सोमवार, 31 दिसंबर 2007

एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया, झुलसाता जेठ मास, शरद चांदनी उदास, सिसकी भरते सावन का अंर्तघट रीत गया, एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया

और देखते ही देखते एक और बरस बीत गया । हमारे जीवन का एक और साल चला गया । युगों से ये ही होता आ रहा है और न जाने कब तक ये ही चलता रहेगा । साल आते रहेगें और जाते रहेंगें । हम आज जहां पर हैं कल वहां पर हमारे बच्‍चे होंगें और परसों उनके भी बच्‍चे होंगें । हममे से कई ऐसे होंगें जिनको आने वाले समय में भी याद रखा जाएगा और कई ऐसे भी होंगें जो गुमनाम ही चले जाऐंगें । हममे से ही शायद कोई ऐसा कवि आएगा जो कि हो सकता है मीरा सूर कबीर की तरह अमर हो जाएगा । बरसों बाद भी उसकी कविताएं गुनगुनाती रहेंगीं । आज जैसे हम ग़ालिब को और तुलसी को गाते हैं उस तरह शायद हममे से कोई कवि ऐसा हो जिसे हमारे बाद आने वाली पीढियां गाएं । आज मैंने श्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता को मुखड़े में लगाया है मुझे अटल जी की कुछ कविताएं बहुत पसंद हैं । एक उनकी कविता है टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्‍वर पत्‍थर की छाती में उग आया नव अंकुर  ये भी मुझे खास तौर पर पसंद है । कहते हैं कि कविता की मौत नहीं होती है वो तो सदियों तक जिंदा रहती है और अपनी पहचान बनाए रखती है आज हम किसी भी रूप में तुलसी को कबीर को गाते ही हैं । कविता हर समय का सबसे सशक्‍त हथियार है वो आपरेशन करने वाला औजार भी है और फिर घाव पर लगाया जाने वाला मरहम भी वही है । कविता ने मानव को स्‍वर दिया है हम कल्‍पना नहीं कर सकते कि तब क्‍या होगा जब कविता मर जाएगी । मैं ये बात इसलिये कह रहा हूं कि आज भी कविता संकट में है और आने वाला समय तो और भी कष्‍टदायक होना है । कविता विरोध करने का सबसे सशक्‍त तरीका है । कविता तलवार की तरह से घाव नहीं करती कविता तो सूई की तरस से धंस जाती है और टीसती रहती है । शायद इसीलिये राजनीति को कविता पसंद नहीं आती है ।

आज कविता की बात इसलिये कर रहा हूं कि कविता ने पिछले साल मुझे कई अच्‍छे मित्र दिये हैं मेरे फलक को और विस्‍तृत कर दिया है । और इस साल के प्रारंभ में हिंद युग्‍म पर भी मैं ग़ज़ल की और कविता की नियमित कक्षाएं प्रारंभ करने जा रहो हूं । यहां पर ब्‍लाग पर तो काफी आगे हम आ चुके हैं और काफी विद्यार्थी काफी अच्‍छा लिखने लगे हैं । मगर अभी भी ऐसा लगता है कि और भी कुछ किया जाना बाकी है । अपने ब्‍लाग पर ग़ज़ल की कक्षाएं प्रारंभ करते समय मुझे ज्ञात नहीं था कि ये कक्षाएं मुझे कितने नए लोगों तक पहुंचा देंगीं । प्रारंभ मे तो मैं भी गंभीर नहीं था पर जैसे जैसे लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया और आज हम एक परिवार की तरह से हैं । अभी कुछ दिनों पहले यहां के दैनिक जागरण ने हमारी ग़जल की क्‍क्षाओं पर विशेष समाचार बनाया था । जिसमें सभी विद्यार्थियों का भी उल्‍लेख था एक दो दिन में मैं उस समाचार को स्‍कैन करके लगाऊंगा ताकि सभी उसे देख लें । रवि रतलामी जी  ने अनुरोध किया है  कि मैं हार्डवेयर पर भी एक ब्‍लाग प्रारंभ करके वहां पर कम्‍प्‍यूटर हार्डवेयर का ज्ञान देना प्रारंभ करूं । मेरी भी इच्‍छा है पर क्‍या करा जाए समय की सीमा है मैं प्रात: का जो थोड़ा सा समय है वही दे सकता हूं । फिर भी प्रयास करूंगा कि कुछ कक्षाएं उस पर चालू कर  सकूं ।

पिछले साल ने मुझे काफी कुछ दिया है । पिछले साल में मेरी दस कहानियां और इतने ही व्‍यंग्‍य पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और चर्चित भी हुए । कवि सम्‍मेलनों में भी पसंद किया गया और पत्रकार के रूप में कुछ कहानियों को प्रमुख चैनलों पर स्‍थान मिला । उसके अलावा आप सभी से जो परिचय हुआ वो तो साल की सबसे बड़ी उपलब्‍धी है । एक साल ठीक तरीके से ग़ुज़र रहा है । हालंकि व्‍यवसाय में परेशानी का साल रहा । व्‍यवसाय ठीक नहीं चल रहा है क्‍योंकि आजकल कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण केन्‍द्रों की बाढ़ सी आ गई है । उस पर ये भी नहीं देखा जाता कि सिखाने वाले को खुद भी आता है या नहीं । हो सकता है कि 2008 में व्‍यवसाय को नया मोड़ देना पड़े । हालंकि जो कोर्स हम चलाते हैं उसमें हार्डवेयर, नेटवर्किंग और ग्राफिक्‍स एनीमेशन जैसे विषय हैं पर फिर भी वो बात नहीं आ पा रही है जो आनी चाहिये । शायद छोटी जगह पर काम करने का ड्रा बैक है ये ।

कल मुशायरा है कुछ ही लोगों की कविताएं आईं हैं आज तक जिनकी भी आ जाएंगी उनको लेकर ही कल का मुशायरा होगा । और फिर नए साल में हम प्रारंभ करेंगें बहरों का ज्ञान । अभी मैं क्‍लासों को इसलिये बंद रखे हूं क्‍योंकि अभी छुट्टी का समय चल रहा है सभी लोग परिवारों के साथ हालिडे मना रहे हैं और ऐसे में बहरों का महत्‍वपूर्ण सेशन शुरू करने से उनको नुकसान होगा । तो हमने भी हालीडे घोष्ति कर रखा है । आप सब को आने वाले 2008 की शुभकामनाएं । आपका ही पंकज सुबीर ।

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

जूलियट, सोहनी, लैला या हीर होती है , शम्‍अ होती है धुंए की लकीर होती है, बाद सदियों के कोई इन्दिरा सी है आती, और सदियों में कोई बेनज़ीर होती है

बेऩजीर अलविदा तुमको । तुम उस दौर की नेता रहीं हों जब शायद मेरे उम्र के लोगों के मूंछों के कल्‍ले फूट रहे थे । हम जिनके लिये उस समय कपिल देव, अमिताभ बच्‍चन, राजीव गांधी जैसे हीरो हुआ करते थे ठीक उसी समय तुमने भी 1988 में पाकिस्‍तान की बागडोर संभाली थी । मुझे याद आता है कि उस समय भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे और किसी शायर ने कहा था

रश्‍क आता है तेरी किस्‍मत पर क्‍या तेरे हाथ को लकीर मिली

और सब नेमतें तो हासिल थीं अब पड़ोसन भी बेनज़ीर मिली

  और आज तुमको विदा भी देना पड़ गया । सृष्टि का नियम है  आए हैं सो जाएंगे राजा रंक फ़क़ीर  मगर कभी कभी किसी का जाना ऐसा होता है जो कि चुभता रहता है टीस देता रहता है सदियों तक । वैसे हमारा भारतीय उप महाद्वीप तो सदियों से अपने नेताओं की हत्‍या करता रहा है । तुम को हम कैसे बख्‍श देते जब हमने महात्‍मा गांधी को तक नहीं बख्‍शा जब हम उस बूढ़े और कृशकाय शरीर में गोलियां उतार सकते हैं तो फिर तो हम किसी को भी मार सकते हैं । हम भारतीय उपमहाद्वीप के लोग जिनहोंने 30 जनवरी 1948 को अपने ही राष्‍ट्रपिता की हत्‍या कर दी और उसके बाद हमारी दाढ़ में जो खून लगा वो अभी भी हमसे हत्‍याएं करवा ही रहा है । 16 अक्‍टूबर 1951 को लियाकत अली खान की हत्‍या कर दी गई । 25 सितम्‍बर 1959 को श्रीलंका के राष्‍ट्रपति सोलोमन भंडारनायके की हत्‍या हुई । और ये सलिसिला चलता ही रहा । 15 अगस्‍त 1975 को बांग्‍लादेश ने अपने ही जन्‍मदाता को मार डाला 1971 में बांग्‍लादेश को बनाने में सबसे महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शेश मुजीबुर्रहमान को भी मार डाला गया । 31 अक्‍टूबर 1984 मेरी पीढ़ी के लोगों को इसलिये याद है कि हम जो उस समय सोलह सत्रह साल की उम्र में थे हम सबने देखा था कि कैसे किसी देश के शासक की हत्‍या हो जाती है । इंदिरा गांधी जिसको दुर्गा की संज्ञा दी गई उसी दुर्गा को हमने मार डाला । 21 मई 1991 को बेटा भी मां की राह पर चल दिया और राजीव गांधी की भी हत्‍या हो गई । 1 मई 1993 को श्रीलंका में राष्‍ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्‍या हुई तो 1 जून 2001 को नेपाल नरेश और उनकी पत्‍नी एंश्‍वर्या केा मार डाला गया और अब की बार तुम्‍हारी बारी थी बेनज़ीर ।

तुमको किसी व्‍यक्ति ने नहीं मारा बल्कि विचारधारा ने मारा है और हम लाख किसी को पकड़ कर फांसी पर लटका दें मगर हम जानते हैं क‍ि रक्‍त बीजों को फांसी पर लटकाने से कुछ नहीं होता हैं । विचारधारा जब तक जिंदा है तब तक तो रक्‍तबीज पैदा होते ही रहेंगें । अगर आज गांधी फिर से जन्‍म लें तो क्‍या हम ये सोच कर निचिंत हो सकते हैं कि अब तो कुछ नहीं हो सकता क्‍योंकि हमने तो गांधी के हत्‍यारे को बरसों पहले ही फासी दे दी थी । नहीं हो सकते क्‍योंकि हत्‍यारे तो हर युग में जन्‍म लेते रहेंगें ।

मैं तुमको सलाम करता हूं इसलिये क्‍योंकि तुम जानतीं थीं कि तुम्‍हारी हत्‍या हो जाएगी उसके बाद भी लौट कर आईं । ये हिम्‍मत एक स्‍त्री ही दिखा सकती है । तुमको याद होगी झांसी की रानी लक्ष्‍मी बाई वो जो कर गईं वो काम भी केवल एक स्‍त्री ही कर सकती थी । हम पुरुष तो जन्‍म से ही कायर होते हैं । हम तो अवसर ढूंढते हैं कि कहां से भाग जा सकता है । तुम ने जान की परवाह न करके वो करने का प्रयास किया जो पाकिस्‍तान की जनता के लिये अभी सबसे जरूरी काम था । 

तुम्‍हारा जाना पूरे महाद्वीप के लिये नुकसान की बात है क्‍योंकि तुम्‍हारा रहना स्थिरता का प्रतीक था पाककिस्‍तान में । मेरे गुरू कहते हैं कि अगर आपका पड़ोसी सुख से है तो आपको भी सुख होगा । मैं तुम्‍हारी बहादुरी को प्रणाम करता हूं पिंकी । भारत और पाकिस्‍तान जो 1948 में अलग हुए उसके बाद की कड़वाहट को कभी भुला नहीं पाए हें और आज तक भी शत्रु बने हुए हैं पर उस शत्रुता को परिणाम दोनों को ही भुगतना पड़ रहा है ।  पिंकी  तुम अब जब नहीं हो तो मैं तुमको बता दूं कि किशोर अवस्‍था में जो टूटा सा आकर्षण होता है कच्‍चा सा मोह होता है वो मुझे भी हुआ था और वो आकर्षण हुआ था फिल्‍म अभिनेत्री  रेखा  के प्रति   अपनी एक अध्‍यापिका के प्रति और शायद तुम्‍हारे प्रति भी । इसीलिये तुम्‍हारा जाना आज पीड़ादायी लग रहा है। एक बार फिर तुम्‍हारी बहादुरी को प्रणाम करता हूं पिंकी

सोमवार, 24 दिसंबर 2007

परदेश में प्‍यासे से कभी ज़ात न पूछो, उलझन है पुरानी तो नई बात न पूछो, रातें न हमें दे सको अपनी तो सितारों, फि़र हमने गुज़ारी है कहां रात न पूछो

माड़साब को तो कुछ नहीं हुआ था पर माड़साब के पीसी को वायरसों ने घेर लिया था । माड़साब को पिछले कुछ दिनों से डाउनलोडिंग को शौक चर्रा रहा था । बीस दिनों में पांच छ: जीबी के साफ्टवेयर डाउनलोड कर लिये हांलकि एक एंटी वायरस डला था  जो कि अच्‍छा माना जाता है पर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई और समस्‍या आ गई । खैर अब माड़साब ने एक साथ चार साफ्टवेयर डाल लिये हैं एक ट्रोजन का एक स्‍पाय वेयर का एक वायरस को और एक डिफेंडर । और हां माड़साब ने पूरी तैयारी कर ली है नए साल के मुशायरे की सभी छात्र छात्राएं एक दो दिनों में अपनी ग़ज़लें भेज दें और अपना सुंदर सा चित्र एवं विवरण भी, माड़साब प्रयास कर रहे हैं कि सभी ग़ज़लों को किसी मशहूर हस्‍ती से प्रस्‍तुत करवाएं । मगर ये तभी हो पाएगा जब समय पर ग़ज़लें प्राप्‍त हो जाएंगी अर्थात 28 तक ।

आज माड़साब ने हिंदी के एक बड़े कवि श्री गोपाल सिंह जी नेपाली का मुक्‍तक लगाया है । मुक्‍तक एक अलग विधा है हालंकि देखा ये जाता है कि मुक्‍तक भी अधिकांश बहर में ही होते हैं । मगर फिर भी ऐसा नियम नहीं हैं कि हिंदी का मुक्‍तक बहर पर हो क्‍योंकि हिंदी के काव्‍य के अपने नियम हैं वहां पर पढ़ने के तरीके पर ही ज्‍यादा काम होता है । गोपाल सिंह जी को जिन्‍होंने सुना है वो जानते होंगें कि नेपाली जी का हिंदी कविता में क्‍या योगदान है ।

