शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

शिवना प्रकाशन का सरस्वती पूजन आयोजन, डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे को शिवना सारस्वत सम्मान, धूप, गंध, चांदनी का विमोचन


शिवना प्रकाशन द्वारा  वसंत पंचमी के अवसर पर सरस्वती पूजन का आयोजन किया गया  है जिसमें शहर के प्रबुध्द वर्ग द्वारा ज्ञान की देवी मां सरस्वती का पूजन अर्चन किया जायेगा । हर वर्ष वसंत पंचमी के अवसर पर शिवना सारस्वत सम्मान भी प्रदान किया जाता है जो साहित्य, कला, शिक्षा तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में सुदीर्घ सेवाओं के लिये दिया जाता है ।

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इस वर्ष वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ श्रीमती पुष्पा दुबे को शिवना सारस्वत सम्मान से समाध्दृत किया जायेगा ।

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इस अवसर पर शिवना प्रकाशन की नई पुस्तक धूप, गंध, चांदनी का विमोचन भी होना है । ये काव्य संग्रह अमेरिका में बसे पांच भारतीय कवियों घनश्याम गुप्ता, बीना टोडी, राकेश खण्डेलवाल, विशाखा ठाकर तथा अर्चना पंडा की कविताओं का संग्रह है । साथ ही इस अवसर पर एक आन लाइन वैश्विक कवि सम्मेलन का आयोजन भी होगा जिसमें विश्व के कई सारे कवि सीहोर के स्थानीय कवियों के साथ आन लाइन अपनी कविता का पाठ करेंगें । कार्यक्रम का आयोजन सम्राट काम्प्लैक्स बेसमेंट स्थित पीसी लैब के सभागृह में शाम साढ़े पांच बजे किया जायेगा । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में नागरिक बैंक के अध्यक्ष श्री प्रकाश व्यास काका उपस्थित रहेंगें जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता जिले के वरिष्ठ पत्रकार श्री अम्बादत्त भारतीय करेंगें । कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में नागरिक बैंक के संचालक श्री कैलाश अग्रवाल, हिंदू उत्सव समिति के अध्यक्ष श्री सतीश राठौर तथा वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. आर. सी. जैन उपस्थित रहेंगें ।  शिवना के रमेश हठीला ने जानकारी देते हुए बताया कि वसंत पंचमी के अवसर पर ज्ञान की देवी का पूजन पंडित शैलेष तिवारी के मार्गदर्शन में शहर के प्रबुध्द वर्ग द्वारा किया जायेगा तत्पश्चात सम्मान तथा विमोचन का कार्यक्रम होगा ।  इंटरनेट के माध्यम से विश्व भर में प्रसारित होने वाले विमोचन समारोह तथा वैश्विक कवि सम्मेलन सहित पूरे कार्यक्रम का संचालन पत्रकार प्रदीप चौहान करेंगें ।  इस कवि सम्मेलन में शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक धूप गंध चांदनी के पांचों कवियों के साथ साथ विश्व के कई सारे  हिंदी कवि अपनी रचनाओं का पाठ करेंगें । कार्यक्रम दो दौर में आयोजित किया जायगा प्रथम दौर में विमोचन तथा सम्मान समारोह  का आयोजन होगा तथा दूसरे दौर में वैश्विक कवि सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा ।  शिवना प्रकाशन ने शहर के प्रबुध्द वर्ग से आयोजन में भाग लेने की अपील की है ।

आन लाइन कवि सम्‍मेलन के लिये subeerin@gmail.com को जीटाक पर मित्र सूची में जोड़ें और कार्यक्रम के वीडियो देखने के लिये subeerin@yahoo.com को याहू मेसेंजर में मित्रसूची में जोड़ें । काव्‍य पाठ के लिये सूचना भेजें subeerin@gmail.com  पर आज ही क्‍योंकि काव्‍य पाठ के लिये केवल एक ही घंटे का समय निर्धारित है ।

बुधवार, 28 जनवरी 2009

वसंत पंचमी , धूप, गंध, चांदनी और एक आन लाइन कवि सम्‍मेलन की भी बन रही है भूमिका ।

