शुक्रवार, 28 सितंबर 2007

लता मंगेशकर महोत्‍सव - संजय जी की बात को उधार लेकर कह रहा हूं विश्‍व की सबसे सुरीली आवाज तुम जियो हजारों साल



प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर ने एक फिल्म में संगीत दिया था, ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित, १९६० में प्रदर्शित फिल्म अनुराधा, इस फिल्म में लता जी ने चार गीत गाये थे जाने कैसे सपनों में, हाय रे वो दिन क्यों ना आए, कैसे दिन बीते और साँवरे साँवरे चार विभिन्न मूड, और चार विभिन्न रागों, तिलक श्याम, जन समोहिनी, मौज खमाज और भैरवी में निबद्ध इन गीतों को सुनकर, इनमें सर्वश्रेष्ठ का चयन करना मुश्किल हो गया था। एक अद्धितीय संगीतज्ञ, और एक बेजोड़ गायिका के अद्भुत मेल से उत्पन्न ये गीत, भारतीय चित्रापट संगीत की एक अमूल्य विरासत है। लोकप्रियता की दृष्टि से हाय रे वो दिन क्यों न आए सबसे लोकप्रिय हुआ था। कैसा संयोग है, भारतीय सिने संगीत के इतिहास में लता के अभ्युदय के पश्चात्‌, जब भी कोई दुर्लभ रचना बनती है, तब लता उससे जुड़ी नजर आती है। एक वर्तमान की प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी का कहना है, कि जब भी कोई संगीतकार किसी खूबसूरत धुन की रचना करता है, तब उसकी सबसे पहली तमन्ना होती है, उसे लता जी ही गायें।
लता मंगेशकर की सबसे बड़ी विशेषता है, उनका आलाप, कभी आंखे बन्द कर लता जी का आलाप सुनिये, ऐसा लगता है, शरीर भारहीन होकर ऊपर उठता चला जा रहा है। फिल्म लेकिन की कालजयी रचना सुनिये जी अरज हमार के प्रारंभ का आलाप सुनिए, कितना विशुद्ध, ऐसा लगता है मानों निखालिस शहद की बूंद, कानों के रास्ते रूह में समाती चली जा रही है। फिल्म आनंद मठ के गीत वन्दे मातरम्‌ में लता जी के आलाप अद्धितीय हैं। आशा जी ने एक बार बताया था, कि लता दीदी के साथ मुझे उत्सव में एक गीत गाना था मन क्यों बहका, लता दीदी ने आलाप प्रारंभ किया, फिर मुझे गाना था, मगर मैं उस आलाप में ऐसी खोई, कि कुछ ध्यान ही नहीं रहा, क्या गाना है ?
लता मंगेशकर ने कितने गीत गाये हैं ? यह तो हमेशा से विवाद का विषय रहा है, परन्तु यह बात तो तय है, कि उन्होंने कभी स्तरहीन नहीं गाया। राजकपूर की फिल्मों की सबसे आवश्यक शर्त थी, लता मंगेशकर की आवाज, फिल्म संगम का गीत बुड्ढा मिल गया गाने के लिये लता जी राजी नहीं हो रही थीं, राज साहब केवल लता जी से ही गाना गवाना चाहते थे, काफी जद्दोजहद के बाद लता जी ने वह गीत गाया, पर विरोध स्वरूप वह फिल्म आज तक नहीं देखी। इसे भी एक संयोग ही कहा जाएगा, कि राज साहब द्वारा निर्मित सबसे बड़ी फ्लाप, या शायद उनकी एकमात्रा फ्लाप फिल्म, क्लासिक मेरा नाम जोकर में लता जी की आवाज नही थी। यह आर. के. की एकमात्रा फिल्म थी, जिसमें लता जी शामिल नहीं थीं, ऐसे ही एक संगीतकार ने जिन्हें लता जी राखी बांधती थीं, लता जी के सामने एक डिस्को गीत गाने का प्रस्ताव रखा, लता जी ने अस्वीकार कर दिया, जब लता जी उन्हें राखी बांधने गयीं, तब उन संगीतकार ने, उनसे वह गीत गाने का अनुरोध किया, और लता जी को गाना पड़ा। लता जी ने, लगभग सभी भारतीय भाषाओं में गीत गाये, तथा इस कारण उनका नाम गिनीज बुक में भी दर्ज हुआ है, उन्होंने आज तक अंग्रेजी में कोई गीत नहीं गाया। आज भी, साल में एक-आध बार ही, लता जी की आवाज किसी फिल्म में सुनने मिलती है, परन्तु जब भी मिलती है, इतनी सम्पूर्णता होती है, कि सारी कमी पूरी हो जाती है।
प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद जाक़िर हुसैन ने अपनी सर्वश्रेष्ठ पसंद, लता जी के एक डुयेट गीत को बताया था, जिसमें दोनों आवाजें लताजी की ही थीं, हुसैन साहब ने कहा था, कि मुख्य स्वर के पीछे चलता हुआ, लता जी का ही आलाप ऐसा लगता है, मानों सितारों में गूंज रहा हो, वह गीत था, फिल्म बहारों क सपने का क्या जानूं सनम। ''कुमार गंधर्व साहब को हमेशा शिकायत रही, कि फिल्म वालों ने लता को हमेशा, ऊँची पट्टी के गाने ही दिये, परन्तु एक गाना ऐसा भी था लता जी का, जो बहुत नीचे स्वरों में गाया गया, और बहुत खूबसूरत ढंग से गाया है, फिल्म अनुपमा का ये गीत कुछ दिल ने कहा सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के पसंदीदा गीतों में पहले नम्बर पर है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. पंकज आप को पढ़ कर अनंद आ गया , लता जी का वो डिस्को गीत कौन सा था, और एक गीत है फ़िल्म अमर प्रेम का " रैना बीती जाए " क्या कहूँ क्या गीत है, जाने कितनी बार सुन चुका हूँ, पर लता जी की आवाज़ हर बार नयी लगती है इस गीत में . धन्येवाद

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    सस्नेह -
    सजीव सारथी

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  3. लता जी का डिस्‍को गीत था फिल्‍म खुद्दार का डिस्‍को 82 । और सागर जी मैने ये नहीं लिखा है कि रविशंकर जी ने एक ही फिल्‍म में संगीत दिया था मैंने लिखा है उन्‍होंने एक फिल्‍म में संगीत दिया था ।

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  4. पंकज जी
    शायद मैं सही समझ नहीं पाया, मैं अपनी टिप्प्णी हटा रहा हूँ।
    सागर

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