मिले । जब मैंने रमेश हठीला जी को ग़ज़लों के प्रिंट आउट देकर कहा कि इनमें से एक शेर निकालो जिसको कि हम हासिले मुशायरा का दर्जा दे सकें तो पहले तो उन्‍होंने सारी ग़ज़लें पढ़ने के बाद कहा कि सुबीर इत्‍ती अच्‍छी ग़ज़लें तो कभी तुमने भी नहीं लिखीं जितनी तुम्‍हारे कक्षा के विद्यार्थी लिख रहे हैं । हाय हाय हठीला जी किसी के सामने सच को ऐसे भी कहा जाता है क्‍या । किन्‍तु मैं तो उस पर विश्‍वास करता हूं कि ''जो बड़री अंखिया निरख अंखियन को सुख होय'' अर्थात नायिका जब दर्पण में अपनी बड़ी होती आंखों को देख्‍ाती है तो उसकी आंखों को ही सुख होता है । अर्थात सीखने वालों का कद अपने से बड़ा होता देख सिखाने वाले को हमेशा सुख होता है । फिर मैंने हठीला जी से कहा गुरू साहब ( यही कह कर बुलाता है उनको पूरा सीहोर ) आचरेकर जी को बल्‍ला लेकर मैदान में उतार दो तो वो क्‍या उस तरह से खेल पायेंगें जिस प्रकार से तेंदुलकर खेलता है । तो बात वही है कि सिखाने वाला और सीखने वाला ये दो अलग लोग होते है ।

खैर आज तो परिणाम घोषित करने का दिन है । रमेश जी ने जिस शेर को हासिले मुशायरा के रूप में निकाला है वो इस मायने में महत्‍वपूर्ण है कि उसमें आज की पीड़ा है । कहते हैं कि साहित्‍य समाज का दर्पण है तो साहित्‍य को हमेशा वही दिखाना चाहिये जो आज के समाज में घट रहा हो । कुछ ऐसी घटनाएं जो घटी हों और जिनके कारण समाज की दिशा पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगा हो उनको साहित्‍य ही अगर स्‍थान नहीं देगा तो कौन देगा । इस मायने में आज के हासिले ग़ज़ल शेर के शायर हैं

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अंकित सफर

और शेर है

नशे में चूर गाड़ी ने किया यमराज से सौदा

नहीं मालूम दौलत को सड़क पे लोग सोते हैं

अंकित को बहुत बहुत बधाई । शेर अपने आप में सम्‍पूर्ण है । विशेषकर जिस प्रकार से मिसरा सानी को लिखा गया है प्रतीको के माध्‍यम से वो  बेहतरीन बन पड़ा है । समाज के वर्गों के बीच की खाई को कुशलता के साथ इंगित किया है अंकित ने । अंकित जो पुणे में मैंनेजमेंट के छात्र हैं तथा अपने अंतिम वर्ष में हैं तथा अंकित सफर की कलम से  के नाम से अपना ब्‍लाग http://ankitsafar.blogspot.com/ चलाते हैं । हालंकि ये भी सच है कि पिछले एक माह से उस ब्‍लाग पर कोई पोस्‍ट नहीं लगी है । अंकित मूलत: उत्‍तराखंड के रहने वाले हैं तथा अभी पुणे में अपना ठिकाना बना रख है । अंकित को बधाई ।

चलिये अब होली के मुशायरे के लिये मिसरा बहर यही है जो पिछली बार थी ।

तुम्‍हारे शह् र के गंदे वो नाले याद आते हैं

बहर तो वहीं है काफिया है 'आले' और रदीफ है याद आते हैं  ।

मैंने कल की पोस्‍ट पर एक खुश्‍खबरी के बारे में कहा था जो मुझे कल ही प्राप्‍त हुई थी । उसके बारे में आपको शीघ्र ही जानकारी मेंरे किसी मित्र के ब्‍लाग पर मिल जायेगी  ।

और आज का फोटो गुरू श्रद्धेय डॉ विजय बहादुर सिंह जी हाथों प्रेमचंद सम्‍मान । डॉ सिंह आजकल कोलकता से प्रकाशित होने वाली साहित्‍य की अग्रणी पत्रिका वागर्थ के सम्‍पादक हैं ।

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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

तरही मुशायरा का तीसरा भाग जिसमें दोनों शायर भारतीय सेना के हैं समर्पित है समर्पित मुंबई में शहीद संदीप उन्‍नीकृष्‍णन को

तीसरा भाग और जिसे कि हम अंतिम भाग भी कह सकते हैं ये समर्पित है मुम्‍बई में भेडि़यों की टोली से लड़ते हुए शहीद हुए हमारे शेर संदी उन्‍नीकृष्‍णन को । आज का ये मुशायरा संदीप को समर्पित करने के पीछे एक कारण ये है कि आज के दोनों ही शायर सेना के हैं एक मेजर है तो दूसरा कैप्‍टन । सेना में रह कर शायरी करना सुनने में थोड़ा अजीब ज़रूर लगता है पर वास्‍तव में अजीब है नहीं क्‍योंकि ग़ज़ल में भी शेर होते हैं और भारतीय सेना में भी शेर ही होते हैं  । अभी एक कविता पर काम कर रहा हूं जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं

