शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2007

और सुनीता जी और संजय जी तथा अरविंद चतुर्वेदी की इन सुंदर कविताओं के साथ समापन होता है विश्‍व के पहले ब्‍लागीय शरद पूर्णिमा कवि सम्‍मेलन का

संचालक : विश्‍व का पहला ब्‍लागीय शरद पूर्णिमा कवि सम्‍मेलन सफल रहा है श्रोता भी ख़ूब आए और कवि भी कवियित्रिओं ने कवियों को पछाड़ दिया है अंत में प्रस्‍तुत हैं सुनीता शानू और संजय पटेल

sunita (shanoo) गुरूदेव आप बुलायें हम न आयें...लिजिये पेश है एक तुरंत बनाया गीत...
जब पहली बार किसी ने इजहार किया था मुझसे,
तब रोक न पाई खुद को प्यार किया था उसने...
चुप रहकर ही खाई थी, वो प्यार भरी कसमें,
आँखो ही आँखो में जब इकरार किया था हमने...
गंगा-जमुना सा पावन बंधन बांधा था हमने,
देवो नें जब श्लोक पढें, मेघ लगे बरसने...
जन्म-जन्म का गठ-बंधन टूट न पाये पल में,
छोड़ न देना साथ पिया,रहना मेरी नजर में...

संचालक : तालियां तालियां एक सुदर कविता के लिये और अब आ रहे हैं जोग लिखी के संजय पटेल

जोगलिखी संजय पटेल की 

चाँद सुहाता है
बुलाता है
गीत गाता है
पगले...
क्यों बीत जाता है
पूरा का पूरा क्यों
रोज़ नहीं आता है
करता है कुछ और
कुछ और बताता है
मौन रहता है तू
फ़िर भी कितना कुछ कह जाता है
पर ये तो बता दे
प्रेम से तेरा क्या नाता है
सच का
या
छल का
बता दे देख
नहीं तो तेरा एक और प्रेमी
रूठ जाता है

संचालक : और अब एक कवि जो बहुत देर से अपनी बारी की प्रतिक्षा कर रहे हैं पर कुछ देर से उनका नंबर आ रहा है । आ रहे हैं चांदनी के दोहे लेकर श्री अरविंद चतुर्वेदी जी जोरदार तालियां बजाएं इनके लिये

अरविन्द चतुर्वेदी Arvind Chaturvedi पहले एक गज़ल के कुछ् शेर :
चान्दनी ये तो जानती होगी
रोशनी चान्द से हुई होगी .
चलो सूरज को जगायें फिर से
इन अन्धेरों में कुछ कमी होगी
आंख में इंतिहा नमी की थी
बादलों से उधार ली होगी
दोस्तों ने उसे दिये धोखे
बात दौलत की ही रही होगी
बुरे बख्तों मे साथ छोड गयी
बेवफाओं के घर पली होगी.

.....और अब कुछ चान्दनी के दोहे ..
आगे आगे चान्दनी ,पीछे पीछे चान्द
सीधे आंगन तक घुसे सभी छतों को फान्द.
हाथ उठाकर ,रेंग कर बच्चा करता मांग
फुदके फुदके चान्दनी, हाथ ना आवे चान्द.
ठंडी ठंडी चान्दनी, चान्दी चान्दी रेत
लद गये दिन आसाढ के, सावन के संकेत्
कहते हैं कि शरद पूर्णिमा पर रात में चान्द से अमृत गिरता है. ख़ीर बनायें, रात को खुले में रखें, और सुबह खायें. आनन्द ही आनन्द....

कवियों की चकल्‍लस :

कंचन सिंह चौहान अरे गुरू जी बड़े दिन बाद प्रशंसा मिली! शुक्रिया!

Udan Tashtari तालियाँ...तालियाँ----मीनाक्षी जी और कंचन जी के लिये.
दोनों ही हमारी बारी में इन तालियों को याद रखें कृप्या. यह भी उधार का स्वरुप होती हैं. :)
वैसे न भी बजायें तो आप दोनों ने इतना बेहतरीन प्रस्तुत किया है कि हमें तो बजाना ही था.

अरविन्द चतुर्वेदी Arvind Chaturvedi समीर भाई की तालियों पर मेरी भी तालियां.
वैसे चिडिया के गीत पर तो ढेरों तालियां बनती ही हैं.
बहुत ही आनन्द आया. बधाई

मीनाक्षी अरे यह तो सचमुच का काव्य सम्मेलन है बस यहां तालियों की आवाज़ सुनने के लिए आँखें बन्द करनी पड़ेगीं.
कंचन को अगर अरविन्द जी चिडिया कह रहे है तो ज़रूर वे छोटी गुड़िया ही होगी... राधा की ही यादें अक्सर राधा तक ले जाती है क्या?
यह पंक्ति दिल मे उतर गई. शुभकामनाएँ
सबको मेरा धन्यवाद !

अरविन्द चतुर्वेदी Arvind Chaturvedi मेरी क्या मजाल कि एक कवियित्री को चिडिया कहू?
आपने शायद 'मिस' कर दिया,समीर भाई ने 'पागल चिडिया" शीर्षक से कविता सुनायी थी.
मै उसी चिडिया का जिक्र कर रहा था.