आज हम रुक्‍न को समापन कर लेंगें और उसके बाद ही हम प्रारंभ कर पाएंगें अपना बहर का कार्य । हालंकि बहरों को लेकर मुझे अभी भी थोड़ी सी पशोपेश है कि ब्‍लाग पर डालूं या नियमित विद्यार्थियों को ईमेल से ही बताऊं । वो इसलिये कि जो नियमित नहीं हैं उनको कैसे ज्ञान मिल सकता है । नियमित का मतलब ये कि जो भले ही रोज हाजिरी न लगाएं पर चार पांच दिनों में तो आते रहें हों । अन्‍यथा तो मैं ये जानता हूं कि कई ऐसे भी हैं जो नियमित तो पढ़ रहे होंगें पर जिनके पास एक टिप्‍पणी लगाने का समय नहीं होगा । ये हम हिन्‍दुस्‍तानियों की एक विशेषता है हम आभार व्‍यक्‍त करने में और क्षमा मांगने में अपने को छोटा महसूस करते हैं । मेरे पास कम्‍प्‍यूटर सुधरने आते हैं उनमें से कई मेरे परिचितों के भी होते हैं उनमें से कई ऐसे हैं जो जाते समय पेमेंट का पूछते भी नहीं है कि भई आपने काम किया तो कुछ पैमेंट तो नहीं हुआ । कई बार ऐसा होता है कि घंटे भर की मेहनत के बाद आदमी बिना कुछ कहे मतलब कि धन्‍यवाद भी कहे बगैर कम्‍प्‍यूटर ले जाता है । और माड़साब के सहयोगी सोनू और सनी उसके बाद माड़साब की ही क्‍लास ले लेते हैं ।

खैर चलिये हम तो आज अपनी क्‍लास को समाप्‍त कर लेते हैं ।

बात रुक्‍न की चल रही थी ।

सप्‍तकल : इसमें हम छ: रुक्‍न देख चुके थे और अब तीन बाकी हैं ।

7:- मुफतएलान 21121 एक दीर्घ फिर दो स्‍वतंत्र लघु फिर एक दीर्घ फिर एक लघु

इसके भी निम्‍न तरीके हो सकते हैं

आप मगर न 2, 1, 1, 11,1

शहृ र मगर न 11,1,1,11,1

शहृ र कहीं न 11,1,1,2,1

आप कहीं न 2,1, 1, 2, 1

ये रुक्‍न कम मिलता है सामान्‍य तौर पर ग़ज़लों में ।

8:- मफाएलान 12121 एक लघु ए‍क दीर्घ एक लघु एक दीर्घ एक लघु

कितने तरीके हो सकते हैं इसके

न आम ख़ास 1,2,1,2,1

न शहृ र खास 1,11,1,2,1

न शहृ र वज्‍़न 1,11,1,11,1

न आम शहृ र 1,2,1,11,1

9 :- मफऊलान 2,2,2,1 इसका विन्‍यास भी लगभग वही होता है जो पिछली कक्षा के मफऊलातु का था पर दोनों में क्‍या फर्क होता है ये हम बहरों में देखेंगें ।

तो इस तरह से हमने देखा कि रुक्‍न कुल इतने होते हैं ।

1 दो कल दो प्रकार के

2 तीनकल में तीन प्रकार के

3 चौकल में पांच प्रकार के

4 पंचकल में आठ प्रकार के

5 षटकल में आठ प्रकार के चलन में (होते तो अधिक है)

6 सप्‍त कल में नौ प्रकार के चलन में ( होते अधिक हैं)

नोट : कुछ एक दो प्रकार के अष्‍टकल भी चलन में होते हैं बहुत मामूली से तो हम कल उनकी भी बात कर लें गें । हां माड़साब ने मुशायरे का आयोजन गंभीरता से किया है अत: ध्‍यान रखें कि 28 तक आप सब की ग़ज़लें मिल जानी चाहिये । और साथ में परिचय तथा फोटो भी क्‍योंकि ब्‍लाग पर सभी के फोटो नहीं हैं ।

बुधवार, 19 दिसंबर 2007

कभी विकल हो जाता हूं जब रातों को तन्‍हाई से, अपना मन बहलाता हूं तब यादों की श‍हनाई से, जब भी मुझे अकेला पाया तेरी सुधियां गमक उठीं, शयन कक्ष हो गया सुगंधित यादों की पुरवाई से

कभी कभ जब कक्षा में विद्यार्थी नहीं आते हैं तो फिर माड़साब भी नाराज़ हो जाते हैं और नाराज़ होकर फिर वे अगले दिन कक्षा नहीं लेते हैं कुछ ऐसा ही हुआ था कल कि माड़साब ने देखा कि सोमवार की कक्षा किसी ने अटेंड नहीं की एक अभिनव को छोड़कर तो माड़साब ने मंगलवार की कक्षा खुद ही गोल कर दी । अभिनव की एक ग़ज़ल कक्षा में आ चुकी है और उस पर काम करना बाकी है उधर अनूप जी की ग़ज़ल तो हो चुकी है पर उस पर कुछ और शे'र मिले हैं जो कि अनूप जी ने ही भेजे हैं उन पर भी एक दिन चर्चा होनी है । आप लोगों को फिर से याद दिलाया ज रहा है कि नववर्ष के उपलक्ष में एक मुशायरा आयोजित किया गया है जो कि सकारात्‍मक सोच से भरी हुई ग़ज़लों का होगा आप सब उसके लिये अभी से ग़ज़लें दे दें क्‍योंकि देर से आई हुई ग़ज़लों पर इसलिये काम नहीं हो पाएगा क्‍योंकि माड़साब की ऐसी इच्‍छा है कि इस बार ग़ज़लों पर काम करके उनको ध्‍वनि के रूप में ब्‍लाग पर डाला जाएग और कुछ चित्र भी उन पर बनवाएग जाऐं । आज जबलपुर के शायर आचार्य भगवत दुबे की एक सुंदर सी हिंदी ग़ज़ल का मतला और एक शे'र लगाया है । इसका एक और भी शे'र है जो कि मुझे बहुत पंसद है वो कुछ यूं हैं तुम आओ या न आओ पर यादों को आने देना, कितना सुख मिलता है मुझको यादों की पहुनाई से ।

चलिये बातें तो बहुत हो चुकी हैं आज कुछ काम की भी बात भी हो जाए क्‍योंकि वो ही खास है । इन दिनों में अपने गुरू श्रद्धेय नारायण कासट के काव्‍य संग्रह पर काम कर रहा हूं शिवना प्रकाशन से वो संग्रह मैं प्रकाशित करने  जा रहा हूं । श्री कासट ने कम लिखा है पर हम जैसों को लिखने के लिये खूब प्रेरित किया है । भवानी दादा परसाई जी नीरज जी बालकवि बैरागी जी कैफ भोपाली जैसे लोगों के साथ काम किया है उन्‍होंने । आजकल वे रीढ़ की हड्डी की समस्‍या के कारण बिस्‍तर पर हैं और चल फिर नहीं सकते हैं । अपने प्रकाशन से उनकी पुस्‍तक निकाल कर मैं कृतार्थ महसूस कर रहा हूं अपने को । ये शिवना की अगली पुस्‍तक है जिसका नाम रखा गया है टुकुर-टुकुर चांदनी

सप्‍तकल

हमने इसमें चार प्रकार देख लिये थे  और अब हम पांचवे की ओर चलते हैं ।

5:- मफ़ाएलतुन 12112 एक लघु फिर एक दीर्घ फिर दो स्‍वतंत्र लघु और अंत में एक दीर्घ ( उच्‍चारण में मफाईलतुन जैसी ध्‍वनि होगी पर भिन्‍नता ये है कि उसमें 1222 है मतलब तीसरी दीर्घ है और यहां पर 12112 है जो तीसरी और चौथी लघु हैं वे संयुक्‍त न होकर अलग अलग हैं )

उदाहरण देखें

1 न जान मगर 1,2,1,1,11

2 न जान कहीं 1,2,1,1,2

3 न तुम न हमें 1,11,1,1,2

4 न तुम न डगर 1,11,1,1,11

अब सबसे पहले तो ये देखें कि हालंकि पहली दीर्घ के बाद दो लघु मात्राएं आ रहीं हैं और फिर उसके बाद में फिर से दो लघु और फिर से दो लघु मगर बीच की दो लघु को यहां पर कामा लगाकर अलग कर दिया गया है क्‍योंकि ये एक दूसरे को समर्थन देकर गठजोड़ की सरकार नहीं बना रहे हैं । न तुम न डगर  को देखें इसमें  न  लघु है फिर आया  तुम  ये दोनों लघु मिलकर बना रहे हैं एक दीर्घ और फिर आया एक और लघु   जो कि स्‍वतंत्र है हालंकि उसके बाद एक लघु और है   मगर वो वाम दलों की तरह बाहर से भी समर्थन नहीं दे रहा है । और इसीलिये  न  और   ये दोनों मिलकर एक दीर्घ नहीं बन पा रहे हैं । फिर आ रहा है डगर  का गर  जो कि दो लघु तो हैं पर वे एक दूसरे को समर्थन देकर गठजोड़ की सरकार बना रहे हैं और इसलिये उनको एक दीर्घ कहा जा रहा है ।

6:- मफ़ऊलातु 2221 प्रारंभ की तीन मात्राएं दीर्घ और फिर एक लघु मात्रा

उदाहरण देखें

1 हम तुम आज 11,11,2,1

2 तोड़ो आज 2,2,2,1

3 हम तुम कब न 11,11,11,1

4 तोड़ो दिल न 2,2,11,1

5 हम हैं आज 11,2,2,1

6 हैं हम आज 2,11,2,1

7 जो हम तुम न 2,11,11,1

8 हम हैं तुम न 11,2,11,1

मतलब कुलमिलाकर बात वही है कि कैसे भी करके प्रारंभ की जो तीन मात्राएं हैं उनको दीर्घ होना है और आखिर की एक लघु हो ।  हम तुम कब कसम  को अगर देखें तो हम 11, तुम 11, कब 11,  और फिर जो कसम शब्‍द आ रहा है उसका भी   जो है वो इस वाले रुक्‍न में गिना जाएगा और सम  जो है वो अगले रुक्‍न में चला जाएगा । मतलब ये कि रुक्‍न बनाते समय शब्‍दों को तोड़ा भी जा सकता है आधा शब्‍द एक रुक्‍न में और आधा दूसरे में होगा । जैसे  हम तुम कब क़सम खाकर चले थे ये बताओ  में

2221, हम तुम कब क

2221 सम खाकर च

2221 ले थे ये ब

22 ताओ 

चलिये आज के लिये इतना ही बहुत हैं ।

एक बात जो मैं गंभीरता से सोच रहा हूं वो ये कि अब बहरों को लेकर जो काम होना है वो मैं ब्‍लाग पर न करके उन छात्रों और छात्राओं के साथ ई मेल के द्वारा करूं जो अभी तक की क्‍लासों में गंभीर रहे हैं तथा जिनमें सीखने की ललक है । मैं नहीं चाहता कि जिन लोगों ने अभी तक मेहनत की हे उनको अलग से न देखा जाए । तो मेरा विचार ये है कि बहरों को ब्‍लाग पर प्राकशित न करके उनको विद्यार्थियों के ईमेल में सीधे भेजा जाऐ उन विघार्थियों के जो कि अभी तक गंभीरता से पढ़ाई कर रहे हैं । मैा इस विषय में गंभीर हूं और अभी तक की कक्षाओं का विवरण तलाश रहा हूं कि  कितने विद्यार्थियों ने गंभीरता से क्‍लासें अटेंड की हैं । आप भी बताएं कि क्‍या करना चाहिये ।

सोमवार, 17 दिसंबर 2007

मिरे मासूम सपने अश्‍क बनकर थरथराये हैं, मेरी मुट्ठी में सूखे फूल हैं, ख़ुश्‍बू के साये हैं ।

आजकल माड़साब को पढ़ाने में मज़ा आ रहा है और वो इसलिये क्‍योंकि आजकल विद्यार्थी गण काफी रुची ले रहे हैं और कुछ नए एउमीशन भी मिल गए हैं । अब ये तो सब ही चाहते हैं कि क्‍लास भरी रहे हैं । उड़नतश्‍तरी इन दिनों भारत में है और परसों रात में माड़साब के पास फोन आया था उड़नतश्‍तरी इस सप्‍ताह में सीहोर में उतरने वाली है और माड़साब उस दिन सीहोर में एक कार्यक्रम का आयोजन करने के विचार में हैं जिसकी जानकारी आप सभी को मिल जाएगी और माड़साब की इच्‍छा है कि उस दिन कुछ आन लाइन भी किया जाए और उस दिन के आयोजन मं एक दो कव‍ि आनलाइन पाठ भी करें अब देखें क्‍या हो पाता है उस दिन ।

वैसे तो काफी दूसरा काम है करने को अभिनव की ग़जल को पोस्‍ट मार्टम करना है और अनूप जी की जो ग़ज़ल अब मिली है उस पर भी कुछ कहना है पर आज नहीं क्‍योंकि आज तो हम दो दिन की छुट्टी से निपट कर बैठै हैं तो आज तो सबसे पहले हम आज का पाठ शुरू करते हैं । सब बच्‍चे अपनी किताबें खोलें और सप्‍तकल के रुक्‍नों वाला पृष्‍ठ खोल लें हमने आखिरी क्‍लास में जहां पर छोड़ा था हम वहीं से आगे बढ़ने वाले हैं ।

3:- मफ़ाईलुन 1222 एक लघु और फिर तीन दीर्घ लगातार ललालाला

अब इसको भी देख में कि ये कितने प्रकार से हो सकता है ।

न जा भाई 1222

न हम भाई 1,11,2,2

न भाई तुम 1,2,2,11

हमें तुमने 1,2,11,2

हमें तुम सब 1,2,11,11

न हम सब ने 1,11,11,2

न हमने सब 1,11,2,11

न तुम हम कल 1,11,11,11

तो ये कुल मिलाकर आठ प्राकर से हो सकता है कि बज्‍़न वही हो मफ़ाईलुन और विन्‍यास अलग अलग हो । अब इस विन्‍यास को अगर देखें तो सबमें अलग अलग है पर अगर हम उच्‍चारण करके देखेंगें तो हम पाऐंगे कि उच्‍चारण में वज्‍़न की समानता साफ आ रही है । अर्थात पहली मात्रा तो लघु है और बाद में तीन दीर्घ आ रही हैं और इन के कारण कुल जोड़ हो रहा है सात और इसीलिये ये भी सप्‍तकल का एक उदाहरण है ।