बिजली के कारण नेट से दूर हूं जब जिस समय बिजली मिलती है उस समय काम करता हूं । मगर पोस्‍ट लगाने के लिये जो समय चाहिये वो नही मिल पा रहा है । शिवना प्रकाशन की अगली पुस्‍तक धूप, गंध, चांदनी  की तैयारियों में भी व्‍यस्‍तता रही । ये पुस्‍तक अमेरिका में बसे पांच भारतीय कवियों की कविताओं का संग्रह है श्री घनश्‍याम जी गुप्‍ता, श्री राकेश जी खण्‍डेलवाल, बीना टोडी जी, विशाखा ठाकर जी और अर्चना पंडा जी । पांचों की प्रतिनिधि कविताओं को इसमें स्‍थान दिया गया है । राकेश जी अपनी मूल विधा से हट कर हास्‍य कविताएं लेकर आये हैं । पुस्‍तक का विमोचन आने वाली 31जनवरी वसंत पंचमी शनिवार को भारतीय समय के हिसाब से शाम 5 बजकर तीस मिनट से साढ़े सात बजे तक चलने वाले कार्यक्रम में होगा । कार्यक्रम में शिवना द्वारा सुदीर्घ साहित्‍य सेवा के लिये दिया जाने वाला शिवना सारस्‍वत सम्‍मान डॉ श्रीमती पुष्‍पा दुबे को दिया जायेगा । कार्यक्रम में एकआनलाइन कवि सम्‍मेलन करने की भी योजना बन रही है । जिसमें जीटाक के माध्‍यम से कवियों का काव्‍य पाठ होगा । कैसे होगा अभी तो कुछ तय नहीं है पर हां काव्‍य पाठ करने वाले कवियों को पहले subeerin@gmail.com को जीटाक में अपनी मित्रों की सूची में जोड़ना होगा । उसके बाद ही वे कार्यक्रम को सुन पायेंगें या फिर काव्‍य पाठ कर पायेंगें । जीटाक को http://www.google.com/talk/ यहां से अधोपात ( डाउनलोड) करके अपने कम्‍प्‍यूटर में संस्‍थापित ( इंस्‍टाल) कर लें और फिर उसमें अपने जीमेल एकाउंट का उपयोग करते हुए ऊपर दिये पते को मित्र सूची में दर्ज कर लें । ये कहने की तो जरूरत नहीं है कि आपके पास हेड फोन माइक का सेट होना ही चाहिये वो आपको डाउनलोड में नहीं  मिलेगा बाजार से खरीदना ही होगा । साथ ही कम से कम 30 जनवरी की रात तक सूचित करना होगा कि आप कल काव्‍य पाठ के इच्‍छुक हैं ।

तरही मुशायरा वसंत पंचमी के दिन या अगले दिन ही आयोजित करने की योजना है । अभी बहुत कम कवियों की रचनाएं मिली हैं तरही मुशायरे के लिये । आशा है तब तक और लोगों की रचनाएं भी दिये गये मिसरे मुहब्‍बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं पर मिल जायेंगीं । वसंत पंचमी मां सरस्‍वती का प्राकट्य दिवस माना जाता है और ये दिन हम सब कलम के सिपाहियों के लिये दीपावली के समान होता है । कहा गया है कि दीपावली पर महालक्ष्‍मी का प्राकट्य हुआ था, वसंत पंचमी पर महा सरस्‍वती का और दुर्गाअष्‍टमी को महाकाली का । लक्ष्‍मी अर्थात अपार धन की कामना रखने वालों की आराध्‍या । काली अर्थात शक्तिशाली तन की कामना रखने वालों की आराध्‍या और सरस्‍वती अर्थात विकसित और विचारवान मन की कामना रखने वालों की आराध्‍या । तो हम कलम और शब्‍दों के सिपाहियों की दीपावली तो वसंत पंचमी को ही होती है । तन-मन-धन ये तीन प्रतीक हैं तीनों देवियों के । आइये इस बार की वसंत पंचमी को यादगार बनाएं ।