अब थोड़ी बातें हम करलें उन बलिदानी वीरों की

लड़े मौत से हंस कर जो उन हिन्‍दुस्‍तानी शेरों की

जिनके दम पर आज वतन की सजी हुई ये झांकी है

उनका खून अभी भी कर्जा बनकर हम बाकी है

जिसने मान बचाने भारत का बलिदान किया जीवन

सौ शेरों पर भारी था वो इक संदीप उन्‍नीकृष्‍णन

और आज का फोटो भी मुशायरे के प्रारंभ में शहीद उन्‍नीकृष्‍णन की एक तस्‍वीर

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नमन नमन नमन

मास्‍साब : और अब आ रहे हैं गौतम राजरिशी जो संदीप के करीबी रहे हैं और आप भी सेना में मेजर हैं । देहरादून में सैन्‍य अकादमी में पदस्‍थ हैं । बहुत अच्‍छे शायर हैं और उतने ही अच्‍छे इंसान भी हैं । तालियों के साथ स्‍वागत करें गौतम का । और हां गौतम का कहना है कि तरही मुशायरे में भी संटी रखी जाये उससे माससाब सहमत नहीं हैं । जब कोई कवि या शायर मंच पर काव्‍य पाठ कर रहा हो तब उसे केवल प्रशंसा देनी चाहिये गुणदोष निकालने का काम तो हम बाद में कर सकते हैं । हमारे यहां कहा गया है कि दूल्‍हे को शादी के पांच दिनों तक नहीं डांटा जाता । तुलसीदास ने मित्र की परिभाषा दी है कि जो सार्वजनिक स्‍थान पर अपने मित्र के ''गुण प्रकटहीं अवगुणहीं दुरावा '' अर्थात गुणों को प्रकट करता है और अवगुणों को छुपाता है । और अकेले में गुणों की बात नहीं करता केवल अवगुणों की चर्चा करता है । किसी अंग्रेज दार्शनिक ने कहा है कि प्रशंसा की संतुलित मात्रा दवा का काम करती है किन्‍तु ओवरडोज होने पर वही दवा जहर बन जाती है, प्रशंसा उत्‍साह वर्द्धन करती है अत: प्रशंसा अवश्‍य करें किन्‍तु ये ध्‍यान रखें कि वो ओवरडोज न हो जाये ।

गौतम राजरिशी : सर होमवर्क प्रस्तुत है...पता नहीं कैसी बनी है ये गज़ल:-


हरी है ये जमीं हमसे कि हम तो इश्क बोते हैं
हमीं से है हँसी सारी, हमीं पलकें भिगोते हैं
धरा सजती मुहब्बत से, गगन सजता मुहब्बत से
मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं
करें परवाह क्या वो मौसमों के रुख बदलने की
परिंदे जो यहाँ परवाज़ पर तूफ़ान ढ़ोते हैं
अज़ब से कुछ भुलैंयों के बने हैं रास्ते उनके
पलट के फिर कहाँ आये, जो इन गलियों में खोते हैं
जगी हैं रात भर पलकें, ठहर ऐ सुब्‍ह थोड़ा तो
मेरी इन जागी पलकों में अभी कुछ ख्वाब सोते हैं
मिली धरती को सूरज की तपिश से ये खरोंचे जो
सितारे रात में आकर उन्हें शबनम से धोते हैं
लकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है
वो कोई और होंगे अपनी किस्मत पे जो रोते हैं

मास्‍साब : वाह वाह वाह मतले ने मानो पूरी की पूरी भारतीय सेना को साकार कर दिया है । आनंद आ गया गौतम, । सितारे रात में आकर उन्‍हे शबनम से धोते हैं । और अब आ रहे हैं गौतम के ही मित्र कैप्‍टन संजय चतुर्वेदी ।

कैप्‍टन संजय चतुर्वेदी  : सादर नमस्कार.विलम्ब हेतु पुनः क्षमा प्रार्थी हूँ कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के चलते समय पर कक्षा में नहीं आ सका . माँ सरस्वती के उतसव पर ढेरों शुभ कामनायें.

जो साहूकार  के  घर में दही  मक्खन बिलोते हैं
उन्हीं  की गोद  में बच्चे  वहीं  भूखे ही सोते हैं

कभी रिश्तों की माला टूट भी जाये तो क्या रोना
चलो  मोती  चुनें  फिर से  नये  धागे  पिरोते हैं

कभी जो ताज़ को देखा यही निकला मेरे दिल से
मुहब्बत  करने  वाले  खूबसूरत  लोग  होते  हैं

ऍंगौछा  पेट  में  बांधे  मनायें  रात  हो  छोटी
उधारी  में  मिले  दाने  जो  बोने को भिगोते हैं

मिला काँटों  से  तो जानी हकीक़त फूल क़ी मैने
हरे पत्तों  में  छुपकर  फूल ही नश्तर चुभोते हैं 

कहें साजिश कि भोलापन कहें दीवानगी इसको
लहर के प्यार में माँझी खुद ही  कश्ती डुबोते हैं

मास्‍साब : लहर के प्‍यार में मांझी खुद ही कश्‍ती डुबोते हैं । भई वाह कैप्‍टन साहब आपने तो आनंद ला दिया । मुशायरे को सार्थक कर दिया आपने सेना के लोगों के मन में भी कितनी संवेदनशीलता होती है ये आपकी ग़ज़ल बताती है  । दोनों सेना के शायरों को जी भर के दादा दीजिये ।