4:- मुतफाएलुन 2212 लालालला

इसके विन्‍यास भी देखें जाएं कि कितने हो सकते हैं ।

जाना नहीं 2,2,1,2

तुमने नहीं 11,2,1,2

जो हम नहीं 2,11,1,2

जाना न तुम 2,2,1,11

हम तुम नहीं 11,11,1,2

हमको न तुम 11,2,1,11

जो हम न तुम 2,11,1,11

अब हम न तुम 11,11,1,11

वहीं आठ प्राकर के विन्‍यास यहां पर भी निकल के आ रहे हैं और वज्‍़न यहां पर भी समान हैं लेकिन मात्राओं का वितरण अलग अलग तरह से हो रहा है । हम ये ध्‍यान रखें कि चाहे कुछ भी लेकिन अगर ध्‍वनि में हमें सात मात्राऐं मिल रही हैं आैर विन्‍यास लालालला हो रहा है तो फिर वो मुतफाएलुन रुक्‍न ही है ।

रुक्‍नों की कुछ क्‍लासें और बची हैं फिर हम सीधें आऐंगें बहरों पर जो कि सबसे दुर्लभ बात हैं और हम ये जान लें कि वो ही सबसे गंभीर विषय होगा । एक बात जो मैं बार बार कहता आ रहा हूं कि बहरों का ज्ञान खोलना वैसा ही होगा जैसे कि कोई तिलस्‍म खुलने जो रहा हो क्‍योंकि ये एक छुपा हुआ रहस्‍य है 1

अच्‍छा एक बात तो हम भारतीयों का कभी नहीं छूटती भले ही हम कहीं पर भी बस जाऐं और वो ये कि अगर बिजली का बिल भरने की आखिरी तारीख 16 दिसम्‍बर है और अगर हम दस दिसम्‍बर को बिजली कार्यालय में खड़े हैं जेब में पैसे भी हैं बिल भी रखा है तो भी नहीं भरते ''' अभी तो छ: दिन है अभी क्‍यों भरें '' । जबकि आज कार्यालय पर बिल्‍‍कुल भीड़ नहीं है आराम से भर सकतें हैं पर नहीं साहब आखिरी तारीख को धक्‍का मुक्‍की में ही भरेंगें । पिंटू के स्‍कूल की फीस भी आखिरी दिन ही जमा होती है और टेलीफोन का बिल वो तो हम जब तक वहां से फोन नहीं आत तब तक नहीं भरते । ये बातें मैं इसलिये कर रहा हूं  कि मैंने संसद पर हमले को लेकर सबसे कहा था कि कुछ पंक्तियां दीजियेगा और ये बात काफी पहले कह दी थी मगर कुछ पंक्तियां जो आईं वो उसी दिन आंईं जब उनको लगाना मुश्किल था ।

अब तेरह दिन पहले कह रहा हूं कि नए साल पर सब एक पूरी ग़ज़ल लिख कर प्रस्‍तुत करें । ग़ज़ल पूरी तरह से सकारात्‍मक सोच से भरी हो हम नए साल की शुरूआत नकारात्‍मक सोच से नहीं कर सकते ।  गज़ल में मतला और पांच या सात शे'र निकालें । जो नहीं करेंगें उनको कक्षा में सवालों के जवाब नहीं दिये जाऐंगें और उनकी समस्‍याओं पर विचार नहीं किया जाएगा । ग़ज़ल बिजली के बिल की तरह से आखिर तारीख को जमा न करें । जैसे ही हो वैसे जमा करवा दें  ।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

उलझा हुआ हूँ वक्त के बोझिल सवाल में, पत्थर निकल रहे हैं बहुत आज दाल में, मुद्दत से कह रहे हैं जो मंदिर बनाएँगे, उनसे सड़क न एक बनी पाँच साल में।

काफी बातें हो गईं हैं पिछले दिनों में और चूंकि आज सप्‍ताह का अंतिम कार्य दिवस है अत: आज हम कुछ पढ़ाई वगैरह कर लें क्‍योंकि फिर आने वाले दो दिनों में तो छुट्टी रहनी है सप्‍ताहांत की । आज मैंने अपने होनहार छात्र अभिनव की ग़ज़ल को अपने मुखड़ें में लगाया है । और बाद में पूरी ग़जल़ भी दूंगा जो कि कुछ दोष युक्‍त है । मेर हिसाब से अब तो अभिनव को ऐसी ग़लतियां नहीं करनी चाहिये और एक बात और धयान में रख्‍नी चाहिये कि जो चीज़ आप प्रकाशित करने जा रहे हैं उस पर तो विशेष ध्‍यान इसलिये भी रखना चाहिये कि एक बार प्रकाशित होने के बाद तो वो लोगों के सामने आ जाएगी और उसके बाद तो फिश्र आप उसमें कुछ भी नहीं कर सकते हैं । ख़ैर हमने अनूप जी की ग़ज़ल को सुधार लिया है और अब अभिनव की बारी है उसमें अनूप जी की ग़ज़ल के मुकाबले में काफी जियादा दोष हैं । पहले ग़ज़ल को देख लें और फिर उस पर दो दिनों तक काम करें । और अभिनव एक काम करों कोने में खड़े हो जाओ और सौ बार जोर जोर से बोलो '' माड़साब अब ग़लती नहीं करूंगा '' ।

उलझा हुआ हूँ वक्त के बोझिल सवाल में,
पत्थर निकल रहे हैं बहुत आज दाल में,
गिद्धों को उसने टीम का सरदार कर दिया,
लो फंस गई भोली सी चिरइया भी जाल में,
बाबर को नहीं देखा है मैंने कभी मगर,
मस्जिद ज़रूर देखी है इक ख़स्ता हाल में,
मुद्दत से कह रहे हैं जो मंदिर बनाएँगे,
उनसे सड़क न एक बनी पाँच साल में।

चलिये आज का सबक शुरू करते हैं आज हमको सप्‍तक की बात करनी है और फिर कुछ सवालों की भी बात करनी है जो कि छात्रों ने उठाए हैं ।

सप्‍तकल : सप्‍तकल का मतलब ही स्‍पष्‍ट है क‍ि वे रुक्‍न जिनमें कि सात मात्राएं हो। वैसे तो इसमें काफी ज्‍यादा तरतीब हो सकती हैं पर उर्दू शायरी में उनमें से केवल नौ को ही प्रयोग किया जाता है ।

1:- फ़ाएलातुन 2122 लाललाला  एक गुरू फिर एक लघु फिर दो दीर्घ

इसके भी दो प्रकार हो सकते हैं

अ: एक तो ये कि जैसा कि कहा गया है वैसा ही हो अर्थात पहले एक दीर्घ आ रहा हो फिर एक लघु आए और फिर दो दीर्घ आऐं । जैसे नाम आया  को अगर देखें तो इसमें ना एक दीर्घ है फिर आ रहा है   जो कि एक लघु है और उसके बाद एक दीर्घ और फिर या  एक और दीर्घ ।

ब:  या फिर ऐसा भी हो सकता है कि सातों ही लघु हों और उनमें से पहली और दूसरी संयुक्‍त होकर दीर्घ बन जाए फिर तीसरी स्‍वतेत्र लघु हो और फिर चौथी और पांचवी तथा छठी और सातवी मिलकर दीर्घ बना रही हो।  या फिर इतने प्रकार हो सकते हैं

तुम न हमसे 11,1,11,2

तुम न हमदम 11,1,11,11

तुम न जाकर 11,1,2,11

पास आकर 2,1,2,11

पास हमको 2,1,11,2

तुम न तोड़ो 11,1,2,2

जा न हमदम 2,1,11,11

अब इन सबमें वज्‍़न तो वही है फ़ाएलातुन या फिर लाललाला या फिर 2122 मगर विन्‍यास में परिवर्तन लेकिन ध्‍यान रखना है कि विन्‍यास से कुछ भी नहीं होता है जो होता है वो तो वज्‍़न से होता है और यहां पर वो वज्‍़न ही है जो इन सात और एक ऊपर के आठवें को एक ही रुकन में रख रहा हे ।

2 :- मुसतफ़एलुन 2212 लालालला दो गुरू फिर एक लघु और फिर एक दीर्घ

अब इसमें भी इतने विन्‍यास हो सकते हैं

जाना नहीं 2,2,1,2

जाना न तुम 2,2,1,11

अपना नहीं 11,2,1,2

बाहर नहीं 2,11,1,2

अब हम न तुम 11,11,1,11

ना हम न तुम 2,11,1,11

हम तुम कहीं 11,11,1,2

हमने सनम 11,2,1,11
अब ये भी वैसे तो आठ विन्‍यास हैं पर इन आठों में वज़न वहीं है मुसतफएलुन या लालालला या 2212 , केवल विन्‍यास को पकड़ने का ही तो खेल है और उसके बाद तो कुछ भी नहीं है । 

अब चलिये कुछ प्रश्‍नों पर बात करलें

Devi Nangraniनिराला अंदाज़ हैऔर सुगम भी. क्या ऐसा हो सकता है कि इस्किएक फाइल हो और हम जब चाहें वहां जाकर फिर फिर इसका लाभ उठा सकें. अभिनव कि बात से मैं बिल्कुल शामिल रे हूँ. क्या अपनी लिखी ग़ज़ल को दुरुस्त करने के लिए इस मंच कि मदद ली जा सकती है.

माड़साब :- क्‍यों नहीं अगर मन में दुविधा हो तो सेकेंड ओपिनियन तो हर जगह काम करती है ।

अजय कानोडिया सर जी
यहाँ पर मैं अपना एक सवाल फिर दोहरा रहा हूँ |
जैसा आपने पिछले अंक में दिया गया शेर का वजन निकला है
ति र हा थ स कुछ म र हक म ज रा न भ ला ह हु आ न बु रा ह हु आ
112 112 112 112 112 112 112 112
फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन
यहाँ पर आपने यह कैसे तय किया कि इस वजन में आप ३ मात्राओ को मिला कर रुकान निकालेंगे ?
४ मात्राए क्यों नहीं ? इस तरह
११२१ १२११ २११२ ११२१ १२११ २११२
ऐसा करने से वजन एकदम बदल जाएगा |

माड़साब :- ग़ज़ल में तय बहरें हैं और उन पर ही काम होता है कुल मिलाकर सारा परिदृष्‍य उनके ही अासपास घूमता है सो हमें वज्‍़न को बहर के हिसाब से ही निकालना होात है वो जो किसी बहर पर आता हो । अभी आने वाली कक्षाओं में जब बहर आएगी तो आप समझ जाऐं गें ।

रिपुदमन पचौरी
सुबीर जी,
यह बतलाएं कि ...
खवाब को साकार देखो = यह वज़न के हिसाब से सही क्यों है? ( क्या इस में, ’खव’ के लिए,जल्दी पढ़ने वाला फ़ामूला लगाया गया है ?)
आइना = के स्थान पर आरसी शब्द का प्रयोग किया जा सकता है ?
पोस्ट अभी पढ़ी है, सो .. कुछ समय दें आज की गज़ल का बहर जल्दी ही लिख कर जमा कर दूंगा।
मंगल कामनाएं

माड़साब :- पुरानी कक्षाओं के नोट्स लें समझ आ जाएगा ।

नीरज गोस्वामी गुरूजी
आप की पुरानी पोस्ट देख रहा था लेकिन उनमें से कौनसी सीखने के लिहाज़ से पढी जायें ये बता दीजिये. बहुत उपकार होगा. यूँ तो खोजने में ही बहुत वक्त जाएगा. आप मुझे तारीख या पोस्ट का शीर्षक बता दीजिये.
नीरज

माड़साब :- आप वे सभी देखें जिसमें वज्‍़न की बात कही गई है ।

अभिनव आदरणीय गुरुदेव पूरे दो घंटे लगे इस क्लास को पूरा करने में.
आपका बहुत धन्यवाद, मुझे नही लगता है की बड़े शायरों के उस्ताद भी उनको कभी इतने विस्तार से ग़ज़ल की बारीकियों को समझाते होंगे. अब इसके बाद भी यदि हम ग़लत ग़ज़ल लिखें तो फिर सारा दोष हमारी अल्पज्ञता का ही होगा.

माड़साब :- धन्‍यवाद आप सभीका ।

गुरुवार, 13 दिसंबर 2007

दे के अपनी जान तुम महफूज़ हमको कर गए, पर वतन के रहनुमा अपनी जुबा से फिर गए, आसमां पर जो तिरंगा शान से तुमने रखा, रंग उसके बादलों से नीर बन कर गिर गए

आज तेरह दिसम्‍बर है और आज संसद भवन को बचाने में जो आठ जवान श्री जगदीश प्रसाद यादव, सुश्री कमलेश कुमारी, श्री मतबार सिंह नेगी, श्री नानक चंद, श्री रामपाल, श्री ओमप्रकाश, श्री घनश्‍याम, और श्री बिजेंद्र सिंह शहीद हुए थे उनको मेरा नमन आज उनके लिये केवल एक छात्र अजय कनोदिया ने ही अपने श्रद्धा सुमन भेजे हैं जो मैंने आज के मुखड़े में लगाए हैं । अपनी भी चार पंक्तियां उनको देता हूं

समंदर को सुखा डालें वो कुछ ऐसे शरारे थे

हमारे आसमां के सबसे चमकीले सितारे थे

घिरी संकट में जब संसद थी तब उन आठ वीरों ने

लहू देकर के मां के दूध के कर्जे उतारे थे

मित्रों काफी बहस के बाद कुछ अच्‍छी बातें सामने आईं हैं और ये लगने लगा है कि अब विद्यार्थी सचमुच गंभीर हैं अपने अध्‍ययन को लेकर । अनपू जी की जिसे ग़जल को लेकर हमने बात की है उसमें कुछ शे'र अच्‍छे निकल आए हैं । विशेषकर दो चोटी बांध कर लाल रिब्‍बन का फूल उसमें कस कर कक्षा में नाक पोंछती हुई आने वाली कंचन ने एक शे'र अच्‍छी निकाला है । और स्‍वयं अनूप जी का भी कहना है कि

सुबीर जी:
मुझे भी कंचन जी का मिसरा अच्छा लगा । ’आइना इक बार देखो’ में कविता होने की बात से भी सहमत हूँ । कंचन जी , क्या ये शेर मैं आप से ले सकता हूँ ?
अजय के मिसरे में ’कल्पना साकार देखो’ बहर में तो है लेकिन अर्थ वह नहीं आ रहा है जो मैं कहना चाहता था ।
अभिनव ने सुझाया :
मन में था विश्वास पूरा,
लो सपन साकार देखो,
इसे बदल कर इस तरह से कहें तो ?
मन में हो विश्वास पूरा
हर सपन साकार देखो ।
मेरे दोस्त घनश्याम गुप्ता जी नें जब यह गज़ल पढी थी तो कई शेर जोड़े थे जिस में से एक मुझे याद आ गया :
हाँ नहीं है ना नहीं है
मौन अत्याचार देखो ।
कल बैठे बैठे यूँ ही बहर और मात्राओं की प्रैक्टिस के लिये एक शेर लिखा :
इक पुरानी सी गज़ल के
अब नये अशआर देखो ।