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

दैनिक भास्‍कर की साप्‍ताहिक पत्रिका 'मधुरिमा' में पढि़ये राकेश खण्‍डेलवाल जी को।

दैनिक भास्‍कर के साथ साप्‍ताहिक रूप से हर बुधवार का वितरित होती है महिलाओं की अत्‍यंत लोकप्रिय पत्रिका 'मधुरिमा' । पत्रिका की लो‍कप्रियता का ये आलम है कि कई घरों में समाचार पत्र केवल इसके लिये ही लिया जाता है । बुधवार की सुबह महिलाएं सबसे पहले समाचार पत्र में से मधुरिमा को छांट कर अलग कर लेती हैं और उसे संभाल कर किसी सुरक्षित जगह पर रख देती हैं जहां से निकाल  कर उसे दोपहर के फुरसत के समय में पढ़ सकें । मेरी पहली कहानी भी इसी पत्रिका के होली विशेषांक में प्रकाशित हुई थी । तब मुझे एक कहानी कार के रूप में कोई जानता भी नहीं था । मधुरिमा भले ही महिलाओं की पत्रिका है किन्‍तु उसमें एक पृष्‍ठ ऐसा भी होता है जो हर साहित्‍य प्रेमी के लिये पठनीय होता है और ये पेज होता है सृजन का पेज जहां पर कहानी और कविता को स्‍थान दिया जाता है । कहा जा सकता है कि मधुरिमा ने साहित्‍य को अभी भी उचित सम्‍मान दे रखा है । मेरा जहां तक अंदाजा है कि पूरे भारत में समाचार पत्र के साथ मधुरिमा का एक ही संस्‍करण बांटा जाता है । इसलिये आप सबसे अनुरोध है कि 14 जनवरी का मधुरिमा अवश्‍य पढ़ें क्‍योंकि उसमें वरिष्‍ठ ब्‍लागर साथी और सुप्रसिद्ध कवि आदरणीय राकेश खण्‍डेलवाल जी का एक सुंदर छंद मकर संक्रांति के अवसर पर प्रकाशित किया गया है ।

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इसके अलाव राजस्‍थान पत्रिका ने भी अंधेरी रात का सूरज की जानकारी प्रकाशित की है ।

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बुधवार, 14 जनवरी 2009

356 राष्‍ट्रभक्‍तों के लहू से लाल हो गई थी सीहोर की ज़मीं 14 जनवरी 1858 को आज अपने श्रद्धासुमन अर्पित करें उन अमर शहीदों को

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जालियावालां बाग को भले ही देश में हुए सबसे बड़े नृशंस नरसंहार के रूप में जाना जाता है लेकिन सच ये है कि कई और भी नरसंहार हुए जो इतिहास में वो स्‍थान नहीं ले पाये जो मिलना था। मध्‍यप्रदेश के सीहोर में 14 जनवरी 1858 को जनरल ह्यूरोज द्वारा मैदान में खड़ा करके देशभक्‍त 356 क्रांतिकारी सिपाहियों को गोली से उड़ा देना भी एक ऐसी ही घटना है । ह्यूरोज वही है जिसने बाद में सीहोर से आगे जाकर झांसी की रानी के साथ युद्ध किया था । हर वर्ष 14 जनवरी 1858 को सीहोर के लोग उन 356 शहीदों की समाधि पर जाकर वहां अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं । इतने बड़े बलिदानी स्‍थल पर ना तो कलेक्‍टर न एसपी ना एसडीएम कोई भी सरकारी व्‍यक्ति आकर सरकार की ओर से श्रद्धासुमन नहीं अर्पित करता है । केवल वे मुट्ठी भर लोग आते हैं जो कि देश से प्‍यार करते हैं । वे यहां पर आते हैं और अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं । उसके बाद वर्ष भर ये समाधियां उपेक्षि‍त पड़ी रहती हैं ।

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1857 का हिन्‍दुस्‍तान के इतिहास में एक प्रमुख स्‍थान है अंग्रेज इतिहासकार भले ही कहते रहें कि 1857 में तो राजा और रजवाड़ों ने विद्रोह किया था मगर सच ये ही है कि 1857 का विद्रोह वास्‍तव में एक जन क्रांति था । मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में तब एक कंपनी तैनात थी तथा यहां पर एक अंग्रेज पोलेटिकल एजेंट फेडरिक एडन पदस्‍थ था 1 जुलाई को इन्‍दौर में क्रांति हो जाने के बाद सीहोर में भी इसके संकेत मिल रहे थे मगर भोपाल की तत्‍कालीन नवाब सिकंदर बेगम अंग्रेजों की भक्‍त थीं और अस लिये अंग्रेज विश्‍वस्‍त थे कि कुछ होगा तो हमें भोपाल नवाब की मदद तो मिलेगी ही । मगर जुलाई खत्‍म होते न होते तो सीहोर में भी क्रांति की चिन्‍गारियां फूटने लगीं थीं ।