एक बड़ी खुश्‍खबरी आपको देनी है अभी ये पोस्‍ट लगाते समय ही हाथ आई है ।

चलिये अब एक और तस्‍वीर देखिये ये तस्‍वीर भारत की सेना की बंगलादेश विजय की है और समर्पण करते विपक्षी सेनापति की है

भारतीय सेना के लिये बहुत दिनों पहले एक गीत लिखा था ''ये भारती का गीत है ये जिन्‍दगी का गीत है , '' कवि सम्‍मेलनों में खूब दाद मिलती है इस पर कभी अवसर मिला तो प्रस्‍तुत करूंगा ।

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सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

तरही मुशायरा भाग दो, और ये भी कि आज होली का डांडा गाड़ा जाएगा मतलब अब एक माह दूर है होली ।

होली का नाम सुनते ही न जाने क्‍या क्‍या होने लगता है मन में । पलाश कर चटख फूलों की मस्‍ती आंखों में लहराने लगती है और आम के बौरों की मादक खुश्‍बू दिमान में जाकर उसे मदमस्‍त करने लगी है । होली मेरा मनपसंद त्‍यौहार है इतना कि लगभग 30 कहानियां इस त्‍यौहार पर लिख चुका हूं । और अभी भी होली के आते ही मन बावरा होने लगता है । मध्‍यप्रदेश के सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री दिलीप चिंचालकर जी से किसी पत्रिका ने उनके पसंद की दस कहानियां पूछीं थीं । मेरा सौभाग्‍य है कि उन 10 में दो कहानियां आपके इस मित्र की थीं । और उनमें भी एक कहानी तो यही थी होली की जिसका नाम था 'पलाश' । हमारे यहां पर पलाश को टेसू कहा जाता है । और ये भी कि हमारे यहां पर होली के एक माह पूर्व की पूर्णिमा अर्थात आज अरंडी के पेड़ की एक शाखा को लाकर पूजा पाठ के साथ उसे जमीन में गाड़ दिया जाता है ये कहलाता है होली का डांडा । उसके आस पास पांच कंडे ( उपले) रख दिये जाते हैं । इसके बाद माह भर उसके आस पास बच्‍चे लकडि़या एकत्र करते हैं और एक माह बाद उसको जलाया जाता है । होली को लेकर जितना लिखूं कम हैं । हमारे यहां पर होली पूरे पांच दिनों तक होती है होली से लेकर आने वाली पंचमी तक जिसको कि रंग पंचमी कहा जाता है। खूब धमाल होता है कहीं फाग गायन पर जमकर नाच होता है  तो कही भंग छनती है । मेरे गुरू कहते हैं कि ये त्‍यौंहार जरूर मनाना चाहिये ये हमें आने वाले साल भर के लिये चार्ज कर देता है जैसे हमारे मोबाइल की बैटरी चार्ज होती है वैसे ही ।

खैर अभी तो महीना पड़ा है हम बातें करेंगें ही अब आज चलते हैं दो शायरों के साथ तरही मुशायरे में ।

मास्‍साब : सबसे पहले आ रहे हैं दिगंबर नासवा ।

दिगम्बर नासवा

आपके ब्लॉग पर पिछले कुछ दिनों से जाना शुरू किया है, वैसे तो आप का ज़िक्र अक्सर बहुत से ब्लोग्स पर मिलता रहता है, ब्लॉग जगत में आप का नाम अनजाना नही है. ग़ज़ल गुरू हैं आप. आप के दिए मिसरे पर अपनी ग़ज़ल भेज रहा हूँ, उम्मीद है आप इसे शामिल करेंगे.   में अपना ब्लॉग "स्वप्न मेरे............." लिखता हूँ, ज्यादातर ग़ज़लें ही कहता हूँ, अगर आपका मार्ग-दर्शन मिलेगा तो, तो शायद निखार आ जाए .  मैं गत ९ वर्षों से दुबई मैं कार्यरत हूँ, पेशे से चार्टेड एकाउंटेंट हूँ, एक अमेरिकन कंपनी मैं सी.एफ.ओ. के ओहदे पर हूँ.
ब्लॉग का पता है  http://swapnmere.blogpost.com

मुहोब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं
परस्तिश यार की, महबूब के सपने संजोते हैं

वो सागर मोड़ने का होंसला रखते हैं जिगर में

तभी बंज़र ज़मीं पर बाजरे का बीज बोते हैं

जहाँ से अपनी मोहब्बत कि इब्तदा हुई थी
वहाँ कोहरे की चादर तान कर दो साए सोते हैं

जहाँ लगते थे मेले ज़िन्दगी अंगडाई लेती थी

उसी बरगद के नीचे खनकते कंगन भि रोते हैं

तुम्हारी आँख से निकले तो बन गए दरिया
हमारी आँख के आंसू तो बस तकिये भिगोते हैं

हर इक इंसान के दिल में खुदा का अंश होता है

कुछ ऐसी मान्यताएं आज कितने लोग ढ़ोते हैं

मास्‍साब :  तालियां तालियां तालियां । भइ खूब लिखा है । बहर को लेकर कहीं कहीं कुछ समस्‍या आ रही है पर मैं बार बार कहता हूं कि तरही मुशायरे में मैं अपनी संटी घर छोड़ कर आता हूं किसी को कुछ नहीं कहता । और अब आ रहे हैं हमारे युवा शायर अंकित सफर