कंचन जी आप तो मुकाबला जीत गईं भई अब तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अनूप जी को शे'र का उपयोग करने की स्‍वीकृति प्रदान करें । शे'र दो और भ अच्‍छे निकले हैं मन में हो विश्‍वास पूरा हर सपन साकार देखो और इक पुरानी सी ग़ज़ल के कुछ नये अशआर देखो  अनूप जी की ग़ज़ल अब समृद्ध हो गई है  हां नहीं है ना नहीं है  वाला शे'र अपने आप को पूरी तरहा से अभिव्‍यक्‍त नहीं कर पा रहा है इसके दोनों  मिसरे अलग अलग जा रहे हैं ।   इसमें ये पता नहीं चल रहा है कि मिसरा उला किस तरफ इशारा कर रहा है ।  हां करो मत, ना करो मत  किया जाए तो फिर दोनों में तारतम्‍य आ जाएगा । आज मैं इस शे'र के बहाने से ही कुछ ग़ज़ल की बारिकियों की बात करता हूं ।  हां नहीं है ना नहीं है  ये है मिसरा उला और इसके अनुसार किसी ऐसे स्‍थान की चर्चा हो रही है जहां पर ना तो हां है और ना ही ना है और अचानक ही मिसरा सानी व्‍यक्ति को संबोधित करने लगता है और कहता है  मौन अत्‍याचार देखो इसको तरतीब का एब कहा जाता है । जिसमें दोनों मिसरे एक दूसरे को ठीक तरह से जोड़ कर ना रख पा रहे हों । याद रखें मैंने पहले भी कहा है कि आपका मिसरा सानी ही आपकी पूरी क्षमता मांगता है कुछ ऐसा हो कि लोग बरबस वाह कर उठें । अब मैंने जो मिसरा उला लिया है उसमें पहले ही से हम व्‍यक्ति को संबोधित कर रहे हैं कि  हां करो मत, ना करो मत और फिर जब हम कहते हैं कि मौन अत्‍याचार देखो  तो बात पूरी हो जाती है ।  मैं एक बात यहीं पर स्‍पष्‍ट कर देना चाहता हूं कि मैं कड़वा कहूंगा और ग़लत को ग़लत कहूंगा क्‍योंकि अगर वो नहीं किया तो मैं सिखा ही नहीं पाऊंगा । मिसरा सानी और मिसरा उला में तारतम्‍य न हो तो उस शे'र को फाड़ कर फैंक दें और दूसरा लिख लें ।  मिसरा सानी यहां पर यूं भी हो सकता था हां न करिये, ना न करिये  मगर इसमें दो समस्‍याएं आ रहीं हैं पहला तो ये कि  ना  और दोनों ऐ के बाद ऐक आ रहे हैं जो कि एब माना जाता है और दूसरा ये कि मिसरा सानी में देखो  कहा गया है और मिसरा ऊला कह रहा हे करिये  संबोधन का फर्क आ रहा है जो ठीक नहीं माना जाता और सुनने में भी लगेगा कि आपके पास दूसरा विकल्‍प नहीं था शायद । तो अनूप जी आप अगर उस शे'र को भी शामिल करना चाहें तो इस तरह ये ही करें  हां करो मत, ना करो मत, मौन अत्‍याचार देखो  और कंचन के शे'र में अगर उर्दू के आइने से आपको समस्‍या ना हो तो वो तो अच्‍छा है ही ।

कल से ही कुछ अच्‍छे शब्‍द सुनने को मिल रहे हैं ईकविता पर अनूप जी ने भ एक शब्‍द पोस्‍ट मार्टम का अच्‍छा प्रयोग किया है

इस के अलावा आजकल पंकज सुबीर जी अपने ब्लौग पर 'गज़ल' के बारे में बहुत अच्छा सिखा रहे हैं । अभी हाल ही में उन्होनें मेरी एक पुरानी गज़ल  का बहुत अच्छा 'पोस्ट मार्टम' किया है ऊपर वाले "लिंक' पर दे , दो शेरों में मात्राओं का दोष उन्होनें बहुत अच्छे तरीके से समझाया है । साथ में टिप्पणियां भी पढें जिस में काफ़ी लोगों ने कसरत की है , उन दोषों को सुधारने की । मेरे अनुसार यदि आप को गज़ल के बारे में यदि वास्तव में रुची है तो इस ब्लौग को ज़रूर पढें ।अनूप भार्गव

कल की ग़ज़ल कि जिसके बारे में मैंने कहा थ कि ये विचित्र किंतु सत्‍य टाइप की ग़ज़ल है की तकतीई देखें , देखें कि किस प्रकार से कितनी सारी दीर्घ मात्राऐं लघु हो गईं हैं

 

ति र हा थ स कुछ म र हक म ज रा न भ ला ह हु आ न बु रा ह हु आ
112 112 112 112 112 112 112 112
फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन
क ह तुझ स र की ब न गर च बु रा न भ ला ह हु आ न बु रा ह हु आ
112 112 112 112 112 112 112 112
फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन
               
               

ये ग़ज़ल बहरे मुतदारिक मखबून सोलह रुक्‍नी है

अभिनव ने कुछ निकालने का प्रयास किया था

भाग - ३ : आज के मुखड़े की बहर
१२२ - २१२ - १२२ - २१२ - ११२ - ११२ - ११२ - ११२
फऊलुन - फाएलुन - फऊलुन - फाएलुन - फएलुन - फएलुन - फएलुन - फएलुन
तिरे हा - थों से कुछ - मिरे हक - में ज़रा - न भला - ही हुआ - न बुरा - ही हुआ,
कहा तुझ - से रकी - बों नें गर - चे बुरा - न भला - ही हुआ - न बुरा - ही हुआ,

आज तेरह दिसम्‍बर है और आज संसद भवन को बचाने में जो आठ जवान श्री जगदीश प्रसाद यादव, सुश्री कमलेश कुमारी, श्री मतबार सिंह नेगी, श्री नानक चंद, श्री रामपाल, श्री ओमप्रकाश, श्री घनश्‍याम, और श्री बिजेंद्र सिंह शहीद हुए थे उनको मेरा नमन

बुधवार, 12 दिसंबर 2007

तिरे हाथों से कुछ मिरे हक़ में ज़रा न भला ही हुआ न बुरा ही हुआ, कहा तुझसे रक़ीबों ने गरचे बुरा, न भला ही हुआ न बुरा ही हुआ

आज फिर उलझाने वाली ही ग़ज़ल दी है मैंने मुखड़े में ये भी एक विचित्र सी ही बहर है जिसमें कि एक ही मिसरे में आठ रुक्‍न होते हैं जैसे कि पहले की एक गज़ल में भी थे जो कि मैंने कुछ दिनों पहले ही लगाई थी । सो आज मैं एक हिंट तो दे ही रहा हूं कि आज के मुखड़े में लगी हुई ग़ज़ल में एक मिसरे में आठ रुक्‍न हैं और कुल मिलाकर पूरे शे'र में सोलह रुक्‍न हैं ।

आज हम बात करने वाले हैं अनूप जी की ग़ज़ल पर मिले हुए होमवर्क की । काफी मिला है और मुझे खुशी है कि सब को ही जोश आ गया हे आशा है कि ये जोश बना ही रहेगा और आगे भी विद्यार्थी ऐसे ही काम करते रहेंगें । कुछ नए विद्यार्थी भी आ रहे हैं जैसे रिपुदमन पचौरी ने कहा है कि उन्‍हें अभिनव ने क्‍लास के बारे में बताया है और वे क्‍लास में आना चाहते हैं और जानना चाह रहे हैं कि क्‍या कक्षा में सीट खाली हैं । पचौरी जी ये कोई डोनेशन वाली संस्‍था नहीं हैं जहां पर सीट की समस्‍या हो यहां पर तो दिल का मामला है जिसके बारे में कहा जाता है कि फैले तो ज़माना है । स्‍वागात है आपका । अच्‍छा ये अभिनव भी खूब है खुद तो ग़ायब हो जाता है और दूसरों को पता दे जाता है कि मैं गोल हो रहा हूं माड़साब जब हाजिरी लें तो मेरी जगह पर उपस्थित श्रीमान जी  कह देना ।

चलिये आज का होमवर्क देख लिया जाए

नीरज गोस्वामी मुझे लगता है मेरी ये कोशिश बिल्कुल सही नहीं है लेकिन मैं डांट खाने को तैयार हूँ.
उंगलियाँ जब भी उठाओ ।
आप का व्यावहार देखो।
हाँ, मुझे पूरा यकीं है।
ख्वाब को साकार देखो

Ajay Kanodia अनूप जी की यह ग़ज़ल बहुत ही अच्छी है
इस ग़ज़ल के जो दो शेर आपने ने अलग ढंग से कहने का होमवर्क दिया है, उसका जवाब देने की कोशिश की है :
उंगलियाँ जब भी उठाओ ।
ख़ुद का तुम व्यवहार देखो।
२ १ २ २ २ १ २२
ख़ुद २ का (क) १ तुम २  व्यव २ हा २  र १ दे २ खो २
लेकिन 'ख़ुद' उर्दू का शब्द होने के कारण यहाँ पर सहीं नही लग रहा
ये सुद्ध हिन्दी में लिखी ग़ज़ल है , तो इसमे उर्दू का कोई प्रोग उचित नहीं होगा
उंगलियाँ जब भी उठाओ । 2122, २१२२
अपना तुम व्यवहार देखो।
अप २ ना (न) १ तुम २ व्यव २ हा २ र १ दे २ खो २
हाँ, मुझे पूरा यकीं है
स्वप्न को साकार देखो
२२ २ २ २ १ २ २
हाँ, मुझे पूरा यकीं है
ख्वाब को साकार देखो
२ १ २ २ २1 २ २
पर मुश्किल वही है , 'ख्वाब' फिर उर्दू का शब्द हो गया
हाँ, मुझे पूरा यकीं है
कल्पना साकार देखो
कल् २ प १ ना २  सा २ का २ र १ दे २ खो २
लेकिन यहाँ स्वप्न की जगह कल्पना लिखने से अनूप जी जो कहना चाह रहे है , क्या उसका अर्थ नहीं बदल जाएगा?
अजय

Devi Nangrani मेरा प्रयास
उंगलियाँ जब भी उठाओ ।
अपना खुद व्यवहार देखो।
हाँ, मुझे पूरा यकीं है
सपने वो साकार देखो या
सपने बस साकार देखो.
बस क्षितिज के पार देखो.

झूठ सच को छल रहा जो
नफरतों सा प्यार देखो.
लैला मजनू को थी हासिल
इश्क की वो मार देखो.
मतला हो सकता है क्या?
इश्क की वो मार देखो
मजनू का बस प्यार देखो.
देवी

अनूप भार्गव सुबीर जी:
काफ़ी सोचा लेकिन आसान नहीं है सिर्फ़ एक शब्द बदल देना , पूरे शेर के बारे मे ही कुछ नये सिरे से सोचा जाये तो शायद बात बने :
स्वप्न को साकार देखो
की जगह
ख्वाब को साकार देखो
से शायद मात्राएं तो ठीक हो जायें लेकिन पूरे मिसरे में वो बात नहीं आ रही है ...
--
और अब चलते चलते ’मुन्ना भाई की इश्टाइल में’
स्वयं का व्यवहार देखो
की जगह
अपुन का व्यवहार देखो
मात्रा के हिसाब से तो ठीक बैठता है लेकिन ...
चलिये कोशिश ज़ारी रखते हैं ...
जब यह गज़ल मैने ईकविता में भेजी थी तब मेरे अग्रज घनश्याम गुप्ता जी नें इस में कई खूबसूरत शेरों का इज़ाफ़ा किया था , मुझे याद नहीं आ रहे हैं । एक शेर सूझा है , पता नहीं उन के शेरों में से याद आ रहा है या मेरा ही नया शेर है , कल उन से पूछ कर बताऊँगा कि किस का है लेकिन जिस का भी है , लग ठीक रहा है :
फ़िर नई कोंपल खिली है
पृकृति का उपहार देखो ।
सादर
अनूप

Ajay Kanodia सर जी
अनूप जी की ग़ज़ल के लिए कुछ शेर बनने लगे थे, लेकिन उनकी दिशा कुछ अनूप जी की ग़ज़ल के विपरीत जा रही थी, इस लिए मैंने ज्यादा प्रयास नहीं किया
जैसे
फैला भ्रस्टाचार देखो
(आशावादी ग़ज़ल में ये मुखड़ा अच नहीं लगेगा )
मन की कलियाँ तुम खिलाओ
दोस्तों का प्यार देखो
या
मित्र जन का प्यार देखो
-अजय

कंचन सिंह चौहान
गुरू जी बहुत मगजमारी की, बहुत सिर पटका लेकिन कौई ऐसा सटीक शब्द नही मिला जिसका प्रयोग करने के बाद सही वज़न में बात पूरी हो जाये, अब मेरे पास बस एक ही चारा है कि मैं मिसरा सानी पूरा पूरा बदल दूँ.... और उसके बाद जो लाइनें बनी वो हैँ
उँगलियाँ जब भी उठाओ, आइना एक बार देखो।
हाँ मुझे पूरा यकीं है, जीत लेंगे हार देखो