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इन्‍दौर से भाग कर भोपाल नवाब की शरण में जा रहे अंग्रेजों को सीहोर के सिपाहियों ने पीटना प्रारंभ कर दिया था नवाब सिंकंदर बेगम ने विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया मगर आजादी के मतवाले कब हारने वाले थे । अंतत: 6 अगस्‍त 1857 को सीहोर जहां पर अंग्रेजों की मध्‍य क्षेत्र की सबसे बड़ी छावनी थी के सिपाहियों ने क्रांति को पूर्ण कर दिया और सीहोर पर क्रांतिकारियों का कब्‍जा हो गया । तब सीहोर की कोतवाली पर दो झंडे फहराए गए थे जो सीहोर की क्रांतिकारी सरकार जिसका नाम सिपाही बहादुर था के प्रतीक थे । एक भगवा झंडा था जो कहलाया निशाने महावीर और एक हरा झंडा जो कहलाया निशाने मुहम्‍मदी । और इस तरह सीहोर में बनी सिपाही बहादुर सरकार जो चलती रही इस सरकार का नेतृत्‍व किया था दो जांबाज सिपाहियों ने एक था हवलदार महावीर कोठ और दूसरे वली शाह । उस समय का इतिहास बताता है कि किस प्रकार का सांपद्रायिक सौहार्द्र था देश में । कोतवाली पर दो रंगों के झंडे एक हरा निशाने मोहम्‍मदी और एक भगवा निशाने महावीरी । दो लोगों के हाथ में कमान एक हिंदू और एक मुसलमान । अंग्रेजों ने अपने सबसे बर्बर ह्यूरोज को इस क्रांति को कुचलने भेजा था । जो मुंबई से चलकर यहां आया था ।  14 जनवरी 1958 तक तब तक जब तक की हयूरोज ने आकर विद्रोह को कुचल नहीं दिया । हृयूरोज ने इन सभी देशभक्‍तों को चांदमारी पर एकत्र किया और गोलियों से छलनी करवा दिया । पास ही बह रही सीवन नदी इन देशभक्‍तों के लहू से लाल हो गई थी । जालियावालां बाग के समान ये भी एक बड़ा नरसंहार था ।

आज वही 14 जनवरी है जब सीहोर में 356 क्रांतिकारियों का लहू बहा था । आइये सीहोर वासियों के साथ आप भी उन सब ज्ञात अज्ञात को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करें ।

रविवार, 11 जनवरी 2009

मेरे परम मित्र तथा आदरणीय श्री रमेश हठीला जी की ''हंस'' में प्रकाशित कविता पढ़ें ।

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श्री रमेश हठीला जी की कविता हंस में जनवरी के अंक में प्रकाशित हुई है । हठीला जी हिंदी के अच्‍छे गीतकार हैं तथा उतने ही मधुर कंठ से गायन भी करते हैं । हठीला जी एक अच्‍छे मित्र भी हैं । उनका एक काव्‍य संग्रह बंजारे गीत के नाम से पिछले दिनों शिवना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है । फक्‍कड़ स्‍वभाव के बला के स्‍वाभिमानी व्‍यक्ति हैं वे । कई सारी बीमारियां पाले हैं ह्रदय रोग है दो बार आपरेशन हो चुके हैं, मधुमेह है, जनम से ही एक किडनी नहीं है तिस पर भी ये कि किसी की सहायता नहीं लेनी । जब उनके आपरेशन के लिये मध्‍यप्रदेश सरकार ने एक लाख की राशि स्‍वीकृत कर उनके पास डीडी भेजा तो वे उसे सधन्‍यवाद कलेक्‍टर को जाकर वापस कर आये । ये अपनी तरह का अलग ही प्रकरण था । वे बहुत अच्‍छे दाल बाफले बनाते हैं तथा उनका व्‍यवसाय ये ही है । दिल्‍ली से लेकर मद्रास तक वे बाफले बनाने के लिये बुलाये जाते हैं । जिन लोगों ने रेणु जी की कहानी ''ठेस'' पढ़ी हो तो उसमें जो सिरचन का पात्र है ठीक वैसे ही हैं हठीला जी । आज भी अपने जीवन यापन के लिये दाल बाफले इस उम्र में भी बनाते हैं । कविता के लिये बला के समर्पित हैं और आयोजनों के लिये तो एक पैर पर तैयार रहते हैं । नियमित रूप से स्‍थानीय समाचार पत्रों में किसी एक समाचार को पकड़ कर उस पर कुंडलियां लिखते हैं जो रोज छपती है । कभी सरकिट कवि के नाम से, कभी बिच्‍छु कवि के नाम से, कभी ठलुवा कवि के नाम से तो कभी और किसी नाम से ।  उनकी बिटिया मोनिका हठीला देश की ख्‍यात मंचीय कवियित्री हैं । हठीला जी की एक कविता हंस के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई है । साथ ही उनकी पुस्‍तक की चर्चा कादम्बिनी, नवनीत के जनवरी अंक में हैं । समीर जी जब सीहोर में आये थे तो हमने उनके स्‍वागत में एक छोटा सा कार्यक्रम रखा था किन्‍तु श्री हठीला जी ने मुझे बताये बिना कब छोटे से कमरे से स्‍थान परिवर्तन कर बड़े हाल में कर दिया मुझे पता ही नहीं चला । बाद में जब मैंने पूछा कि ये कार्यक्रम को कमरे से हाल में क्‍यों किया तो उनका जवाब था '' आपके मित्र का सम्‍मान मतलब हम सबका मान है '' । हंस में उनकी जो कविता प्रकाशित हुई है वह मात्रिक छंद पर है और ग़ज़ल के स्‍वरूप में है । किन्‍तु इसमें मात्राएं गिन कर लिखा जाता है । कुल ग्‍यारह दीर्घ हैं । यद्यपि अब तो ये भी ग़ज़ल में शामिल की जाने लगी है । मात्राएं गिन कर लिखने की परंपरा कहीं कहीं ग़ज़ल में आ ही गई है । जबकि ग़ज़ल में मात्राओं की गिनती के साथ क्रम भी देखा जाता है । जबकि छंद में केवल गिनती से काम होता है । ये है उनकी कविता ज़रूर पढ़ें और यदि बधाई देने योग्‍य लगे तो 09977515484 पर ज़रूर दें ।