अंकित सफ़र  :

खुशी में साथ हँसते हैं, ग़मों में साथ रोते हैं.
मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं.
नशे में चूर गाड़ी ने किया यमराज से सौदा,
नही मालूम दौलत को सड़क पे लोग सोते हैं.
कभी हर्षद, कभी केतन, कभी सत्यम करे धोखा,
मगर इन चंद के कारन सभी विश्वास खोते हैं.
महज़ वो कौम को बदनाम करते हैं ज़माने में,
जो बस जेहाद के जरिये ज़हर के बीज बोते हैं.
ये सारा खेल कुर्सी का समझ में आएगा सब के,
ये नेता झूठ हँसते हैं, ये नेता झूठ रोते हैं.
हमारे शहर घर पे बढ़ गए आतंक के हमले,
ये गुस्सा भी दिलाते हैं, ये पलकें भी भिगोते हैं.


with regards, Ankit Joshi MBA - Agri-business Management
VAMNICOM, Pune http://ankitsafar.blogspot.com/

 

मास्‍साब : तालियां तालियां । ये नेता झूठ हंसते हैं ये नेता झूठ रोते हैं दिल खुश कर दिया माससाब का । चलिये आज के दोनों शायरों को दाद दीजिये और प्रतीक्षा कीजिये आने वाली दो वर्दीधारी ग़ज़लों को । वर्दीधारी इसलिये क्‍योंकि एक शायर सेना में मेजर है तो दूसरे कॅप्‍टन हैं । और ये रहा आज का चित्र । होली के अवसर पर देखिये मास्‍साब पूर्व विश्‍व सुंदरी और फिल्‍म अभिनेत्री युक्‍ता मुखी के साथ अब ये मत पूछियेगा कि युक्‍ता मास्‍साब को इस प्रकार आश्‍चर्य से मुह फाड़ के क्‍यों देख रही है ( राज की बात ये चित्र अपनी पत्‍नी को आज तक नहीं दिखाया है )

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शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

तरही मुशायरा की शुरूआत और कल सुना हुआ एक गाना जिसको कल से अब तक लगभग पचास बार सुन चुका हूं

तरही मुशायरा वैसे तो कल ही होना था लेकिन लगता है शिवराज सिंह चौहान की और मेरे बीच में कुछ गड़बड़ है क्‍योंकि हमारे बीच में डाल डाल पात पात की बात चल रही है । परसों तक मैं प्रसन्‍न था कि अब तो इन्‍वर्टर लग गया अब कोई दिक्‍कत नहीं है । मगर शिवराज सिंह चौहान ( प्रदेश के मुख्‍यमंत्री) काकहना है कि भैये जब मैं बिजली ही नहीं दूंगा तो तू बैटरी कैसे चार्ज करेगा और यदि बैटरी ही चार्ज नहीं होगी तो काहे का इन्‍वर्टर । तो साहब इन्‍वर्टर लगने के अगले ही दिन से हमारे शहर में जो कि एक जिला मुख्‍यालय है तथा मुख्‍यमंत्री का जिला मुख्‍यालय है वहां बिजली की कटौती अब इस प्रकार हो गई है । सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक फिर दोपहर 1 बजे से दोपहर 2 बजे तक और फिर दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे तक । आपको लग रहा होगा कि ऐसा भी कहीं होता है । मगर सच यही है कि मध्‍यप्रदेश में मुख्‍यमंत्री के अपने ही जिले में बिजली की कटौती ऐसी है तो पूरे प्रदेश का क्‍या हाल होगा । अब आप पूछेंगें कि मुख्‍यमंत्री क्‍या कर रहे हैं तो अभी तो वो दूसरी बार मुख्‍यमंत्री बनने की खुमारी में हैं ।

इसी बीच कल एक बहुत ही सुंदर गीत सुना जो कल से अब तक लगभग 50 बार सुन चुका हूं फिर भी बार बार सुन रहा हूं  । पता नहीं किस ने गाया है फिलमी है या गैर फिल्‍मी । पर ये तो पता है कि है अद्भुत गीत । आडियो फाइल को साइट पर लगाने के प्रयास सफल नहीं हुए तो उस गीत को http://www.zshare.net/audio/55145327ac1f3949/ यहां लगा दिया है आप भी सुनिये इसको और बताइये कि कैसा लगा आपको ये गीत । और हां इसके बारे में किसी को कुछ पता हो तो ज़रूर बताये कि ये गीत किसका है ।

चलिये अब अपना तरही मुशायारा प्रारंभ करते हैं पहले तो तरहीं मिसरे की ओरजिनल ग़ज़ल जो कि बशीर बद्र साहब की एक ख़ूबसूरत ग़जल है ।

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गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं

मुहब्‍बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं

किसी ने जिस तरह अपने सितारों को सजाया है

ग़ज़ल में रेशमी धागों में यों मोती पिरोते हैं

यही अंदाज़ है मेरा समन्‍दर फत्‍ह करने का

मेरी क़ाग़ज की कश्‍ती में कई जुगनू भी होते हैं

सुना है बद्र साहब महफिलों की जान होते थे

बहुत दिन से वो पत्‍थर हैं न हंसते हैं न रोते हैं

ख़ैर बद्र साहब का तो कहना ही क्‍या है । बद्र साहब, निदा फाजली साहब, मुनव्‍वर राना साहब ये वो लोग हैं जिन्‍होने ग़ज़ल को आम आदमी तक पहुचाया है क्‍योकि इन लोगों ने आम आदमी की भाषा में ग़ज़लें कहीं हैं ।