मीनाक्षी :) :) :) :) (अपनी गलती पर मुस्कराने के अलावा कोई चारा नहीं)

sunita (shanoo) वाह गुरुदेव :)
हम देखें जहाँ-जँहा,
आप मिलते वहाँ-वहाँ
हमे भी बुलाईये न आज आप संचालक है मंच पर और शिष्य को ही भूल गये...बहुत समय से हम सुबीर भाई का ब्लोग देख ही नही पाये...आज सब्सक्राईब कर ही लिया है...बैठे-बिठायें कवि सम्मेलन का लुत्फ़ उठायेंगे...:)
सुनीता(शानू)

संचालक : भई बहुत ही सुंदर कविता के साथ आज के कवि सम्‍मेलन का समापन हुआ है । अलस भोर तक हमने इस कवि सम्‍मेलन को चलाया है और अब हम इस आशा के साथ विदा ले रहे हैं कि जल्‍द ही दीपावली पर एक काव्‍य महोत्‍सव का आयोजन करेंगें आशा है सभी तब तक दीपावली पर अपनी कविता तैयार कर लेंगें ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. हम तालियाँ पीट रहें है.

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  2. इस सफल सम्मेलन के लिये बधाइयाँ ...खूब तालियाँ बजायें हमने भी.. अब दीपावली वाले सम्मेलन में मिलते हैं फिर.

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  3. समीर जी हमने तो सोच रखा था कि नही बजाएंगे तालियाँ, क्यों भला ज़रूरी है क्या कि आप हमारी कविता से खुश हों तो हम भी खुश हों, लेकिन रोक नही पा रहे खुद को, तड़ तड़ तड़ तड़, आवाज़ें सुनाई दे रही हैं न। वाक़ई बहुत अच्छी रचना।
    एक पागल सी चिड़िया कैसे एक घर बसाने का पागलपन करती है, और कुछ न कर के भी बहुत कुछ कर जाती है, वाह आपकी कल्पना को बधाई।

    मीनाक्षी जी की पंक्तियाँ-
    बड़ी बड़ी बातें नही चाहिए , जीवन उलझाने के लिए
    छोटी-छोटी बातें ही चाहिए , प्रेम भाव लाने के लिए !
    प्रेम व्यवसाय में उतरने वालों के लिये, छोटा लेकिन अचूक नुस्खा। फिर तालियाँ।

    वीना जी की कविता
    निकले चंदा रात मुस्कराए
    झूम-झूम इठलाती है
    तारों से आंचल भरकर
    फिर दुल्हन सी शरमाती है
    की कौन सी पंक्ति चुनी जाये हम समझ नही पा रहे, पूरी कविता ही एक अद्भूत भावुक कल्पना का नमूना।
    तड़ तड़ तड़ तड़

    सुनीता जी के तो क्या कहने ही है, और जोगलिखी ने भी हम श्रोताओं कौ खुश किया

    अरविंद जी क्या बात है
    चान्दनी ये तो जानती होगी
    रोशनी चान्द से हुई होगी .
    वाह वाह
    बुरे बख्तों मे साथ छोड गयी
    बेवफाओं के घर पली होगी.
    बहुत खूब
    आगे आगे चान्दनी ,पीछे पीछे चान्द
    सीधे आंगन तक घुसे सभी छतों को फान्द.

    भई वाह! तालियाँ तो आप हमारी सुन ही रहे होंगे।

    और अब अंत में संचालक महोदय हमारे माननीय गुरू जी। क्या बात है! क्या बात है! इसीलिये कहा जाता है कि गुरू तो फिर गुरू ही होता है।

    चांदनी बुला रही है सांझ से मुंडेर पर
    प्रेम से मनुहार भरे स्वर में टेर टेर कर
    ना ना तालियाँ नही बज रहीं, हम तो बस मगन हो कर सुन रहे हैं, ताली बजाने की सुध किसे है?

    दूर कोई गा रहा है रस भीगा गीत रे
    आ गया है लौट कर किसी के मन का मीत रे
    कह रही है चांदनी के तू भी अब न देर कर
    प्रेम से मनुहार भरे स्वर में टेर टेर कर
    क्या बात है, जल्दी में बनाई तो ऐसी बनी कहीं बैठ कर ना दी होती तो हम सब को मंच से भागना ही पड़ जाता!
    सच ही कहा
    विश्‍व का पहला ब्‍लागीय शरद पूर्णिमा कवि सम्‍मेलन सफल रहा है
    बधाई! बधाई!

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  4. सुबीर जी मै तो सोच भी नही सकती थी नेट पर इतनी खूबसूरती से सम्मेलन हो रहा है...किस किस की तारीफ़ करूं सभी कवि एक से बढ़ कर एक हैं...आप सभी को सफ़ल कवि सम्मेलन की बहुत-बहुत बधाई...हम भी आते है दीपावली पर दीपमाला को साथ लेकर...

    बहुत-बहुत शुक्रिया...आप सभी का...और हमारे गुरूदेव का..

    सुनीता(शानू)

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  5. सुबीर भाई...
    काव्य पाठ तो हो गया पेमेंट ड्राफ़्ट से भेजेंगे या सीधे अकाउंट में जमा कर वाएंगे.मज़ाक कर रहा हूँ.आपने अपने ब्लॉग में शुमार कर लिया..साधुवाद.

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