hathila ji

शनिवार, 10 जनवरी 2009

ग़ज़ल में कहन का ही सारा खेल है, बहर तो उस्‍ताद के सिखाने पर आ जाती है ।

पिछले दिनों ये देखने में आया कि काफी लोग अच्‍छी ग़ज़लें लिख रहे हैं । ग़ज़ल को लेकर अब कुहासा छंट रहा है । लोग अब ये मानने लगे हैं कि हिंदी में भी और आसान शब्‍दों को लेकर भी ग़ज़लें लिखी जा सकती हैं । बस एक ही बात है कि ग़ज़ल में कहन का आनंद होना ही चाहिये । दूसरी बात ये कि कहा गया है कि साहित्‍य समाज का दर्पण है, तो दर्पण का अर्थ है कि जो कुछ सामने है उसकी ही छवि, उसका ही बिम्‍ब दिखाने का काम करने वाला । उसमें कोई छेड़ छाड़ नहीं हो । दर्पण वो जो मेकअप करने का काम नहीं करे जो कुछ भी सामने हो उसीको दिखा दे । मगर होता है ये कि हमारा साहित्‍य दर्पण न बन कर तस्‍वीर बन जाता है, एक सुहानी तस्‍वीर । आइये इसको जानें कि दर्पण साहित्‍य और तस्‍वीर साहित्‍य में क्‍या फर्क है । समाज की विसंगतियों, समाज की बुराइयों, और उसकी अच्‍छाइयों को निरपेक्ष रूप से दिखाना मतलब दर्पण के समान साहित्‍य । ये मेरा व्‍यक्तिगत मत है कि मैं वाल्‍मीकि के राम को तुलसी के राम से जियादह पसंद करता हूं क्‍योंकि वाल्‍मीकि ने राजा राम की कहानी लिखी और तुलसी ने प्रभु राम की कहानी लिखी । 