चलिये अब पहले शायर को बुला रहा हूं । इस बालक का परिचय ये है कि ये एक वर्कशाप में मैंकेनिक का काम करता है और कविता के प्रति इसके मन में एकअजब दीवानगी है । मेरे पास ये कविता को लेकर सलाह के लिये आता रहता है । जियादह पढ़ा लिखा नहीं है परिवार चलाने के लिये मैकेनिक बन गया और गा़व से आता जाता रोज पन्‍द्रह किलो मीटर सायकिल चलाता है । जब भी कुछ नया लिखता है तो सकुचाते हुए मेरी टेबिल पर रख देता है । नाम है नंदकिशोर विश्‍वकर्मा । उसको भी मैंने तरही दी थी । जिस पर वो जो कुछ जैसा भी लिख कर लाया वैसा ही मैं यहां दे रहा हूं । जैसा मैंने पहले ही कहा था कि तरही मुशायरे में किसी की भी ग़ज़ल में मैं अपनी तरफ से कुछ नहीं करूंगा ।

नंदकिशोर विश्‍वकर्मा -

मुहब्‍बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं

ख़बर क्‍या तुमको वो दिन रात ही सपनों में खोते हैं

कभी मुस्‍कान तो पल में अकेलापन भी होता है

ख़यालों को वो अरमानों के सुर में भी पिरोते हैं

करो जीवन को अपने देश में तुम नाम कहता हूं

जो ना अपने वतन की सोचते हर पल वो सोते हैं

ख़ुदा को याद तुम यारों करो दिल में बसा रक्‍खो

सिमरते हैं न जो उसको हमेशा ही वो रोते हैं

करम अपने सुधारों दुनिया वालों तुम करम अपने

फ़सल वैसी ही पाते हम के जैसा बीज बोते हैं

मास्‍साब : तालियां तालियां तालियां । हालंकि विचारों का कच्‍चापन कई जगहों पर साफ दिखाई देरहा है पर फिर भी पहला प्रयास है इसलिये मुआफी । और अब आ रही हैं शार्दूला जी सिंगापुर से अपनी कुछ पंक्तियों को लेकर

शार्दुला नोगजा मैं गज़ल तो नहीं लिखती पर आपकी इस खूबसूरत पंक्ति पे एक छ्न्द लिख के आपको समर्पित कर रही हूँ। इसे मेरा विनम्र धन्यवाद समझें । आपके मुशायरे के लिये बहुत शुभकामनायें :-

"मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं
नहाते चाँदनी में  बादलों पे जा सोते हैं
है दरिया प्यार तो वे मछ्लियाँ हैं सात रंगों की
उन्हीं का नाम ले झरने चरण वादी के धोते हैं ।
मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं"

मास्‍साब : भई वाह शार्दूला जी आपकी पंक्तियां भी ख़ूबसूरत हैं । आपकी कविता तीस्‍ता नदी वैसे भी सीहोर के श्रोताओं के जहन में अभी तक बसी हैं । तिस पर ये कि आपकी आवाज़ भी कविता के लिये बिल्‍कुल मुफीद है । तालियां तालियां तालियां । तो आज के लिये अतना ही अभी बाकी हैं गौतम राजरिशी, अंकित सफर, संजय चतुर्वेदी और दिगम्‍बर नासवा । इनको लेते हैं हम अगले अंक में ।

आज देखिये अल्‍लामा इकबाल सा‍हब की याद में मध्‍य प्रदेश साहित्‍य अकेडमी के मुशायरे का चित्र चित्र में नज1र आ रहे हैं उर्दू की अज़ीम शख्‍सीयत जनाब इशरत क़ादरी साहब और एकेडमी के अध्‍यक्ष देवेंद्र दीपक जी P1010012

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

तरही मुशायरा कल होगा, और अब बहरों के बारे में जानकारी देने के क्रम को भी आगे बढ़ाया जा रहा है

इस बार के तरही मुशायरे केा लेकर अभी तक केवल चार ही शायरों गौतम, दिगम्‍बर नासवा, अंकित सफर, संजय चतुर्वेदी जी की ग़ज़लें मिलीं हैं और साथ ही शार्दूला जी ने एक छंद भेजा है । तो यदि आज तक और कुछ ग़ज़लें नहीं मिलती हैं तो हम कल इन पांचों के साथ ही आयोजित करेंगें अपना तरहीं मुशायरा । चूंकि पिछले मुशायरे का अनुभव कुछ अच्‍छा नहीं रहा काफी देर हो गई थी उसको आयोजित करने में सो इस बार ऐसा न हो इसलिये कल ही हम इसको आयोजित कर लेते हैं । इन्‍वर्टर का कमाल है कि हम समय पर काम करने की स्थिति में हैं । और इस बार तो अगले तरही मुशायरे को लेकर अधिक समय भी देना है क्‍योंकि इस बार तो होली को लेकर मजाहिया मिसरा दिया जायेगा । और प्रयास ये किया जायेगा कि होली के अवसर पर तरही मुशायरे में आनलाहन तरही मुशायरा हो सके । कुछ नई तकनीक को तलाश रहे हैं जिससे कि पिछली बार की तरह परेशानी नहो और हम उसको ठीक प्रकार से कर सकें  ।