माड़साब :- हूं काफी होमवर्क आया है और अच्‍छे प्रयास किये गए हैं और काफी मेहनत की गई हैं । पर अभी भी वो शे'र निकल के नहीं आ पाए हैं जो कि सही स्‍थानापन्‍न हो सकें । खवाब को साकार देखो  कहना तो वैसे भी वज्‍़न के हिसाब से सही ही है पर एक बात जो अजय ने पकड़ी है वो ये है कि ग़ज़ल पूरी की पूरी हिंदी में है सो ख्‍वाब कहने से कहीं कुछ अटक जाएगा और प्रवाह में फर्क पड़ेगा । हालंकि एक बात जो सबसे अच्‍छी लगी है वो है कंचन की इन पंक्तियों में  उंगलियां जब भी उठाओ आइना इक बार देखो अब इसमें जो अच्‍छा है जो अनूप जी की ग़ज़ल में नहीं था वो ये है कि इसमें कविता हो गई है । जान लें कि कविता वो नहीं होती जो कि सीधे ही बात को कह देती है जैसे कि अनूप जी ने कहा  स्‍वयम् का व्‍यवहार देखो  । कविता तो वो होती है जो प्रतीकों और बिम्‍बों में बात कहती है । स्‍वयम् का व्‍यवहार देखो  कहना कविता नहीं है ये तो बातचीत हो सकती है । कविता तो वो होती है जो कहीं और की कहती है पर लगती यहीं पर आकर के है । अनूप जी क्षमा करें मैं ये बात इसलिये कह रहा हूं कि मुझे स्‍वयम् का व्‍यवहार देखो में व्‍याकरण से ज्‍यादा बात की समस्‍या लग रही थी । अगर सीधे ही कह दिया स्‍वयम् का व्‍यवहार देखो  तो हममे  और आम लोगों में फर्क क्‍या रहा जाएगा । मेरे एक मित्र हैं जो पेशे से वेल्डिंग की दुकान चलाते हैं उनको व्‍याकरण का ज्‍यादा ज्ञान नहीं है पर फिर भी काफी अच्‍छा लिखते हैं । उनकी एक ग़ज़ल मुझे जो पसंद है उसका मुखड़ा है देश का हम क्‍या हाल सुनाएं, अंधे पीसे कुत्‍ते खाएं  हालंकि रियाज साहब के इस शे'र में कुछ व्‍याकरणीय समस्‍या है पर फिर भी इसमें बात है । कंचन ने दो बातें अच्‍छी की हैं एक तो आइना इक बार देखो  कह कर प्रतीक में दूसरे शेर को अच्‍छी दिशा दी है और दूसरा जो अपनी बात में  मगजमारी  शब्‍द का प्रयोग किया है उसने आनंद ला दिया है । बहुत दिनों के बाद सुनने को मिला ये शब्‍द , सभ्‍य हो जाना भी जीवन के कैसे आनंदों से दूर कर देता है।  हां पर एक बात तो है कि बात तो पूरी हो गई है पर  आइना  शब्‍द भी उर्दू का है और हमको इसका भी पर्यायवाची ढूंढना होगा या फिर कोई भी ऐसा वाक्‍य ढूंढें जिसमें प्रतीक के माध्‍यम से पहले अपनी ओर देखने की बात कही गई हो या कि मुहावरा जैसे रियाज साहब ने अपने शे'र में किया है । अनूप जी ने स्‍वयं जो कहा है फिर नई कोंपल खिली है प्रकृति को उपहार देखो उसमें भी प्रकृति बहर से बाहर है । अजय ने हाँ, मुझे पूरा यकीं है कल्पना साकार देखो  में बात को सही ढंग से कह दिया है पर बात वही है कि कल्‍पना और स्‍वप्‍न में फर्क होता है । मगर एक बात कहूं कि कल्‍पना साकार देखो में भी बात आ गई है और वज्‍़न भी ठीक है कल्‍ 2, प 1 , ना 2, सा 2, का 2, र 1 , दे 2, खो 2 अत: अभी तक के काम में ये मान सकते हैं कि एक मिसरा अजय का और एक कंचन का लगभग सही है । ध्‍यान दें क‍ि मैंने लगभग कहा है । आज चूंकि कुछ काम नहीं है अत: आज और मेहनत कर लें कोई मुहावरा कोई बिम्‍ब कोई प्रतीक मिल रहा हो तो ले लें । देवी नागरानी जी ने एक बहुत अच्‍छा मिसरा सानी दिया है  तुम क्षितिज के पार देखो  और ये एक सुंदर शे'र हो सकता है इसके लिये एक अच्‍छा सा मिसरा उला बनाएं । और एक बात ध्‍यान दें कि अंतत: सारे शे'र हम अनूप जी को भेंट कर देंगें वे इनका जो चाहे कर सकते हैं । ये ग़ज़ल की दुनिया की पुरानी परंपरा है कि काफी लोग काम करते हैं । अभी अभी अभिनव ने एंट्री मारी है मेरा आउटलुक बता रहा है कि वहां पर एक मैसेज है अभिनव का मगर होमवर्क नया दे दिया है अनूप जी की ग़ज़ल पर नहीं है इसलिये उसको कल की क्‍लास में लिया जाएगा । चलिये एक बार और सब मेहनत कर लें दो शे'र तो कल के ही हैं औरएक मिसरा देवी नागरानी जी का है जिसपर मिसरा उला बांधना है । 

मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

सब कुछ तेरे नाम लिखा कर बैठ गए, अपने दोनों हाथ कटा कर बैठ गए, हमने भी कुछ देर निभाया रिश्‍तों को , फिर घर में दीवार उठा कर बैठ गए

चलिये जैसे भी होमवर्क आए हैं पर आए तो सही । ज्‍यादा नहीं तो कुछ तो सही । पहले हम आज की कक्षा कर लें और उसके बाद में हम फिर इन सारे होमवर्क पर बात करेंगें और ये भी देखेंगें कि अनूप जी की ग़ज़ल के लिये दो सबसे अच्‍छे विकल्‍प क्‍या हो सकते हैं । हम फिलहाल चल रहे हैं षटकल पर और हम काफी कुछ कर चुके हैं अब केवल कुछ ही बचे हैं जिनपर हमको काम करना है । आज मुखड़े में उत्‍तरांचल ऋषिकेश के जनाब राशिद जमाल फारुक़ी की ग़ज़ल लगी है ।

मेरा आप सभी से एक अनुरोध है कि अपनी ग़ज़ल की डायरी में ये रुक्‍नों की जानकारी को उतार लें उससे क्‍या होगा कि आपको आगे से वहीं पर ही सब कुछ मिल जाया करेगा कि कब क्‍या चाहिये । और ग़ज़ल लिखते समय एक बात का और ध्‍यान रखें कि सबसे पहले तो होता ये है कि आपको एक पंक्ति मिलती है उस पंक्ति को वज्‍़न में लें और फिर काम करें पहले कच्‍चा काम करें फिर उसको पक्‍का करें कभी भी सीधे ग़ज़ल न लिखें पहले उस पर क्‍या क्‍या संभावना हो सकती है वो करें ।

हम जहां पर थे वहीं से ही आगे काम शुरू करते हैं

हमने मफाईलु  पर बात को छोड़ा था अर्थात हमने षटकल के छ: प्रकार देख लिये थे और अब हमको केवल एक षटकल और देखना हैं उसके बाद हम सप्‍तकल की बात करेंगें जो काफी आता है ।

षटकल :-

7 :  फएलतान तीन लघु फिर एक गुरू और फिर एक लघु 11121 इसकी भी दो सूरतें हो सकती हैं

अ: तीन लघु मात्राऐं जो कि स्‍वतंत्र हों और फिर एक दीर्घ और फिर एक लघु । 1,1,1,2 ,1

ब : छ: लघु मात्राएं जिनमें से पहली तीन स्‍वतंत्र हों फिर बाद की दो मिल कर दीर्घ हो रहीं हों और फिर एक लघु हो । 1,1,1,11,1

मैंने पहले कहा था षटकल की आठ प्रकार होती हैं पर जो आठवीं किस्‍म है फऊलान  वो वज्‍़न में मफाईलु  के ही वज्‍़न की है । इसलिये उसको अलग से नहीं लिया जाता हे ।

अब मैं कुछ और ज्‍़यादा स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं क‍ि हम वज्‍़न निकालते समय रुक्‍नों के बारे में कैसे जानकारी ले सकते हैं । उदाहरण के रूप में हम लेते हैं मुफाएलुन को जिसको लेकर हम इतनी तरह से सोच सकते हैं

1 :- न जा कहीं 1,2,1,2  अब इसमें क्‍या हो रहा है कि एक  लघु फिर एक शुद्ध दीर्घ फिर एक  लघु और फिर एक शुद्ध दीर्घ । यहां पर शुद्ध  से मेरा मतलब ये है कि वो दीर्घ ही है दो लघु मिलकर नहीं बना है ।

2:- न दिल मिला 1,11,1,2  यहां पर जो अलग है वो ये है कि इसमें पहले लघु के बाद जो दीर्घ आ रहा है वो वास्‍तव में शुद्ध दीर्घ न होकर दो लघु से मिल कर बन रहा है  दि  और  ल  से । फिर एक लघु है मि  और फिर एक शुद्ध दीर्घ है ला । मतलब ये कि एक शुरू का दीर्घ वर्ण संकर है और बाद का शुद्ध है  ।मगर है तो ये भी वही मुफाएलुन ।

3:- न जा मगर 1,2,1,11  बात पलट गई है और अब पहले वाला जो दीर्घ है वो शुद्ध हो गया है और आखिर का वर्ण संकर हो गया है । जा के रूप में पहला दीर्घ शुद्ध आया है और फिर एक लघु आया है और उसके बाद   और   मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं । मगर है तो ये भी मुफाएलुन ही ।

4:- जगर मगर 1,11,1,11  अब कोई भी दीर्घ शुद्ध नहीं बचा है   पहले एक लघु   फिर उसके बाद के दो लघु   और   मिलकर बना रह हैं एक दीर्घ उसके बाद में फिर एक लघु   और फिर दो लघु और   मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं मतलब कि दोनों की दीर्घ लघुऔं के संयोग से बन रहे हैं । मगर बात तो वही है कि है तो ये भी वही मुफाएलुन

तो देखा आपने कि एक ही रुक्‍न कितने तरीके से बन सकता है । अब आप एक काम करें एक क़ाग़ज़ पर ऊपर लिखें मुफाएलुन  फिर उसके बाद लिखें न जा कहीं , फिर उसके नीचे न दिल मिला  और फिर नीचे  न जा मगर  और फिर जगर मगर  अब एक लाइन से गाते हुए पांचों को पढ़ें मुफाएलनु-नजाकहीं-नदिलमिला-नजामगर-जगरमगर  आपको पता लग जाएगा कि इन पांचों का वज्‍़न एक ही है ।

अनूप जी की ग़ज़ल पर अभी अभ्निव और कंचन का होमवर्क आना बाकी है उस पर कंचन की शिकायत ये रहती है कि वो होमवर्क जमा नहीं कर पाती है  सो एक दीन का समय और दिया कल हम अनूप जी की ग़ज़ल की ही बात करेंगें । दरअस्‍ल में मैं ये चाहता हूं कि ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये दो खूबसूरत शेर और मिल जाएं ।  हम सप्‍तकल को परसों देखेंगें कल हम केवल छात्रों के होमवर्क और उनके सही और ग़लत होने की ही बात करेंगें । 

सोमवार, 10 दिसंबर 2007

जंगल का अंधेरा है बहुत तेज़ हवा भी, और जि़द है हमारी कि जलाएंगें दिया भी, क्‍यों सर को झुकाएगा ज़माना तेरे आगे, कुछ और तुझे आता है रोने के सिवा भी

रविवार की छ़ुट्टी के बाद आज माड़साब कुछ नाराजगी के साथ शुरू कर रहे हैं और वो इसलिये कि माड़साब ने जब अनूप जी की ग़ज़ल दी थी तो बताया था कि उसमें दो बहुत छोटे से दोष हैं जो क‍ि ग़ज़ल क‍ो संपूर्ण बनाने में परेशानी कर रहे हैं । माड़साब ने ये भी कहा था कि उन दोषों का निवारण किन शब्‍दों से किया जाए ये छात्र छात्राएं बताएं और माड़साब आज गुस्‍सा हैं केवल इसलिये कि किसी ने भी वो कर के नहीं दिखाया और वो काम अभी भी वैसा ही पड़ा हुआ है । अब माड़साब ने निर्णय लिया है कि जब तक विद्यार्थी उन दो परेशानियों को दूर करके नहीं बताऐंगें तब तक माड़साब अगली कक्षाएं नहीं लेंगें । ये भोत गुस्‍से में के रै हैं माड़साब और इसको भोत जियादा सीरियस होके लिया जाए । आगे की कक्षाऐं तब तक के लिये सस्‍पेंड रहेंगीं जब तक कि विद्यार्थी वरिष्‍ठ कवि श्री अनूप जी की गजल में आए दो शब्‍दों स्‍वप्‍न और स्‍वयं  को ठीक करके नहीं प्रस्‍तुत कर देते । एक बात गंभीरता के साथ सुन लीजिये वो ये कि मैं ग़ज़ल सिखाने के लिये वही तरीका अपना रहा हूं जो उर्दू के उस्‍ताद शायर अपने शागिर्दों के लिये अपनाते हैं । और ये तरीका होता है समस्‍या देकर उनके निराकरण करवाने का । ये बात जान लीजिये कि अगर शायरी केवल किताबों से आ जाती तो आज हर कोई शायर हो जाता पर शायरी तो आती है अभ्‍यास से करत करत अभ्‍यास के जड़मति होत सुजान ।  मैं चाहता हूं कि आप मेरे द्वारा दिये गए काम पर अभ्‍यास करें , मेरे द्वारा रोज़ मुखड़े में लगाई गई ग़ज़ल का वज्‍़न निकाल के उस पर एक दो शेर लिखें ये आपके लिये बहुत लाभदायक होगा । ग़ज़ल सीखने के इस तरीके से सीधा लाभ मिलता है । कई सारे प्रश्‍न हैं जिनमें अभिनव ने जब वो चाहेगा ये कह देगा कि घर उसका है  पर अच्‍छा प्रश्‍न उठाया है और अजय ने भी एक प्रश्‍न अच्‍छा उठाया है । पर आज तो कुछ भी बात माड़साब नहीं करने वाले पहले अनूप जी की ग़ज़ल के दो शेरों पर काम करें और उनको अपने हिसाब से दुरुस्‍त करके कक्षा में जमा करवाएं तब ही माड़साब आगे को बढ़ेंगें ।

अंत में एक बात पुन: गंभीरता के साथ कह रहूंगा ये क्‍लास मैं आपके लिये ही चला रहा हूं अगर आप लोग ही लापरवाही दिखऐंगें तो कैसे काम चलेगा । अगर आप सचमुच ही गंभीरता से काम करना चाहते हैं तो फिर होमवर्क करने पर भी ध्‍यान दें । ग़लत हो के सही उसकी परवाह न करें ।

शनिवार, 8 दिसंबर 2007

पता अब तक नहीं बदला हमारा, वही घर है वही क़स्‍बा हमारा, किसी जानिब नहीं खुलते दरीचे, कहीं जाता नहीं रस्‍ता हमारा, वही ठहरी हुई कश्‍ती है अपनी, वही ठहरा हुआ दरिया हमारा

कल की क्‍लास में जमकर छात्र औश्र छात्राएं आए इतने कि कल तो क्‍लास में अतिरिक्‍त कुर्सियां ही लगाना पड़ीं । ये क्‍लास आपकी ही है और जान लें कि आपसे ही इसको चलना अगर आप ही नहीं आऐंगें तो माड़साब दीवरों को तो पढ़ाने से रहे । कुछ नए छात्र छात्राऐं भ आए हैं और वे भी दिलचस्‍पी ले रहे हैं । कल की क्‍लास में सबसे महत्‍वपूर्ण छात्र की गैरहाजिरी रही उनकी जिनपर कि कल चर्चा हो रही थी कल अनूप भार्गव जी कि अनुपस्थिति रही तो अच्‍छा नहीं लगा वो इसलिये कि कल तो उन पर ही चर्चा हो रही थी । खैर हो सकता है कि वे व्‍यस्‍त हों और आज आ जाएं । सबकी प्‍यारी राजदुलारी उड़नतश्‍तरी की अनुपस्थिति भी खल रही है पर वो बाकायदा छुट्टी का अवेदन लेकर गए हैं सो क्षमा । आज फिर मैंने पाकिस्‍तान के शायर अहमद मुश्‍ताक साहब की एक ग़ज़ल लगाई है ।