यदि साहित्‍य समाज को चूल्‍हे में डाल कर एक ही बात कर रहा है इश्‍क की, मुहब्‍बत की, जाम की, शराब की तो इसका मतलब है कि साहित्‍य स्थिर हो गया है । कुछ भी उसका दृष्‍य बदल ही नहीं रहा है ठीक वैसा जैसा कि तस्‍वीर में होता है । देश में आग लगी हो, समाज विघ्‍टन पर हो, सांप्रदायिक द्वेष फैला हो और आप ऐसे में हुस्‍न, इश्‍क, मुहब्‍बत की बाते करें तो आप दर्पण कहां रहे, आप तो तस्‍वीर हो गये हैं । तस्‍वीर जिसके फ्रेम में कभी भी दृष्‍य नहीं बदलता । कभी कभी दर्पण मेकअपमेन का भी काम करता है । ये परंपरा भारत में ही बहुत हुई है । राजाओं ने, महाराजाओं ने अपने हिसाब से साहित्‍य रचवाया है मतलब ये कि साहित्‍यकार ने पैसे लेकर शब्‍दों से मेकअप करने का काम किया । मैं चारण परंपरा के पूरे साहित्‍य को खारिज करता हूं कि वो वास्‍तव में साहित्‍य है ही नहीं । ये तो वैसा ही है जैसा आज भी लालू चालीसा या वसुंधरा चालीसा लिखा जा रहा है । दादा हरिशंकर परसाई जी ने कहा था कि जब आग लगी हो तब यदि आप राग जय-जयवंती गा रहे हैं तो आप कम से कम साहित्‍यकार तो नहीं है ।

ये पूरी बात इसलिये कि इन दिनों कुछ अच्‍छी ग़ज़लें देखने को मिली हैं । और अच्‍छी बात ये है कि सीखने की ओर पुन: ध्‍यान दिया जा रहा है । मुझे बहुत आश्‍चर्य हुआ जब नीरज गोस्‍वामी जी को मैंने किसी ग़ज़ल पर कड़े शब्‍दों में मेल किया और उन्‍होंने जो उत्‍तर दिया वो विस्‍मय कारी था । जबकि मैंने संभवत: बहुत कड़े शब्‍द लिख दिये थे । फिर जब उनका फोन आया और मैंने कहा ''नीरज जी आपका मतला बहुत घटिया है ''  तो वे ठठाकर हंस पड़े और बोले आनंद आ गया । चाहे गौतम हों, वीनस हों, अंकित हों, कंचन हों या रविकांत इन सबमें सीखने की अद्भुत ललक है । और अच्‍छी बात ये है कि कहन पर ये लोग बहुत ध्‍यान दे रहे हैं । बस एक ही बात मैं कहना चाहूंगा कि अपनी ग़ज़ल को लिखने के बाद तुरंत सार्वजनिक न करें । उसे दो दिन रखे रहने दें उसकी तरफ देखें भी नहीं । ये होता है कुम्‍हार के भट्टे में ईंट का पकाना । दो दिन बाद जब आप अपनी ही ग़ज़ल को देखेंगें तो उसमें आपको कई सारे ऐब दिखेंगें । अब बारी है ऐबों को दूर करने की ये चाहें तो आप स्‍वयं कर सकते हैं या फिर इस्‍लाह भी एक तरीका है । मगर ये याद रखें कि पहली बार की लिखी को इस्‍लाह न  करवायें एक बाद खुद करें फिर ही किसी से इस्‍लाह करवायें । दूसरी बार तराशने के बाद ही ग़ज़ल का हुस्‍न निखरेगा और वो बनेगी ग़ज़ल । दूसरी बार देखने पर आपको यदि ऐसा लग रहा है कि ग़ज़ल तो दोयम दर्जे की है तो बिना पुत्रमोह में फंसे उसे फाड़ दें, उसकी नींव पर एक नई ग़ज़ल तैयार करें । सबसे कठिन है अपने लिखे को फाड़ कर फैंक देना, मगर यदि इसकी आदत हो गई तो हम अपने को ऊंचाइयों की ओर ले जाना प्रारंभ कर देंगें ।

कहन की यदि बात करें तो हमेशा याद रखें कि साहित्‍य को दर्पण होना चाहिये । अब अगर आप आज के दौर में शेर कह रहे हैं कि परदा हटाइये ज़रा जलवा दिखाइये तो आज तो मुंह का परदा तो छोड़ें जाने परदा तो कहीं नहीं है । इसका मतलब है कि आप आज के दौर पर नज़र नहीं रखे हैं । कहन का अर्थ है कि आज के दौर की नब्‍ज पर उंगली रखें । कहन का अर्थ है घिसी पिटी परंपराओं को छोडें अचानक कुछ नया सा लिख कर चौंका दें लोगों को । इसका मतलब ये भी नहीं कि प्रेम की कवितायें ही नहीं हों । प्रेम तो काव्‍य का स्‍थायी भाव है मगर कुछ नया तो कहिये । एक शेर जो पिछले दिनों नीरज जी के ब्‍लाग पर बहुत पसंद किया गया कृष्‍ण को तो व्‍यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया, राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से ।  अब आप कहेंगें कि इसमें नया क्‍या है वही कृष्‍ण वही राधा । मगर इसको लोगों ने इसलिये पसंद किया कि कुछ नया कह कर लोगों को चौंकाने का काम किया है । अगर कहा जाता कि कृष्‍ण से राधिका को प्रेम था तो लोग कहते नया क्‍या है सब जानते हैं । हमारे पहले के शायर इतनी ज़मीनों पर हल चला चुके हैं कि हमें बहुत मेहनत करके अपने लिये नई ज़मीन तलाश करनी पड़ती है । नहीं करोंगे तो लोग कहेंगें ठीक है पर ऐसा ही कुछ तो गालिब ने भी कहा था । ऐसा ही कुछ  का अर्थ ये है कि कहने वाला आपका सम्‍मान रखते हुए ये नहीं कह रहा है कि आपने ग़ालिब का चरबा कर दिया है ।