गज़ल की कक्षायें  न जाने कहां रुकीं थीं । और उस पर ये भी कि बीच में काफी कुछ इधर उधर का होता रहा है । बीच में काफी लोगों के पत्र मिले हैं ग़ज़ल की कक्षाओ के बारे में सो अब उस दिशा में काम प्रारंभ किया जा सकता है । मेरे हिसाब से से तो बहर तक हमारी कक्षायें आ ही गयीं थीं और अब तो काफी लोग बहरों पर अच्‍छा काम कर रहे हैं । तो आज से हम बहरों के बारे में आगे की जानकारी लेंगें । हम कुछ तकनीकी मुद्दों को उठा कर उन पर ही बात करेंगें । जैसे आज की बात करें तो आज गौतम राजरिशी का एक बहुत अच्‍छा सवाल है और उसका उत्‍तर है । ये प्रश्‍न काफी लोगों ने अलग अलग तरीके से उठाया है सो आज इसका समाधान गौतम के प्रश्‍न को ही आधार बना कर किया जा रहा है ।

गौतम राजरिशी :

एक गज़ल पढ़ी ११२११ वाली कामील बहर पर है .२२१२ यानी रज़ज और इस बहरे कामिल में फिर क्या फर्क हुआ.उस दीर्घ वाली बहर में आपने छूट दी थी कि दो स्वतंत्र लघु मिल कर एक दीर्घ बन जाते हैं.फिर इस कामिल के पहले वाले दो लघु मिल जाये तो ये रज़ज़ नहीं बन जायेगा?  समाधान करें गुरूदेव

उत्‍तर : तुमने सही प्रश्‍न उठाया है गौतम दरअस्‍ल में बहरे रजज मुसमन सालिम के चार रुक्‍न होते हैं

मुस्‍तफएलुन- मुस्‍तफएलुन- मुस्‍तफएलुन- मुस्‍तफएलुन 2212  2212  2212  2212

और ये जो है जो तुमने कहा है ये बहरे कामिल मुसमन सालिम है जिसके चार रुक्‍न हैं

मुतफाएलुन- मुतफाएलुन- मुतफाएलुन- मुतफाएलुन 11212   11212   11212  11212

कल चौदवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तिरा ( बहरे रजज मुसमन सालिम )

कुइ गुंचा टूट के गिर गया, कुइ शाख गुल की लचक गयी ( बहरे कामिल मुसमन सालिम )

कल  चौ   द   वीं 2    2    1    2

की  रा   त   थी  2   2    1   2

शब  भर र  हा 2    2   1  2

चर  चा ति  रा  2   2   1   2

कु इ गुन्‍  च    टू 1  1 2    1    2

ट क गिर ग   या  1  1  2  1    2

कु ई शा  ख गुल 1  1  2  1  2

कि ल चक ग यी 1   1  2  1  2

अब एक रोचक उदाहरण देखो बहरे कामिल मुसमन मुजमिर का

जिसके रुक्‍नों में दोनों का घालमेल है मुतफाएलुन-मुस्‍तफएलुन-मुतफाएलुन-मुस्‍तफएलुन 11212-2212-11212-2212

न दिया करो तुम गालियां, न किया करो मुझपे जफा

न दि या क रो 1  1  2 1  2

तुम गा लि यां 2   2  1  2

न कि या क रो  1  1  2  1  2

मुझ पे ज फा 2   2  1  2 

मास्‍साब का प्रश्‍न : पहला रुक्‍न का वज्‍न और दूसरे का यदि मात्रओं के हिसाब से देखा जाये तो समान ही है तो फिर पहले को मुतफाएलुन और दूसरे को मुस्‍तफएलुन नाम क्‍यों दिया जा रहा है ।

अगली कक्षा में हम देखेंगें एक और रोचक सवाल गौतम का । जिसमें गौतम ने चचा ग़ालिब के कुछ शेरों पर कुछ रोचक सवाल उठाये हैं ।

होली का धमाल - आज देखिये माससाब का एक और टेपा सम्‍मेलन का चित्र । ( सूचना होली मास्‍साब का सबसे फेवरेट त्‍यौहार है इसलिये अब पूरे माह होली का धमाल चलेगा । )

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बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

बिजली की समस्‍या, नीरज जी का इन्‍वर्टर का सुझाव, इन्‍वर्टर की बिजली से ये पहली पोस्‍ट और तरही मुशायरा