कल हमने चर्चा कर ली थी आज हम केवल क्‍लास लेंगें टिप्‍पणियों में जो प्रश्‍न आए हैं उनका समाधान सोमवार को होगा सोमवार को हम केवल टिप्‍पणियों की ही बात करेंगें ।

षटकल की बात चल रही थी और हम फाएलातुन तक आ गए थे ।

आज बात करते हैं षटकल की चौथी सूरत से तीन हम पिछली क्‍लास में कर चुके हैं ।

4 : मुफाएलुन 1212  इसकी भी दो सूरते हों सकती हैं जो इस प्राकर होंगीं ।

अ:  एक लघु फिर एक गुरू फिर एक लघु और फिर एक गुरू । जैसे गिरा कहीं  में ये ही है गि रा क हीं 1212

ब: पूरी छ: लघु मात्राएं जिनमें से पहली एक स्‍वतंत्र है, बाद की दो दूसरी और तीसरी संयुक्‍त होकर एक दीर्घ बन जाएं फिर एक स्‍वतंत्र लघु और फिर पांचवी और छठी पुन- मिल कर दीर्घ बन जाएं । जैसे  न तुम न हम  में ये ही है न 1 तु म 2 न 1 ह म 2

5: फाएलातु 2121  इसकी भी दो तरह से व्‍यवस्‍था हो सकती है

अ: एक गुरू एक लघु फिर एक गुरू और फिर एक लघु जैसे जान आप में भी ये ही है जा 2, न 1, आ 2, प 1,

ब:  पूरी छ: लघु मात्राऐं पर शुरू की एक और दो आपस में मिलीं हों तीसरी स्‍वतंत्र हो फिर चौथी और पांचवी संयुक्‍त हो और अंत में छठी फिर स्‍वतंत्र हो । जैसे तुम न हम न  में  तु म 2, न 1,  ह म 2, न 1,

6: मफाईलु 1221  अब इसकी भी दो सूरते हो सकती हैं

अ : पहली लघु दूसरी दीर्घ तीसरी दीर्घ और फिर आखिर की लघु जैसे मिला आप  में ये ही है मि 1 , ला 2,  आ 2, प 1,

ब: पूरी लघु पर दूसरी तीसरी और चौथी पांचवी संयुक्‍त होरक दीर्घ हो जाएं जैसे न झिल मिल न में ये ही है न 1, झि ल 2, मि ल 2, न 1

आज इतना ही बाकी बातें सोमवार को होंगीं । और हां एक महत्‍पूर्ण बात 13 दिसंबर को संसद भवन पर शहीद हुए सैनिकों को हम श्रद्धांजली देंगें तो आप सब 13 को अपनी चार चार पंक्तियां जरूर दें ।

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007

परिधि के उस पार देखो, इक नया विस्‍तार देखो, रूढि़यां सीमा नहीं हैं, इक नया संसार देखो

आज हम वरिष्‍ठ कवि अनूप भार्गव जी की एक सुंदर सी हिंदी ग़ज़ल के साथ काम करेंगें । ये ग़ज़ल छोटी बहर की है और अनूप जी ने बहुत ही सुंदर शे'र निकाले हैं इसमें । पर जैसा कि उन्‍होंने खुद ही कहा है कि ये उनके प्रारंभिक दौर की ग़ज़ल है अत: इसमें दो छोटी छोटी समस्‍याएं हैं आइये देखते हैं कि वे क्‍या हैं । ये ग़ज़ल आपको यहां पर मिलेगी आओ कि कोई ख्‍़वाब बुनें 

परिधि के उस पार देखो 2122, 2122 फाएलातुन-फाएलातुन
इक नया विस्तार देखो ।2122, 2122 फाएलातुन-फाएलातुन
तूलिकायें हाथ में हैं ।  2122, 2122 फाएलातुन-फाएलातुन
चित्र का आकार देखो । 2122, 2122 फाएलातुन-फाएलातुन
रूढियां, सीमा नहीं हैं । 2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
इक नया संसार देखो ।  2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
यूं न थक के हार मानो।  2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
जिन्दगी उपहार देखो ।  2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
उंगलियाँ जब भी उठाओ ।  2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
स्वयं का व्यवहार देखो। यहां पर समस्‍या आ रही है
मंजिलें जब खोखली हों । 2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
तुम नया आधार देखो । 2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
हाँ, मुझे पूरा यकीं है। 2122, 2122 फाएलातुन;फाएलातुन
स्वप्न को साकार देखो । यहां पर समस्‍या आ रही है

फा

ला

तुन

फा

ला

तुन

परि धि के उस पा दे खो
इक या विस्‍ ता दे खो
तू लि का एं हा में हैं
चित् का का दे खो
रू ढि़ यां सी मा हीं हैं
इक या सन्‍ सा दे खो
यूं थक के हा मा नो
जिन्‍ गी उप हा दे खो
उंग लि यां जब भी ठा
स्‍व यम् का व्‍यव हा दे खो
मन्‍ जि लें जब खो लीं हों
तुम या धा दे खो
हां मु झे पू रा कीं है
स्‍व प्‍न को सा का दे खो


ये एक ख़ूबसूरत सी छोटी सी बहर है जिसका नाम है बहरे रमल मुरब्‍बा सालिम  और जिसका वज्‍़न है फाएलातुन-फाएलातुन या फिर 2122-2122 इसका एक उदाहरण देखें रंज उठाकर दिल फंसाकर, जा मिला दुश्‍मन से दिलबर । ये एक अच्‍छी बहर है जिसपर अनूप जी ने काफी अच्‍छा काम किया है और काफी शे'र ख़ूबसूरती से निकाले हैं मगर दो शे'रों के मिसरा सानी में कुछ अड़चन नज़र आ रही है । क्‍या है ये आपको देखना है बाकी की पूरी की पूरी ग़ज़ल ही वज्‍़न में है कहीं पर कोई भी कमी नहीं है । आपको ये लग सकता है कि चित्र का आकार देखो  में बहर ग़लत हो गई है पर जनाब चित्र को उच्‍चारण में चित् र  कहा जाता है और इसलिये ये सही हो जाएगा । चित् 2, र 1 । और इसी प्रकार मंजिलें जब खोखलीं हों  में वास्‍तव में होता है मन्‍ जि लें जब, 2 1 2 2  मतलब हमारा काम पूरा हो गया है । और यही होगा इक नया संसार देखो  में इक 2 न 1 या 2 सन्‍ 2 सा 2 र 1 दे 2 खो 2 
अब बात करें समस्‍या की जैसा कि अनूप जी ने शारद पूर्णिमा के कवि सम्‍मेलन में कहा था कि ये उनकी शुरू के दौर की ग़ज़ल है अत: इतनी छोटी सी दो समस्‍याएं होना तो आम है । स्‍वयं का व्‍यवहार देखो  में जो स्‍वयं शब्‍द है वो अड़चन कर रहा है बाद का तो सब ठीक है । स्‍वयं का वज्‍़न होता है स्‍व 2, यम् 2  और हमको चाहिये प्रारंभ में 2 1  जबकि स्‍वयं  के कारण प्रारंभ में 22 रहा है । और बहर फाईलातुन  हो रही है । बिल्‍कुल एसी ही समस्‍या हो रही है स्‍वप्‍न को साकार देखो  में जहां पर स्‍वप्‍न अड़चन कर रहा है । उसका वज्‍़न है स्‍व 2, प्‍न 2 मतलब वही स्‍वयम् वाली ही समस्‍या है बहर फाएलातुन की जगह फाईलातुन हो रही है । हमें दोनों ही मिसरों में स्‍वप्‍न और स्‍वयम्  को किसी दूसरे शब्‍दों  से विस्‍थापित करना होगा किनसे ये आपको देखना है । हालंकि उच्‍चारण में यदि शीघ्रता से पढ़ा जाए तो स्‍वप्‍  को एक दीर्घ और न  को एक लघु करके हम बहर में तो ला सकते हैं जैसा कि व्‍यवहार देखो  में व्‍यव के साथ किया है इन तीनों को इतनी शीघ्रता से पढ़ा जाता है कि तीनों मिलकर एक दीर्घ के समान वज्‍़न पैदा करते हैं । स्‍वप्‍न  में वैसा नहीं किया जा सकता क्‍योंकि व्‍यव  में उच्‍चारण की सहजता है स्‍वप्‍न में प्रवाह नहीं है अत: अच्‍छा होगा कि हम दूसरा ही शब्‍द ले लें ।
चलिये क्‍लास फिर से शुरू हो गईं हैं पुराने छात्र लौटने लगे हैं और कुछ नए छात्र भी आ रहे हैं । नीरज और अजय जैसे नए छात्र शामिल हुए हैं मैं इनको कहना चाहूंगा कि ब्‍लाग की पुरानी पोस्टिंग ज़रूर पढ़ लें ताकि उनको समझने में आसानी हो सके । कुलावत जी ने पूछा है कि बहरें कितनी होती हैं और उनकी सूची दे दें मैं उनसे कहना चाहता हूं कि वे थोड़ा इंतेज़ार करें कक्षाओं में आने वाले समय में बहरों के बारे में विस्‍तार से आना ही है । और एक बात मैं कहना चाहता हूं कि जब बहरों के बारे में बताना प्रारंभ किया जाएगा तो वो वैसा ही होगा जैसा किसी रहस्‍य पर से पर्दा उठने जैसा । क्‍योंकि बहरों को इतना ज्‍यादा छुपा और गोपनीय रखा गया है कि आम लिखने वाला वहां तक नहीं पहुंच पाता है। तो कुलावत जी से अनुरोध है कि प्रतीक्षा करें मैं समय से पहले बता नहीं सकता क्‍योंकि अध्‍यापन की मर्यादा से बंधा हूं । और मैं द्रोणाचार्य नहीं हूं कि अर्जुन को पूरी विद्या दे दूं और एकलव्‍य का अंगेठी कटवा लूं । नीरज जी के ब्‍लाग की ग़ज़लें मैंने पढ़ीं और कह सकता हूं कि अगर इन ग़ज़लों को व्‍याकरण का सहारा और मिल जाए तो ये और खिल जाऐंगीं, हालंकि ये अभी भी अच्‍छी हैं ।

अभिनव ने कल के मुखड़े पर कसरत की है बिना छड़ी की परवाह किये, अच्‍छी बात है पर ग़लती पर  छड़ी तो पड़ेगी अनूप ने ये कसरत की है

मेरी मेहनत का नतीज़ा है मगर उसका है,
छांव उसकी है, समर उसके, शज़र उसका है,
इसकी बुनियाद में मेरा भी लहू है लेकिन,
जब वो चाहेगा ये कह देगा कि घर उसका है,
संभावित बहरः
२१२२ - २१२२ - २१२२ - २२
लाललाला - लाललाला - लाललाला - लाला
फाएलातुन - फाएलातुन - फाएलातुन - फालुन

बीच के दो रुक्‍न ठीक नहीं निकाले हैं । दोनों में एक दीर्घ ऐसा है जिसे लघु हो जाना चाहिये बात बन जाएगी कौन बनेगा ये उसीके नीचे वाले शे'र में देखें ।

कंचन केवल क्‍लास में आकर ता  करके भग जा रहीं हैं ये ग़लत बात है । माड़साब अगर होमवर्क दें तो उसको करना भी है नहीं तो माड़साब किसी दिन धे छड़ी-धे छड़ी  कर देंगे। देवी नागरानी जी ने और अभिनव ने मन को छू लेने वाली टिप्‍पणियां की हैं वास्‍तव में जिसे कहा जाऐ कि अभिभूत करने वाली बात है । अभिनव ने जो कहा है उसीके साथ्‍ बात का विराम देता हूं

जब तक नहीं बनें नई ग़ज़लों के सिकंदर,
तब तक रहेंगे आपकी क्लासों में बराबर,
फिर आपके स्कूल में टीचर की नौकरी,
करते हुए सिखाएँगे दुनिया को यही स्वर।

गुरुवार, 6 दिसंबर 2007

मेरी मेहनत का नतीज़ा है मगर उसका है, छांव उसकी है, समर उसके, शज़र उसका है, इसकी बुनियाद में मेरा भी लहू है लेकिन, जब वो चाहेगा ये कह देगा कि घर उसका है

आज से हम कक्षाओं को विधिवत प्रारंभ करते हैं । आज उज्‍जैन के अहमद कमाल परवाज़ी साहब की ग़जल़ को ऊपर लगाया हे । समर का अर्थ होता है फल और शज़र का अर्थ पेड़ । हमने जहां पर पिछली बार कक्षएं बंद कीं थीं वो जगह थी रुक्‍नों की कक्षा और हम पंचकल तक आ चुके थे अब हम को उसके बाद से ही शुरू करना है । पंचकल का अर्थ तो अब आप जानते ही होंगें कि पांच मात्राओं का एक समूह जिसमें गुरू और लघु को मिला कर कुल मिलाकर पांच मात्राएं होतीं हों । पंचकल के कुछ उदाहरण हमने पिछले अध्‍याय में देखे थे ।

शुरू करने से पहले एक बात बता दुं कि मुझे जाने क्‍यों लग रहा है कि अब छात्र छात्राओं में पहले सा उत्‍साह नहीं है, अगर आप बोर हो गए हों तो बता दें हम कभी भी अपने कोर्स को समाप्‍त कर सकते हैं ।

ष‍टकल:-

छ: हर्फी रुक्‍न को हिंदी में षटकल कहा जाता है और उर्दू में इसकी आठ सूरतें हो सकती हैं ।

अच्‍छा पहले तों मैं एक बात बताना चाहता हूं और वो ये कि अभी भी कुछ पुराने छात्र तथा छात्राएं रुक्‍न्‍ निकालना नहीं सीख पाएं हैं और वे ग़लत तरीके से रुक्‍न्‍ा निकाल रहे हैं । मात्राओं को कैसे गिनना है और किस मात्रा को गिराना है ये बात ही हमें पहले जानना चाहिये तभी बात बन सकती है ।   

षटकल की जो सूरतें होती हैं वो कुछ इस प्रकार हो सकती हैं हां एक बात फिश्र जान लें कि षटकल का मतलब छ: अक्षर नहीं होता बल्कि छ: मात्राएं होता है ।

जैसे आप कहेंगें कि तुम न कहो  ये तो पांच अक्षर हैं सो ये पंचकल है ( अभिनव ध्‍यान दें ) मगर हो  का मतलब एक दीर्घ मतलब 2  और इस प्रकार विन्‍यास होगा तु 1, म 1, न 1, क 1,  हो 2, अर्थात 11112 कुल मिलाकर 6 ।