कुछ वादे जो टूट गये उनके लिये खेद

1 समीर लाल जी के पुत्र की शादी में नहीं पहुंच पाया ।

2 हिंद युग्‍म के कार्यक्रम में नहीं जा पाया । ( वादा करने के बाद भी )

5 हिंद युग्‍म पर ग़ज़ल की कक्षायें नहीं लगा पा रहा ।

पहले दो वादे इसलिये टूटे कि 27 को कवि सम्‍मेलन था और केंकड़ों की कहानी के हिसाब से उसे असफल करने का काम मेरे परम मित्रों ने प्रारंभ कर दिया था । मजबूरी थी कि यदि सीहोर छोड़ देता तो कुछ भी हो सकता था । फिर बुखार और स्‍वास्‍थ्‍य ने साथ छोड़ा । पिछले सप्‍ताह जब हिंद युग्‍म पर पुन: कक्षायें लगाने की तैयारी में था तो पत्‍नीपक्ष के एक अत्‍यंत निकटस्‍थ का निधन हो गया । चूंकि वो मेरे दुख में मेरे साथ खड़ी होती है सो मेरा कर्तव्‍य मुझे वहां खींच ले गया ।

कुछ नया जो हो रहा था

पिछला सप्‍ताह धूप, गंध, चांदनी का था । शिवना प्रकाशन की अगली पुस्‍तक जो अमेरिका में बसे भारतीय मूल के पांच कवियों सर्वश्री घनश्‍याम गुप्‍ता, बीना टोडी, राकेश खण्‍डेलवाल, अर्चना पंडा और डा विशाखा ठाकर की कविताओं का संग्रह है । उसके प्रकाशन पूर्व की तैयारियां चल रहीं थीं । और कल ही वो संग्रह प्रिंट में चला गया है । अब समीर लाल जी के संग्रह बिखरे मोती को अंतिम रूप दिया जा रहा है ।

कुछ इच्‍छा है

तरही मुशायरा वसंत पंचमी पर आयोजित किया जाये । मां सरस्‍वती के प्राकट्य दिवस पर । मिसरा दिया जा चुका है

मुहब्‍बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

मुंबई के शहीदों और भारतीय सेना को समर्पित एक कवि सम्‍मेलन

सीहोर की हिंदू उत्‍सव समिति वैसे तो कई काम अच्‍छे करती है वो क्रिसमस पर चर्च में जाकर शुभकामनायें देती है ईद पर ईदगाह पर जाकर शुभकामनायें देती है । गुरूद्वारे पर जाकर मत्‍था टेकती है । अर्थात वो केवल नाम की ही हिंदू उत्‍सव समिति है । वरना तो वो सारे धर्मों के सारे त्‍यौहारों और उत्‍सवों का आयोजन करती है । दूसरी महत्‍वपूर्ण बात ये है कि समिति के लोग सांप्रदायकि तनाव की स्थिति में सबसे पहले पहुंच कर नियंत्रण करने का काम भी करते हैं । ऐसी समिति का आयोजन सफल तो होना ही  था । चलिये आज उस आयोजन की चित्रमय झांकी हो जाये और फिर आगे हो सका तो रपट भी देने का प्रयास करता हूं ।

 

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पूरा का पूरा मैदान खचाखच भरा हुआ था लोगों से

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पंकज सुबीर का काव्‍य पाठ

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हजारी लाल हवालदार का काव्‍य पाठ

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शबाना शबनम का काव्‍य पाठ 

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पंकज सुबीर का काव्‍य पाठ 

परिवार