बिजली की समस्‍या को तो अब ऐसा लगता है कि कायम ही रहना है । वो शक्तिमान धारावाहिक में एक पात्र होता था जो कहता था अंधेरा कायम रहे । ऐसा लगता है कि हमारे मध्‍यप्रदेश में आने वाली सरकारें भी यही कहती है कि अंधेरा कायम रहे । पहले हमने दिग्‍विजय को हटाया ये सोच कर कि भाजपा की सरकार आयेगी तो कुछ हल होगा मगर पत्‍ते तो ढाक के वही तीन रहे । हां उमा भारती का कार्यकाल पिछले बीस सालों के प्रदेश के इतिहास का वो समय है जब चौबीस घंटों में एक मिनिट के लिये भी बिजली नहीं काटी गयी । हमारे प्रदेश में बिजली कटौती करने वाले बिजली विभाग के अफसरों को बोनस दिया जाता है कि किस अधिकारी के क्षेत्र में कितनी बिजली काटी गई उसे उतना ही बोनस दिया जायेगा । बोनस के चक्‍कर में होता ये है कि बिजली होते हुए भी उसकी कटौती की जाती है । जहां पर आंदोलन हो जाता है प्रदर्शन हो जात है वहां पर फिर बिजली की कटौती नहीं की जाती है । मजे की बात ये है कि पहले तो सुब्‍ह छ: से बारह कटौती की जाती है और फिर बारह बजे बिजली आती है तो दस मिनिट में फिर चली जाती है पता चलता है कि मेंटिनेंस का काम चल रहा है । अब कौन पूछे कि भैया अभी जब बिजली नहीं थी तब ही कर लेते ये मेंटिनेंस । मगर बात तो वही है न कि जितनी बिजली काटोगे उतना ही बोनस मिलेगा ।

खैर ये तो हुई बिजली विभाग की बात । कुछ दिनों पहले नीरज गोस्‍वामी जी का मेल मिला जिसमें उन्‍होंने कहा कि इन्‍वर्टर से काम चलाया जा सकता है  । इस मामले पर गंभीरता से सोचा गया और ये पाया गया कि नीरज जी की सलाह में दम तो है । इन्‍वर्टर वाले को बुला कर बात की गयी और बात की बात में बीस हजार रुपये सटक सीताराम हो गये । पैसे गये तो गये पर चलो अब कुछ राहता तो मिली । ये पहली पोस्‍ट है जो कि इन्‍वर्टर की बिजली से लिखी जा रही है । कुछ राहत इसलिये कि बिजली जिस हिसाब से जाती है उससे तो ये ही कहा जा सकता है कि इन्‍वर्टर भी तो तब ही काम करेगा ना जब उसकी बैटरी चार्ज होगी और बैटरी को चार्ज होने के लिये एक बार फिर ज़रूरत होगी बिजली की ही । तो साहब मायने ये कि घूम फिर के आना उसी पर है बिजली पर ही । मगर चलो ठीक है कि कुछ नहीं से कुछ तो होगा कहा जात है ना कि नहीं मामा से काना मामा ही अच्‍छा होता है ।

खैर चलो जो हुआ सो हुआ मगर अब ये तो है कि जब चाहे तब काम किया जो सकता है । श्रद्वा जैन, गौतम राजरिशी, अर्श , दिगम्‍बर जी इन सबकी ग़ज़लें इस्‍लाह के लिये रखी हैं अब कम से कम काम तो किया जा सकेंगा । वरना तो होता ये था बिजली आयी तो पहले जल्‍दी मचती थी मेल को चैक करने की फिर उसके बाद पेंडिंग काम को निबटाना पता चलता तब तक बिजली फिर से चली गई । चलो अब कुछ राहत है  ।

आज की पोस्‍ट केवल ये खुशखबरी देने के लिये ही लगाई है कि अब कुड नियमितता हो सकेगी । तरही मुशायरे के लिये बहुत कम ग़ज़लें प्राप्‍त हुई हैं जितनी भी प्राप्‍त हुई हैं उनके साथ ही हम तरही मुशायरे का आयोजन संभवत: कल करने जा रहे हैं कल या परसों । जो लोग और भेजना चाहते हैं अपनी ग़ज़लें वे भी तुरंत भेज दें । और हां इस बार मिसरा मजाहिया( हास्‍य का ) दिया जायेगा क्‍योंकि इस बार के मिसरे पर जो तरही मुशायरा होगा वो होली के अवसर पर आनलाइन होगा । और उसमें प्रथम पुरुस्‍कार की भी व्‍यवस्‍था रहेगी ।  चलिये इसी बात पर पिछले होली के टेपा कार्यक्रम का मेरे संचालन का एक फोटो देखिये

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विशेष : मुझे एक मेल मिला है कि मेरे ब्‍लाग पर वर्तनी की बड़ी ग़लतियां होती हैं । विनम्रता के साथ कहना चाहूंगा कि हम नेट पर हिंदी में टाइप करने वाले किस मुश्किल का सामना करके काम करते हैं ये हम ही जानते हैं उस पर ये कि मुझे तो बिजली की तलवार के साये में काम करना होता है । मेरी नानी जी एक कहावत कहती है 'उठाई ज़बान और तालू से लगा दी' इसका अर्थ है कि कहने के लिये कुछ ज्‍यादा नहीं करना होता बस ज़बान को तालू से चिपकाना होता है पर करने के लिये बहुत कुछ करना होता है । खैर जय राम जी की 

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

धूप गंध चांदनी का विमोचन ,डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे को शिवना सारस्वत सम्मान

शहर के कवियों को आन लाइन वैश्विक कवि सम्मेलन  में दुनिया भर में फैले भारतीय मूल के कवियों के साथ काव्य पाठ करने का मौका मिला अवसर था शिवना द्वारा आयोजित समारोह जिसमें न केवल वैश्विक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया वहीं भारतीय मूल के पांच कवियों के काव्य संग्रह धूप गंध चांदनी का विमाचन भी किया गया साथ ही हिंदी की मनीषी विद्वान डॉ पुष्पा दुबे को शिवना सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया ।
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सीहोर के साहित्यकारों को एक बार फिर से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर काव्य पाठ का अवसर मिला शिवना द्वारा आयोजित समारोह में देश भर के चुनिंदा कवियों के साथ सीहोर के कवियों ने काव्य पाठ किया कवि सम्मेलन में दुनिया के कुछ प्रसिध्द भारतीय मूल के कवियो ने भी आनलाइन काव्य पाठ किया ।