( एक और बात बताना चाहूंगा अभी मेरे कम्‍प्‍यूटर के स्‍पीकर में लता जी का गाना ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े  बज रहा है आपने सुना है कि नहीं ये गीत नहीं सुना हो तो ज़रूर सुनना ) 

षटकल

1  तीन गुरू मात्राएं या फिर छ: लघु मात्राएं 222 । मफऊलुन

तुम हम दिल  इसमें छ: मात्राएं हैं पर दो दो के जोड़े में हैं अर्थात दो दो लघु मिलकर तीन गुरू बना रही हैं ।

चाहा था  में तीन गुरू सीधे सीधे हैं पर ये भी वहीं है मफऊलुन

2 प्रारंभ में दो स्‍वतंत्र लघु फिर दो गुरू  फएलातुन 1122  अब इसमें और ऊपर वाले में क्‍या फर्क है वो ये कि ऊपर वाले में प्रारंभ की दो लघु मिलकर संयुक्‍त हो रहीं थीं पर यहां पर वे स्‍वतंत्र हैं । जैसे न दिलासा  में  न  और दि  दोनों ही स्‍वतंत्र हैं और एक दूसरे में मिल नहीं रहे हैं । जबकि ऊपर  तुम  में तु  और   हालंकि दो लघु हैं पर दोनो मिलकर एक दीर्घ में बदल रहे हैं ।

इसका एक और प्रकार ये भी हो सकता है कि छ: लघु ही हों  पर शुरू के दो लघु तो स्‍वतंत्र हों पर बाद के चार लघु आपस में मिलकर दो दो दीर्घ बना रहे हों । जैसे  न दिवस मन  में   स्‍वतंत्र है, दि  पुन: स्‍वतंत्र है, पर वस में दोनों लघु मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं फिर मन में भी यही हो रहा है कि दोनों लघु मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं । ऊपर 1 नंबर में और यहां पर ये अंतर है कि वहां पर तीन जोड़े थे यहां पर दो हें ।

3 प्रारंभ में एक गुरू और फिर दो लघु और पुन: एक गुरू, या फिर छ: लघु जिनमें से प्रारंभ के दो लघु मिलकर दीर्घ हो रहें हों बीच के दोनों स्‍वतंत्र हों और बाद के दोनों मिलकर दीर्घ हो रहें हों । जैसे मुफतएलुन या फाएलतुन 2112

काम न हो  में का तो एक दीर्घ है फिर और दोनों ही लघु भी हैं और स्‍वतंत्र भी हैं । और फिर हो  पुन: एक दीर्घ है । 2112

अब तुम न दिवस  को देखें इसमें भी वही बात है पर प्रारंभ में तु और दोनों मिल कर एक दीर्घ बना रहे हैं फिर और दि दोनों ही स्‍वतंत्र और फिर वस में दो लघु मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं । 11,11,11

ठीक है आज इतना ही क्‍योंकि षटकल काफी लम्‍बा भी है औरसबसे ज्‍यदा उपयोग में ये ही आता है ।

बुधवार, 5 दिसंबर 2007

सब कुछ तेरे नाम लिखा कर बैठ गए, अपने दोनों हाथ्‍ा कटा कर बैठ गए, मौसम दरवाज़ों पर दस्‍तक देते थे , परदों का चुपचाप गिरा कर बैठ गए

आज माड़साब अंतिम तीन कक्षाओं के पढ़ाए गए सब‍क ही रिवीजन के लिये दे रहे हैं ताकि आगे जहां से हम शुरू करने वाले हैं वहां पर कुछ अटकना ना पड़े । ये वो पिछली तीन क्‍लासें हैं जहां पर हम रुक्‍नों के बारे में जान रहे थे और जहां पर आकर हमने दीपावली की छुट्टियां घोषित कीं थीं इनको अच्‍छी तरह से देख लें हम पंचकल तक गए थे और ये वहीं तक का रिवीजन है क्‍योंकि हम आगे उसी से आगे रुक्‍नों से शुरू करने वाले हैं । आज मुखड़े में ऋषिकेश के राशिद जमाल फ़ारूकी साहब  की ग़ज़ल का शे'र लगा है ।

सूचना - माड़साब बहुत जल्‍द ही हिंदयुग्‍म पर यूनीहिंदीग़ज़ल प्रशिक्षण शुरू करने जा रहे हैं । वहां पर सब कुछ प्रारंभ से होगा तथा वहां पर हिंदी ग़ज़ल पर ज्‍़यादा ध्‍यान होगा जो छात्र वहां ज्‍वाइन करना चाहें तो कर सकते हैं विशेष कर अजय जैसे नए छात्र जो यहां पर लेट आए हैं वे वहां पर भी जा सकते हैं ।

पुराने पाठ :

हिंदी में जैसे नगण, सगण, जगण, भगण, रगण, तगण, यगण, मगण होते हैं वहीं सब कुछ उर्दू में भी चलता है ।

रुक्‍न               मात्रा का योग              हिंदी में         क्रम                 वार्णिक गुण

फ़इल                      3                         1 1 1     लाम लाम लाम            नगण

फ़एलुन                   4                          1 1 2      लाम लाम गाफ           सगण

फऊलु                     4                          1 2 1      लाम गाफ लाम           जगण

फाएलु                     4                          2 1 1       गाफ लाम लाम          भगण

फाएलुन                   5                          2 1 2        गाम लाफ गाम         रगण

मफऊलु                    5                          2 2 1        गाफ गाफ लाम        तगण

फऊलुन                    5                         1 2 2           लाम गाफ गाफ       यगण

मफऊलुन                 6                          2 2 2           गाफ गाफ गाफ       मगण

अब इनके ही आधार पर हम रुक्‍न बनाते हैं । जैसे ऊपर कुछ रुक्‍न हैं जिनकी मात्राएं क्रमश: तीन चार पांच तथा छ: हैं । केवल हो क्‍या रहा हैं कि दीर्घ ( गाफ) और लघु ( गाम) के स्‍थानों में परिवर्तन होने के कारण ही ये सारा खेल हो रहा है । एक मात्रा को कल कहा जाता है और मात्राओं का विन्‍यास ही मात्रिक गुण कहलाता है ।

दोकल: दो हर्फी रुक्‍न को दो कल भी कहा जात है और ये दो प्रकार के ही होते हैं ।

1 एक गुरू मात्रा जैसे फा या फे । और या कि दो लघु मात्राऐं जैसे अब कब आदि । उर्दू में फा और अब दोंनो का ही बज्‍़न समान है और ये दोनों ही दो हर्फी हैं ।

2 दूसरा वो जब दो लघु मात्राएं तो हों पर दोनों ही स्‍वतंत्र हो  अब या कब  की तरह मिल कर दीर्घ न बन रहीं हों । मैं न मिलूंगी  में विन्‍यास है 2 1 1 2 2   बीच में जो  न और मि  हैं वो दोनों हांलकि दो लघु हैं पर मिलकर संयुक्‍त नहीं हो रहे हैं अत: इनको अलग अलग ही गिना जाएगा ।

त्रिकल : तीन हर्फी रुक्‍न को त्रिकल कहा जाता है । ये तीन प्रकार के हो सकते हैं ।

1  तीन लघु मात्राएं जैसे फइल  और अगर उदाहरण देख्‍ना चाहें तो काम न हुआ  में  म न हु  का जो विन्‍यास है वह यही है

2   एक गुरू और दो लघु मात्राएं फाअ  और उदाहरण आम, काम, जाम, बंद,   आदि। हम एक गुरू की जगह पर दो लघु भी ले सकते हैं बशर्ते वे संयुक्‍त हो रहे हों जैसे बंद में  ब  ओर आधा   दोंनों मिल कर एक दीर्घ बन रहे हैं । अब एक महत्‍वपूर्ण बात देखें । ऊपर फइल में क्‍यों उसको एक अलग विन्‍यास दिया गया है केवल इसलिये क्‍योंकि वहां पर  काम न हुआ  में  म  स्‍वतंत्र है किसी के साथ संयुक्‍त हो नहीं सकता । फिर   एक अलग ही अक्षर है और हुआ का हु स्‍वतंत्र है ।  

3  एक लघु और फिर एक गुरू मात्रा फऊ  उदाहरण कभी, नहीं, मिला, समर, किधर, आद‍ि । एक गुरू मात्रा की जगह दो लघु भी हो सकती हैं पर वे संयुक्‍त होनी चाहिये । जैसे हमने किधर  को भी लिया है क्‍योंकि कि लघु हो रहा है और दो लघु   और   मिल कर एक दीर्घ बना रहे हैं ।  महत्‍वपूर्ण बात ये हैं कि वज्‍़न गिनते समय ये ध्‍यान रखना चाहिये कि कौन से दो लघु मिलकर एक दीर्घ हो रहे हैं और कौन से नहीं हो रहे हैं । वज्‍़न लेते समय यही महत्‍वपूर्ण होता है कि आप ठीक से अनुमान लगा सकें कि कहां पर लघु और लघु पास पास तो हैं पर उनको आप एक दीर्घ में इसलिये नहीं गिन सकते कि वे स्‍वतंत्र हैं । और कहां पर दो लघु पास पास हैं और दीर्घ मात्रा में परिवर्तित भी हो रहे हैं । 

ध्‍यान रखें कि अक्षर और मात्राओं में फर्क होता है हम आम तौर पर ये समझते हैं कि जो अक्षर हैं वहीं मात्राएं हैं । मगर ये नहीं होता अक्षर और मात्राएं अलग अलग बात हैं ।

चौकल :-  चौकल का मतलब उस तरह का रुक्‍न जिसमें कि चार मात्राएं होती हों । उसके पांच प्रकार होते हैं ।

1: चार लघु मात्राएं और चारों ही अपने आप में स्‍वतंत्र हों । फएलतु में ऐसा ही है और चारों ही मात्राएं अपने आप में स्‍वतंत्र हैं । इसके उदाहरण शायरी में कम ही आते हैं क्‍योंकि चारो मात्राएं अगर एक के बाद एक लघु आएंगी तो उच्‍चारण में समस्‍या आ जाएगी ।

2: एक गुरू और फिर दो लघु मात्राएं फाएलु । अब इसमें दो तरह से हो सकता है चार लघु मात्राएं भी हो सकती हैं मगर उनमें से पहली दो आपस में संयुक्‍त होकर एक दीर्घ बना रही हों और आगे की दो स्‍वतंत्र हों जैसे तुम न तुम्‍हारी याद  में तुम न तु  को अगर देखें तो उसमें दो लघु तुम  मिल कर एक दीर्घ बना रहे हैं और फिर  न  ओर तु  दोनों ही स्‍वतंत्र हैं । या फिर ये भी हो सकता है कि पहला दीर्घ हो और बाद में दो स्‍वतंत्र लघु आ रहे हों । जैसे काम न हुआ  में काम न   को देखें यहां  का  एक दीर्घ है और  म  ओर   ये दोनों ही स्‍वतंत्र हैं । मगर चाहे हम  तुम न तु  कहें या  काम न  कहें दोनों ही सूरत में वज्‍़न तो वही रहेगा फाएलु ।

3: दो लघु पहले फिर एक दीर्घ फएलुन।  अब इसमें भी दो प्रकार से हो सकता है पहला तो ये कि शुरू के दो स्‍वतंत्र लघु हो और फिर बाद में दो लघु ऐसे आ रहे हों जो कि आपस में संयुक्‍त होकर एक दीर्घ बना रहें हों । जैसे न सनम  को अगर देखें तो इसमें भी बात वही है कि वैसे तो चारों ही लघु हैं पर पहले दो  न  और   ये दोनों ही स्‍वतंत्र हैं और बाद के  नम  मिलकर दीर्घ हो गए हैं अत: वज्‍़न वही है फएलुन ।  दूसरा ये भी हो सकता है कि दो लघु हों और फिर एक दीर्घ आ गया हो जैसे न सुना  अब इसमें शुरू के दो   और सु  ये दोनों तो स्‍वतंत्र हैं पर बाद में ना दीर्घ है पर वज्‍़न वही है फएलुन ।

4: एक लघु एक गुरू और फिर ऐ लघु फऊलु । अब इसमें भी दो प्रकार से हो सकता है पहला तो वही कि आप के पास चारों ही मात्राएं लघु हों पर उनमें से बीच की दो मात्राएं मिल कर दीर्घ हो रही हों  । जैसे  न तुम न हम  में न तुम न  को देखें वैसे तो चारों ही लघु हैं पर बीच की दो  तुम  जो हैं वो मिलकर दीर्घ हो रही हैं जबकि दोनों तरफ की   न  जो हैं वो स्‍वतंत्र हैं । दूसरा तरीका ये भी हो सकता हैं कि बीच में एक सचमुच की दीर्घ ही हो जैसे मिला न  में मि लघु है फिर ला  दीर्घ आ गया है और फिर   एक बार फिर लघु है दोनों ही हालत में वज्‍़न वही है फऊलु ।

5:  दा गुरू मात्राएं फालुन ।  इसमें कई तरीके हो सकते हैं पहला तो ये कि चारों ही लघु हो पर दो दो लघु मिल कर दो दीर्घ में बदल रहे हों जैसे हम तुम में वैसे तो चार लघु मात्राएं हैं पर हम मिलकर एक दीर्घ बना रहा है और तुम मिलकर एक दीर्घ बना रहा है । दूसरा ये कि शुरू में एक दीर्घ हो फिर दो लघु ऐसे हों जो मिलकर एक दीर्घ बन रहे हों  जैसे ला हम  को देखें यहां पर पहला ला तो सीधा दीर्घ ही है और बाद में हम जो है वो वैसे तो दो लघु हैं पर मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं अत: वज्‍़न वही है फालुन ।  तीसरा ये भी हो सकता है कि पहले दो लघु हों जो मिलकर एक दीर्घ बना रहे हों और फिर एक दीर्घ आ रहा हों जैसे हमला  में शुरू के दो और   जो हैं वो वैसे तो लघु हैं पर मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं । बाद में जो ला  हैं वो ता दीर्घ ही है अत: वज्‍़न वही रहा फालुन । चौथ ये भी हो सकता है कि दोनों सचुमुच के ही दीर्घ हों जैसे जाना  में जा  और ना  दोनों ही दीर्घ हैं और वज्‍़न वही है फालुन ।

अब बारी आती है पंचकल की पंचकल माने कि वो रुक्‍न जिसमें पांच मात्राएं हों ये सबसे ज्‍यादा आने वाल रुक्‍न है । इसकी कुल मिलाकर आठ सूरतें होती हैं ।

1 : पांच लघु मात्राएं और पांचों ही अपने आप में स्‍वतंत्र हों जैसे मफउलुन इसके उदाहरण कम ही मिलते हैं एक साथ पांच लघु मात्राएं आ जाना ये संयोग कम होता है । 11111

2 : तीन लघु मात्राएं और एक गुरू मात्रा । या फिर पांचों ही लघु मात्राएं जिसमें से पहली तीन स्‍वतंत्र हों और बाद की दो संयुक्‍त होकर एक लघु हो रही हों । मफउलू 1112  या ( 111,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्‍वतंत्र हैं ।

3 : दो लघु एक गुरू फिर एक लघु मात्रा या फिर पांच लघु मात्राएं शुरू की दो स्‍वतंत्र बीच की दो संयुक्‍त और आखिर की एक स्‍वतंत्र । फएलातु 1121 या फिर (11,11,1) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्‍वतंत्र हैं ।

4: एक लघु एक गुरू और फिर दो लघु या फिर पांच लघु पहला स्‍वतंत्र दूसरा और तीसरा संयुक्‍त चौथ और पांचवां फिर स्‍वतंत्र ।  मफाएलु 1211 या फिर (1,11,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्‍वतंत्र हैं ।

5:  एक लघु और दो गुरू या फिर पांच लघु मात्राएं जिसमें से पहली ऐ स्‍वतंत्र हो और बाद में दूसरी और तीसरी संयुक्‍त हो तथा चौथी और पांचवी भी संयुक्‍त हो । फऊलुन 122 या फिर  (1,11,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्‍वतंत्र हैं ।

6:  एक गुरू और तीन लघु या फिर पांच लघु जिसमें से पहली और दूसरी संयुक्‍त हो और बाकी की तीन स्‍वतंत्र हों  । फाएलतु 2111 या फि र (11,111) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्‍वतंत्र हैं ।

7: एक गुरू एक लघु और फिर एक गुरू या फिर पांच लघु मात्राएं जिसमें से पहली और दूसरी संयुक्‍त हो तीसरी स्‍वतंत्र हो और चौथी और पांचवी पुन: संयंक्‍त हो । फाएलुन 212 या फिर ( 11,1,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्‍वतंत्र हैं ।

8: दो गुरू और एक लघु या फिर पांचों लघु हों पहली और दूसरी संयुक्‍त हो तीसरी और चौथी संयुक्‍त हो और पांचवी स्‍वतंत्र हो । मफऊलु 221 या फिर ( 11, 11,1) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्‍वतंत्र हैं ।

मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

रात पिछले पहर वो हवाएं चलीं, फूल रोने लगे, ज़ख्‍़म गाने लगे , तेरे जाने के दिन तेरे आने के दिन याद की शाख़ पर चहचहाने लगे

तो माड़साब की वापसी पर छात्र और छात्राओं ने फुल बेवकूफियां करके और ग़लतियां करके माड़साब का स्‍वागत किया है और ये ही हाल रहा तो आगे क्‍या होगा खुदा ही जानता है ।

होमवर्क था कि

साथ शबनम के रो गए हम भी

पत्तियां कुछ भिगो गए हम भी

कंचन सिंह चौहान फरमा रहीं हैं कि

गुरू जी confusion....? पहली पंक्ति की शुरुआत दीर्घ-लघु से है और दूसरी पंक्ति की लघु-दीर्घ से अब हम किस तरह से शुरू करेंगे? त् और ति मिल कर दीर्घ नही होगा क्या? बहुत ज्यादा कन्फ्युजिया गये है हम?

छ: महीने में माड़साब ने ये ही सिखाया कि नाक कटा दो उनकी। आपको कहा गया है कि उच्‍चारण के साथ शुरूआत करें । सही है कि पहली पंक्ति में शुरूआत दीर्घ सा के साथ हो रही है जिसके तुरंत बाद में आ रहा है   जो कि लघु है पर आप ये फरमा रहीं हैं कि मिसरा सानी में शुरूआत हो रही है लघु से, भोत बढि़या भई भोत बढि़या, माड़साब की नाक कटाने का इससे अच्‍छा कोई भी तरीका नहीं हो सकता है । मिसरा सानी में शुरूआत है पत्तियां  से मतलब  पत्‍ ति यां  मैंने बताया था कि उच्‍चारण से ही समझना है कि आधा अक्षर किसके साथ घर बसाने जा रहा है आगे वाले के साथ या पीछे वाले के साथ । यहां पर जो आधा   है वो मिला है अपने से पहले के   के साथ आप उच्‍चारण देखें तो हम कहते हैं पत्‍ ति यां  मतलब हो गई समस्‍या हल आप तो भेनजी फिजूल में ही कन्‍फ्यूजिया रहीं थीं अब एक काम करें कि कोने में जाकर मुर्गी बन जाएं और किताबें सर पे रख कर ।

अभिनव ने कहा है

यस सर, मैं पहले बहर निकलने का प्रयास कर रहा हूँ, होम वर्क का शेष भाग भी शीघ्र पूरा कर के जमा कर दूँगा.
साथ शबनम के रो गए हम भी
पत्तियां कुछ भिगो गए हम भी
बहर - २२११ - १२१२ - ११२
साथ - 2
शब - 2
नम - 11
के - 1
रो - 2
गए - 12
हम - 11
भी - 2
पत्ति - 2
यां - 2
कुछ - ११
भि - १
गो - 2
गए - 12
हम - 11
भी - 2

चलो ग़नीमत है कि आखिर के दो रुक्‍न तो ठीक निकाले हैं पर पहले रुक्‍न में इत्‍ती बड़ी बेवकूफी करी है कि हाया में सदके जाऊं । अब कोई इनसे पूछे कि साथ  को एक दीर्घ मानने का काम ये किस प्राकर से कर रहे हैं । जबकि वहां पर एक सा  है और एक   है जो कि अलग अलग हैं और इनका वज्‍़न है 21  भाईसाहब ने एक पूरी की पूरी लघु की भ्रूण हत्‍या कर दी है । और शबनम  में शब  का वज्‍़न जब सही निकाल लिया था तो फिर नम  ने आपका क्‍या बिगाड़ा था जो आपने उसका हाजमा बिगाड़ दिया । भई जो शब  का किया वही तो नम  का करना था । वज्‍़न होता शबनम 22 , मतलब कि साथ शबनम  का वज्‍़न होगा 2122 अर्थात फाएलातुन । अब आपने दूसरा रुक्‍न तो ठीक निकाला है जिसमें के रो गए  आता है  अर्थात के गिर के हो गया लघु फिर रो  एक दीर्घ फिर एक लघु और फिर एक और दीर्घ । मतलब कि वज्‍़न हुआ मुफाएलुन 1212 ये आपने सही निकाला है । उसके बाद आपने जो वज्‍़न निकाला है वो है हम भी ये वज्‍़न 112  हो सकता है और इसे ज़रूरत होने पर 22  भी कर सकते हैं । अर्थात फएलुन भी और फालुन भी। तो आपने दो रुक्‍न ठीक निकाले हैं पर पहले में ही इतनी बड़ी ग़ल्‍ती कर दी है कि आपको छोड़ा नहीं जाएगा तो अब आप भी कंचन के साथ मुर्गा बनो जाकर ।

Ajay Kanodia एक नए छात्र हैं अभी दाखिला लिया है तालियों से स्‍वागत करे पूरी क्‍लास इनका ।

(बहर निकलना जरा सा मुश्किल लगता है, पर जैसा की आपने कहाँ प्रयास करने से आ जाएगा)
बहर निकलने की कोशिश कर रहा हूँ (इस पर छड़ी शायद मिले, लेकिन नया छात्र समझ कर, थोडी सी ढील दे दीजिएगा )
सा थ शब नम के रो ग ए ह म भी
२ १ २ २ १ २ १ १ १ १ २
पत् ति यां कुछ भि गो ग ए ह म भी
२ १ २ २ १ २ १ १ १ १ २
बहर - २१२२ - १२११ - ११२
सवाल : सर जी, यहाँ पर सवाल यह है, की, जब हम grouping करतें है मात्राओं की , तो उसे 4 मात्राओ में ही ग्रुप करने होंगे क्या? क्या हो जब हमें केवल 3 मात्रा ही आ रही हो, जैसा की ऊपर हो रहा है?
दूसरा सवाल : मतले के बाद जो शेर आतें है, क्या उसमे भी मिश्रा उला बहर में होने चैह्ये, या केवल मिश्रा सानी में ही
(इस सवाल के जवाब के ऊपर निर्भर करता है मेरे शेर के सही और ग़लत होने का)
साथ शबनम के रो गए हम भी
पत्तियां कुछ भिगो गए हम भी
शाम से था इंतज़ार तेरा
रात के साथ सो गए हम भी
ढूंढते हैं हर जगह तुमको
पर यहाँ ख़ुद ही खो गए हम भी
दिल की दीवारों पे था जो नाम तेरा
आँसुओ से वो धो गए हम भी
लोग कहते थे प्यार के किस्से
प्यार के बीज बो गए हम भी

अब छड़ी तो पड़ेगी भैया आपने तालियां तो ले लीं हैं आते ही पर अब छड़ी की बारी है । जहां तक तक्‍तीई का सवाल है वो तो आपने लगभग सही ही की है कुछ ग़लतियां हैं पहला रुक्‍न आपने सही निकाला है 2122 और आखिर का भी सही है 112  मगर बीच वाले में जो आपने 1211 किया है वो ग़लत है बीच वाला रुक्‍न है भिगो ग ए मतलब भि एक लघु फिर गो एक दीर्घ फिर एक लघु और आखिर में एक दीर्घ अर्थात 1212 , आपने जो शे'र भेजे हैं उनमें अधिकांश में मिसरा सानी तो सही आ रहा है पर मिसरा ऊला सबमे बहर से बाहर हो रहा है । विशेषकर दिल की दीवारों पे था जो नाम तेरा ये मिसरा तो चीन की दीवार की तरह कुछ ज्‍यादा ही लंबा हो गया है ।

फिर भी आपका एक शे'र पूरा का पूरा बहर में है लोग कहते थे प्‍यार के किस्‍से, प्‍यार के बीज बो गए हम भी ।  मगर ये केवल बहर में ही है इसमें बात नहीं है मतलब जिस पर वाह वाह की जा सके वो बात नहीं है ।
आपके दोनों सवालों के जवाब आपको मिल गए होंगें कि मतले के बाद भी वज्‍़न लेकर ही चलना है मतला कोई राजनैतिक दलों का एजेंडा नहीं है कि जब चाहे जब छोड़ दो और दूसरा ये कि तीन मात्राओं का भी रुक्‍न होता है जो ऊपर है ही । हाथ आगे करिये बीस छड़ी लगानी है ।

मुहब्‍बतों के शहर से कोई  अब ये तो पता नहीं ये कौन है क्‍योंकि अगले ने नाम नहीं लिखा है पर किया सब कुछ ठीक ठाक है । हां ये ग़लतफहमी ना रखें कि उसने दूसरा शे'र सही निकाल के बताया है दरअस्‍ल में दूसरा शे'र भी मुश्‍ताक़ साहब  का ही है जिनकी वो ग़जल है ।

सा थ शब नम के रो ग ए हम भी
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2
पत्‍ ति यां कुछ भि गो ग ए हम भी
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2
फा ए ला तुन मु फा ए लुन फा लुन
दू र था डू ब ता हु आ सू रज
हम ने सो चा के लो ग ए हम भी

अच्‍छा काम किया है आपने मुहब्‍बतों के शहर वाले पर अपना नाम तो बता देते भले आदमी ।

खैर आज के शीर्षक में अहमद मुश्‍ताक़ साहब की एक और ग़ज़ल का शे'र लगा है

रात पिछले पहर वो हवाएं चलीं, फूल रोने लगे, ज़ख्‍़म गाने लगे

तेरे जाने के दिन, तेरे आने के दिन, याद की शाख़ पर जगमगाने लगे

एक दिलचस्‍प तरीके से लिखी गई ग़ज़ल है तो निकालिये इसका वज्‍़न और करिये इस पर मेहनत कुछ और शे'र निकालने में । अभी हम कक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं ताकि छात्र छात्राएं कक्षाओं के लिये मानसिक रूप से तैयार हो सके उसके बाद ही हम चालू करेंगें अपनी कक्षाएं ।

सोमवार, 3 दिसंबर 2007

माड़साब अपनी ग़ज़ल की कक्षाओं के साथ वापस आने वाले हैं बच्‍चे तैयार रहें

गज़ल की कक्षाओं को कुछ दिनों के लिये बंद करने का जो निर्णय था वो दो कारणों से लिया गया था पहला तो यही कि ऐसा लग रहा था कि छात्रों और छात्राओं में कुछ ऊब सी लग रही थी ऐसा लग रहा था कि दिलचस्‍पी कम हो रही है और दूसरी बात ये कि विद्युत मंडल ने जो सुबह की कटौती प्रारंभ की है वो उसी समय की है जो समय ग़ज़ल की कक्षाओं के लिये होता था । खैर अबऐसा लग रहा है कि बच्‍चों में फिर से उत्‍सुकता जागी है तो अब क्‍लासें शुरू करने की इच्‍छा हो रही है । मीनाक्षी जी कंचन जी अनूप जी और नए छात्र अजय के साथ शुरू करेंगें हम कक्षाओं को अभिनव ने केवल एक नवम्‍बर तक की छुट्टी ली थी पर एक दिसम्‍बर भी हो गया पता ही नहीं कहां हैं उधर उड़न तश्‍तरी तो भारत के दौरे पर है और अब वहां से ब्‍लागिंग बंद कर रखी है । अच्‍छा भी है अपने मुल्‍क लौट कर आने के बाद उस माटी को छूना और वहां पर अपने बचपन को तलाश करना ये ज्‍यादा बड़े काम हैं तो हमने समीर जी को कनाडा वापस आने तक छ़ुट्टी दे रखी है । चलिये तो जल्‍द ही शुरू हो रहीं हैं ग़ज़ल की क्‍लासें इस बार बहरों और उनके नामों और मात्राओं जैसे दुश्‍कर काम के साथ चालू होगा नया सत्र आप ये भी मान सकते हैं कि हमारे बचपन में जैसे गर्मी के साथ दीपावली पर भी एक माह की छुट्टी मिलती थी ये वही थी । पत्र लिखें ताकि पता लगे छात्रों में उत्‍साह है । नए छात्र अजय जी के लिये ये कि अभी आपको बहुत मेहनत करनी है मगर प्रयास जारी रखें सब हो जाएगा ।
और अब आज का होमवर्क जो कि माड़साब को यकीन दिलाण्‍गा कि बच्‍च्‍े सचमुच में ग़ज़ल की क्‍लास शुरू होने को लेकर काफी उत्‍साहित हैं एक मिसरा है उसको लेकर कुछ कार्य करना हे माने कि गज़ल के कुछ शेर निकालने हैं । मिसरा है
साथ शबनम के रो गए हम भी
पत्तियां कुछ भिगो गए हम भी
शायर अहमद मुश्‍ताक ( पाकिस्‍तान)

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