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इस कवि सम्मेलन में सीहोर के अम्बादत्त भारतीय,  शारदा प्रसाद दीक्षित, डॉ मोहम्मद आजम,  द्वारका बांसुरिया, रमेश हठीला, लक्ष्मण चौकसे, हरिओम शर्मा,  सहित पूना के अंकित सफर, दुबई के दिगंबर नासवा,  सिंगापुर की शार्दूला माहेश्वरी, अमेरिका के घनश्याम गुप्ता, अर्चना पंडा, विशाखा ठाकर, अनूप भार्गव, राकेश खण्डेलवाल, कनाडा के समीर लाल  ने काव्य पाठ किया ।

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इससे पहले कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नागरिक बैंक के अध्यक्ष श्री प्रकाश व्यास काका, अध्यक्ष जिले के वरिष्ठ पत्रकार श्री अम्बादत्त भारतीय, स्थानीय महाविद्यालय के प्राचार्य श्री एम एस राठौर, समाजसेवी तथा गल्ला व्यापारी संघ के अध्यक्ष श्री कैलाश अग्रवाल तथा वरिष्ठ  कृषि वैज्ञानिक डॉ आर सी जैन ने हिंदी की मनीषी विद्वान तथा स्थानीय महाविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापक डॉ श्रीमती पुष्पा दुबे को शिवना सारस्वत सम्मान प्रदान किया ।

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सम्मान के तहत डॉ दुबे को शाल श्रीफल, सम्मान पत्र तथा प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया ।  डॉ दुबे का परिचय पत्रकार श्री प्रदीप चौहान ने दिया ।

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इस अवसर पर शिवना प्रकाशन तथा  वाशिंगटन हिंदी समिति द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित काव्य संग्रह धूप गंध चांदनी का भी विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया । ये काव्य संग्रह भारतीय मूल के अमेरिका में बसे दो कवियों राकेश खण्डेलवाल, घनश्याम गुप्ता तथा तीन कवियित्रिओं बीना टोडी, विशाखा ठाकर तथा अचँना पंडा की कविताओं का संग्रह है ।

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संग्रह पर प्रकाशक पंकज सुबीर  ने प्रकाश डाला ।  इंटरनेट के माध्यम से प्रसाति हो रहे इस आयोजन को दुनिया भर के कई हिंदी प्रेमियों ने देखा । इस प्रकार सीहोर एक वैश्विक आयोजन का साक्षी बना ।

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शिवना के इस वार्षिक आयोजन में सबसे पहले पंडित शैलेष तिवारी के मार्गदर्शन में सीहोर के कवियों, पत्रकारों तथा प्रबुध्द वर्ग के लोगों ने ज्ञान की देवी मां सरस्वती का पूजन अर्चन किया ।

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तत्पश्चात सुकवि रमेश हठीला ने मां सरस्वती की सस्वर वंदना की । इस अवसर पर बोलते हुए डॉ पुष्पा दुबे ने कहा कि   शिवना संस्था द्वारा शहर के साहित्य की अलख जगाने का जो कार्य किया जा रहा है वह अनुकरणीय है । उन्होंने निराला जयंति के अवसर पर पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से जुड़ी कई सारी तथ्यात्मक जानकारियां प्रदान की ।

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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री प्रकाश व्यास काका ने कहा कि सीहोर में वरिष्ठ साहित्यकार श्री नारायण कासट ने शिवना के रूप में जो साहित्य का पौधा लगाया था उसको आज एक घने वृक्ष में बदला हुआ देखकर मन को सुख मिलता है । उन्होंने कहा कि सीहोर में शिवना ने साहित्य की परंपराओं को जीवित रखा है । श्री व्यास ने कहा कि  साहित्य ही समाज को दिशा देता है अत: साहित्य के न रहने पर समाज दिशाहीन हो जाता है ।

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कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अम्बादत्त भारतीय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि निराला जो ने तो अपना जन्म दिवस वसंत पंचमी को मान कर एक निर्देश साहित्यकारों को दिया कि सरस्वती के इस प्राकटय दिवस का साहित्यकारों के लिये क्या महत्व है । श्री भारती ने कहा कि सीहोर में शिवना द्वारा वसंत पंचमी के अवसर पर सरस्वती पूजन की परंपरा को लगातार चार वर्षों से किया जाकर इस परम्परा का जो निर्वाहन किया जा रहा है वह प्रशंसनीय है । इस अवसर पर सभी अतिथियों को शारदा प्रसाद दीक्षित ने मां सरस्वती के चित्र तथा सिक्का प्रदान किया गया । कार्यक्रम का संचालन पत्रकार प्रदीप चौहान ने किया वहीं आन लाइन वैश्विक कवि सम्मेलन का संचालन शायर डॉ मोहम्मद आजम ने किया । अंत में आभार हरइअिोम शर्मा दाऊ ने व्यक्त किया । कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के बुध्दिजीजवी उपस्थित थे ।
रमेश हठीला

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